शिमला:पर्यटकों के लिए शिमला के सबसे बड़े आकर्षण के रूप में पहचान रखने वाली भारतीय उच्च अध्यनन संस्थान (Indian Institute of Advanced Study, IIAS) की इमारत कोरोना संकट के बाद फिर से दीदार के लिए खुल गई है. कोरोना के दौरान इस इमारत को सभी के लिए बंद कर दिया गया था, लेकिन कोरोना के मामलों में कमी आने के बाद फिर से एडवांस स्टडी को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है. कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए संस्थान ने पर्यटकों के घूमने के लिए एसओपी और माइक्रो प्लान बनाया है. पर्यटक 20-20 के समूह में भेजे जाएंगे. एक ग्रुप का समय 30 मिनट रहेगा. भवन को रोजाना सैनिटाइज किया जाएगा. परिसर में मास्क अनिवार्य किया गया है. भवन को सुबह साढ़े नौ बजे से साढ़े पांच बजे तक खुला रखा जाएगा.
यहां ब्रिटिश काल का वैभव देखने के लिए हर साल देश विदेश के लाखों सैलानी आते हैं. इस इमारत का दीदार करने के लिए टिकट खरीदना पड़ता है. कोरोना के चलते लंबे समय से ये संस्थान पर्यटकों के लिए बंद रखा गया था. हर साल हजारों पर्यटक घूमने आते हैं और एक करोड़ से ज्यादा आय होती थी लेकिन कोरोना के बाद 95 फीसदी आय कम हो गई है. वहीं, अब दोबारा से एडवांस स्टडी पर्यटकों के लिए खोल दी है. हालांकि अब एडवांस स्टडी का दीदार करने के लिए जेबें ढीली करनी होगी. संस्थान ने टिकट महंगी कर दी है.
व्यस्क पर्यटकों के लिए दो सौ रुपये, बारह साल से कम आयु के पर्यटकों, वरिष्ठ नागरिकों के लिए सौ रुपये, विदेशी सैलानियों के लिए पांच रुपये प्रति व्यक्ति टिकट तय है. एडवांस्ड स्टडी भवन को बाहर से देखने के लिए टिकट की दर तीस रुपये है. ऐसे में एडवांस स्टडी की आय में भी वृद्धि होगी.भारतीय उच्च अध्यनन संस्थान शिमला के कार्यवाहक निदेशक चमन लाल गुप्ता ने कहा कि कोरोना के चलते उच्च अध्ययन संस्थान की आय 95 फीसदी कम हो गई है. कोरोना के चलते पर्यटकों के लिए संस्थान को बन्द कर दिया गया था और संस्थान का एक मात्र यही कमाई का साधन है लेकिन अब संस्थान को खोल दिया गया और कोरोना नियमों के तहत ही पर्यटकों को प्रवेश दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि संस्थान की ओर से पर्यटकों और लोगों प्रवेश के लिए टिकट में बढ़ोतरी की है. देश की सभी ऐतिहासिक इमारतों में टिकट महंगे हैं ऐसे में यहां के लिए भी दरें बढ़ाई गई है, लेकिन इसका उतना असर नहीं पड़ेगा. भारतीय उच्च अध्यनन संस्थान. 24 मार्च 2020 के बाद सिर्फ डेढ़ माह का खुला संस्थान:भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान को कोरोना महामारी के कारण 24 मार्च से लगे लॉकडाउन के बाद से बंद कर दिया गया था. पूरा साल बंद रहने के बाद 18 फरवरी को इसे पर्यटकों के लिए खोला गया था, जिसके बाद पर्यटन काफी तादात यहां घूमने पहुंचे लेकिन दूसरी लहर आने पर 4 अप्रैल को संस्थान को फिर से बंद कर दिया गया.
भारतीय उच्च अध्यनन संस्थान. बता दें ब्रिटिश काल के दौरान शिमला देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. ब्रिटिश वायसराय गर्मियों में शिमला में प्रवास करते थे. इसी पहाड़ी शहर शिमला में वायसरीगल लॉज और अब भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के रूप में एक ऐसी आलीशान इमारत मौजूद है, जो देश की आजादी और विभाजन की एक-एक हलचल की गवाह रही है. इस इमारत में वर्ष 1945 में शिमला कॉन्फ्रेंस हुई थी. उसके बाद वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन की मीटिंग हुई, जिसमें देश की आजादी के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई थी.
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इस बैठक में पंडित जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद सहित कई अन्य नेता शामिल थे. महात्मा गांधी भी उस दौरान शिमला में थे, लेकिन वे वायसरीगल लॉज में हो रही बैठकों में शामिल नहीं हुए थे. अलबत्ता वे शिमला में ही एक स्थान पर कांग्रेस के नेताओं को मश्विरा देते रहे थे. देश की आजादी से पूर्व की दो महत्वपूर्ण बैठकों के ब्यौरे से पहले यहां इस इमारत के संक्षिप्त इतिहास को जानना जरूरी है. नई सदी यानी वर्ष 2000 के बाद जन्मी पीढ़ी इस समय किशोर अवस्था में है. उनमें से अधिकांश को शायद ही मालूम होगा कि देश की आजादी और विभाजन से जुड़े तमाम दस्तावेजों पर एक इमारत में चर्चा हुई होगी.
