शिमला: सेहत के मोर्चे पर पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की सफलता का सिलसिला निरंतर जारी है. नीति (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांस्फार्मिंग इंडिया) आयोग की स्वास्थ्य सूचकांक संबंधी रिपोर्ट में ये तथ्य सामने आया है. रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सूचकांक को लेकर हिमाचल प्रदेश का देश भर के राज्यों में छठा स्थान है. बेशक देश के अन्य राज्यों के मुकाबले हिमाचल प्रदेश एक पायदान नीचे गिरा है, लेकिन परफार्मेंस के लिहाज से इस पहाड़ी राज्य ने अपनी स्थिति सुधारी है. हिमाचल का स्थान देश भर के बड़े राज्यों की श्रेणी में छठवां है. पहले हिमाचल पांचवें स्थान पर था.
बड़े राज्यों की श्रेणी में हिमाचल प्रदेश का नंबर देश के सबसे शिक्षित राज्य केरल के अलावा आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात व पंजाब के बाद है. नीति आयोग ने स्वास्थ्य सूचकांक को लेकर ये रिपोर्ट मंगलवार को जारी की. रिपोर्ट के अनुसार केरल लगातार पहले नंबर पर बना हुआ है, परंतु दिलचस्प तथ्य ये है कि पहले के मुकाबले यानी 2015-16 के आधार पर केरल का सूचकांक गिरा है. वर्ष 2015-16 में केरल का सूचकांक 76.55 था. अब यानी 2017-18 में ये गिरकर 75.55 हो गया है. इसके बावजूद केरल का पहला नंबर बरकरार है. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश ने अपनी स्थिति सुधारी है. साल 2015-16 हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य सूचकांकों में 5वें स्थान पर था. अब हिमाचल छठे स्थान पर है. आंध्र प्रदेश ने अपना प्रदर्शन सुधारा है.
नीति आयोग के सदस्य विनोद कुमार पाल ने स्वास्थ्य सूचकांकों में और सुधार की आशा जताई है. विनोद कुमार पाल के अनुसार साल 2030 के एसडीजी यानी (सस्टेनेबल डवलपमेंट गोल) को हासिल करने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का बजट बढ़ाने की जरूरत है. केंद्र सरकार को सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 और राज्य सरकारों को जीडीपी का 4.7 से 8 प्रतिशत तक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करना होगा. आयोग ने एसडीजी के मुताबिक प्रति हजार नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में कमी लाने का लक्ष्य तय किया है. इसके अलावा टीबी जैसी बीमारियों पर भी नियंत्रण की जरूरत है.