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पहले के मुकाबले मजबूत हुई हिमाचल की सेहत, नेशनल लेवल पर एक पायदान नीचे गिरा पहाड़ी राज्य

हिमाचल प्रदेश का देश भर के राज्यों में छठा स्थान है. देश के अन्य राज्यों के मुकाबले हिमाचल प्रदेश एक पायदान नीचे गिरा है, लेकिन परफार्मेंस के लिहाज से इस पहाड़ी राज्य ने अपनी स्थिति सुधारी है. ये तथ्य नीति आयोग की स्वास्थ्य सूचकांक संबंधी रिपोर्ट में सामने आया है.

HP got 6th place in national health index across India

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Published : Jun 25, 2019, 10:09 PM IST

Updated : Jun 25, 2019, 11:34 PM IST

शिमला: सेहत के मोर्चे पर पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की सफलता का सिलसिला निरंतर जारी है. नीति (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांस्फार्मिंग इंडिया) आयोग की स्वास्थ्य सूचकांक संबंधी रिपोर्ट में ये तथ्य सामने आया है. रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सूचकांक को लेकर हिमाचल प्रदेश का देश भर के राज्यों में छठा स्थान है. बेशक देश के अन्य राज्यों के मुकाबले हिमाचल प्रदेश एक पायदान नीचे गिरा है, लेकिन परफार्मेंस के लिहाज से इस पहाड़ी राज्य ने अपनी स्थिति सुधारी है. हिमाचल का स्थान देश भर के बड़े राज्यों की श्रेणी में छठवां है. पहले हिमाचल पांचवें स्थान पर था.

बड़े राज्यों की श्रेणी में हिमाचल प्रदेश का नंबर देश के सबसे शिक्षित राज्य केरल के अलावा आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात व पंजाब के बाद है. नीति आयोग ने स्वास्थ्य सूचकांक को लेकर ये रिपोर्ट मंगलवार को जारी की. रिपोर्ट के अनुसार केरल लगातार पहले नंबर पर बना हुआ है, परंतु दिलचस्प तथ्य ये है कि पहले के मुकाबले यानी 2015-16 के आधार पर केरल का सूचकांक गिरा है. वर्ष 2015-16 में केरल का सूचकांक 76.55 था. अब यानी 2017-18 में ये गिरकर 75.55 हो गया है. इसके बावजूद केरल का पहला नंबर बरकरार है. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश ने अपनी स्थिति सुधारी है. साल 2015-16 हिमाचल प्रदेश स्वास्थ्य सूचकांकों में 5वें स्थान पर था. अब हिमाचल छठे स्थान पर है. आंध्र प्रदेश ने अपना प्रदर्शन सुधारा है.

नीति आयोग के सदस्य विनोद कुमार पाल ने स्वास्थ्य सूचकांकों में और सुधार की आशा जताई है. विनोद कुमार पाल के अनुसार साल 2030 के एसडीजी यानी (सस्टेनेबल डवलपमेंट गोल) को हासिल करने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का बजट बढ़ाने की जरूरत है. केंद्र सरकार को सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 और राज्य सरकारों को जीडीपी का 4.7 से 8 प्रतिशत तक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करना होगा. आयोग ने एसडीजी के मुताबिक प्रति हजार नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में कमी लाने का लक्ष्य तय किया है. इसके अलावा टीबी जैसी बीमारियों पर भी नियंत्रण की जरूरत है.

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नीति आयोग में हिमाचल का भी प्रतिनिधित्व
यहां उल्लेखनीय है कि नीति आयोग में छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश को महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व मिला हुआ है. आयोग के सदस्य विनोद कुमार हिमाचल प्रदेश से संबंध रखते हैं. विश्वविख्यात बाल रोग विशेषज्ञ विनोद कुमार पाल बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े कई मामलों में अपने शोध को लेकर पूरी दुनिया में चर्चित व सम्मानित हैं. डॉ. पॉल हिमाचल के कांगड़ा जिला के देहरा के रहने वाले हैं. वे एम्स दिल्ली में पीडियाट्रिक्स डिपार्टमेंट के एचओडी रहे हैं. डॉ. पॉल को हैल्थ साइंस रिसर्च में देश के सबसे बड़े सम्मान डॉ. बीआर अंबेडकर सेंटेनरी अवार्ड मिल चुका है. उल्लेखनीय है कि इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च की तरफ से दिया जाने वाला ये सम्मान देश का सर्वोच्च रिसर्च सम्मान है. डॉ. पॉल को वर्ष 2009 के लिए ये सम्मान मिला था.

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साल 2009 के डॉ. बीआर अंबेडकर सेंटेनरी अवार्ड समारोह में बताया गया था कि डॉ. पॉल ने नवजात शिशुओं की स्वास्थ्य समस्याओं और बाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहद सराहनीय शोध कार्य किए हैं. समय से पूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं के लिए जीवनरक्षक दवाओं को विकसित करने के साथ-साथ उनके शोध ने बाल स्वास्थ्य में कई आयाम स्थापित किए हैं। डॉ. पॉल की सबसे बड़ी कामयाबी आज से दो दशक पहले बिना किसी बजट के नवजात शिशुओं की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों पर शोध के लिए नेशनल न्यूनेटल पैरीनेटल डाटाबेस नेटवर्क तैयार किया था. उन्होंने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च को न्यूबोर्न बेबी हैल्थ को लेकर ब्लू प्रिंट तैयार करने में सहयोग दिया है. उनके शोध के कारण ही भारत में न्यू बोर्न बेबी केयर का नया अध्याय शुरू हुआ.

Last Updated : Jun 25, 2019, 11:34 PM IST

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