38 लाख में बनी ये भव्य इमारत: ब्रिटिश हुक्मरां गर्मियों के दिन बिताने के लिए किसी पहाड़ी स्टेशन की तलाश में थे. उनकी ये तलाश शिमला में पूरी हुई. तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लार्ड डफरिन ने शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला लिया. उसके लिए यहां एक आलीशान इमारत तैयार करने की जरूरत महसूस हुई. वर्ष 1884 में वायसरीगल लॉज का निर्माण शुरू हुआ. कुल 38 लाख रुपये की लागत से वर्ष 1888 में ये इमारत बनकर तैयार हुई. इस इमारत में देश की आजादी तक कुल 13 वायसराय रहे. लार्ड माउंटबेटन अंतिम वायसराय थे. ये इमारत स्काटिश बेरोनियन शैली की है. यहां मौजूद फर्नीचर विक्टोरियन शैली का है. इमारत में कुल 120 कमरे हैं. इमारत की आंतरिक साज-सज्जा बर्मा से मंगवाई गई टीक की लकड़ी से हुई है.
भारतीय उच्च अध्यनन संस्थान. 1945 में हुई थी अहम शिमला कॉन्फ्रेंस: वर्ष 1945 में तत्कालीन वायसराय लार्ड वेबल की अगुवाई में यहां शिमला कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया. ये कॉन्फ्रेंस वायसराय की कार्यकारी परिषद के गठन से संबंधित थी. इस परिषद में कांग्रेस के कुछ नेताओं को शामिल किया जाना प्रस्तावित था. लार्ड वेबल के साथ कुल 21 भारतीय नेता कॉन्फ्रेंस में शिरकत कर रहे थे. कुल 20 दिन तक ये सम्मेलन चला, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. जानकारी के अनुसार मोहम्मद अली जिन्ना कार्यकारी परिषद में मौलाना आजाद को मुस्लिम नेता के तौर पर शामिल करने में सहमत नहीं थे. उनका तर्क था कि मौलाना आजाद कांग्रेस के नेता हैं न कि मुस्लिम नेता. इस कॉन्फ्रेंस में बापू गांधी, नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और मौलाना आजाद सहित कुल 21 भारतीय नेता थे. ये भी पढ़ें:कोरोना व प्लास्टिक ने प्रभावित किया हस्तशिल्प कारोबार, 20 हजार कारीगर हुए बेरोजगार
कैबिनेट मिशन की बैठक में देश की आजादी पर हुई थी चर्चा: दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो चुका था. इस युद्ध ने ग्रेट ब्रिटेन की ताकत को गहरा झटका दिया था. अंग्रेज शासक अब भारत पर शासन करने में कामयाब होते नहीं दिख रहे थे. ऐसे में उन्होंने भारत को आजादी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. इसके लिए शिमला में कैबिनेट मिशन की बैठक बुलाई गई. ये बैठक 1946 की गर्मियों में हुई थी. इसमें कांग्रेस सहित मुस्लिम लीग के नेता मौजूद थे. कैबिनेट मिशन की बैठक में भारत को आजाद करने के ड्राफ्ट पर चर्चा हुई. साथ ही विभाजन की नींव भी इसी बैठक में पड़ी. इस बात पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं कि विभाजन के ड्राफ्ट पर वायसरीगल लॉज में दस्तखत हुए थे या फिर एक अन्य इमारत पीटरहाफ में, लेकिन ये तय है कि ड्राफ्ट शिमला में ही चर्चा और साइन हुआ.
आजादी के बाद राष्ट्रपति निवास बनी इमारत: देश आजाद होने के बाद वायसरीगल लॉज को राष्ट्रपति निवास बनाया गया. देश के राष्ट्रपति यहां गर्मियों का अवकाश बिताने के लिए आते थे. महान शिक्षाविद् पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Former President Sarvepalli Radhakrishnan) ने इस आलीशान इमारत का सदुपयोग सुनिश्चित किया और वर्ष 1965 में इसे उच्च अध्ययन के केंद्र के तौर पर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का रूप दिया. अब ये इमारत देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है. यहां स्थापित म्यूजियम में देश की आजादी व विभाजन से संबंधित फोटो रखे गए हैं. आजादी पर लिखी गई पुस्तकें भी हैं. संस्थान की लाइब्रेरी में 1.5 लाख किताबों का खजाना है. हर साल ये इमारत सैलानियों की आमद से टिकट बिक्री के रूप में एक करोड़ तक की आमदनी करती है.
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