शिमला: हिमाचल हाई कोर्ट ने जन्म प्रमाण पत्र से जुड़ी झूठी जानकारी देकर सेवा अवधि बढ़ाने की गुहार लगाने वाली याचिका खारिज कर दी है. हाई कोर्ट के न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने किन्नौर जिले की रहने वाली लोबसांग डोलमा की याचिका को आधारहीन बताया. इसके साथ ही अदालत ने बिजली बोर्ड को आदेश दिए कि यदि याचिकाकर्ता ने झूठे जन्म प्रमाण पत्र की एवज में निर्धारित सेवा अवधि से अधिक काम किया है तो उससे वेतन को वसूला जाए.
न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने अपने आदेशों में यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता अदालत द्वारा पारित अंतरिम आदेश का लाभ नहीं ले सकती. मामले के अनुसार याचिकाकर्ता वर्ष 1983 से दैनिक वेतन भोगी के रूप में विद्युत बोर्ड में कार्य कर रही थी. वर्ष 1998 में उसकी सेवाएं नियमित की गई. उसके बाद उसे सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड में भेज दिया गया.
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि बिजली बोर्ड ने उसकी जन्मतिथि 6.11. 1957 दर्ज की है. वर्ष 2016 में उसे पता चला कि इस जन्मतिथि के आधार पर वह नवंबर 2017 में सेवानिवृत्त होने वाली है. याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि बिजली बोर्ड ने उसकी जन्मतिथि गलत दर्ज की है जबकि उसकी सही जन्मतिथि 6 नवंबर 1965 है. पंचायत रिकॉर्ड के हिसाब से याचिकाकर्ता ने अपनी जन्मतिथि के संशोधन के लिए बिजली बोर्ड के समक्ष प्रतिवेदन किया
इस प्रतिवेदन को बिजली बोर्ड ने खारिज कर दिया था. अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता की जन्म तिथि 6 नवंबर 1957 दर्ज की गई है. जहां पर प्रार्थी ने अपने हस्ताक्षर भी किए हैं. अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा झूठा जन्म प्रमाण पत्र दिए जाने के पीछे यह कारण है ताकि वह अपनी सेवा अवधि को बढ़ा सके. झूठे जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर याचिकाकर्ता 8 वर्ष का अतिरिक्त सेवा अवधि का लाभ उठाना चाहती थी. अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि याचिकाकर्ता ने तथ्यों के विपरीत याचिका दर्ज की है जिसे अदालत ने खारिज कर दिया.
ये भी पढे़ं-अपने ही नेताओं का मान-आदर नहीं करते कांग्रेसी, केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए लेते हैं उनका नाम: शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर