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कृषि बिल के विरोध में किसानों ने भरी हुंकार, प्रदेश भर में हुए प्रदर्शन - शिमला में गरजे किसान

कृषि विधेयेकों के खिलाफ हिमाचल किसान सभा ने प्रदेश भर में प्रदर्शन कर रोष जताया है. हिमाचल किसान सभा ने इन विधेयकों को किसान विरोधी बताया है और इन बिलों को वापस लेने की मांग की है. वहीं, प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय प्रशासन के जरिए राष्ट्रपति को अपनी मांगों से जुड़ा ज्ञापन सौंपे हैं.

himachal kisan sabha
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Published : Sep 25, 2020, 8:12 PM IST

शिमलाः केंद्र की मोदी सरकार की ओर से तीन कृषि विधेयक पारित किए गए हैं. इन अध्यादेशों के विरोध में शुक्रवार को विभिन्न किसान व अन्य राजनीतिक संगठनों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. वहीं, इस पर हिमाचल के विभिन्न जिलों में किसान संगठनों ने सड़कों पर उतर विरोध प्रदर्शन किया.

इन विधेयकों के विरोध में हिमाचल किसान सभा ने प्रदेश के 8 जिलों शिमला, कुल्लू, कांगड़ा, मंडी, सिरमौर, सोलन, किन्नौर, हमीरपुर, ऊना में विरोध प्रदर्शन किए. हिमाचल किसान सभा ने इन विधेयकों को किसान विरोधी बताया है और इन बिलों को वापस लेने की मांग की है. वहीं, प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय प्रशासन के जरिए राष्ट्रपति को अपनी मांगों से जुड़ा ज्ञापन सौंपे हैं.

शिमला में गरजे किसान

राजधानी शिमला में डीसी कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया गया. इस दौरान हिमाचल किसान सभा कि राज्याध्यक्ष कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ आज पूरे देश में किसान व अन्य संगठन लामबंद है और जब तक सरकार इन विधेयकों को निरस्त करके किसानों की सहमति से किसान पक्षीय रूप नहीं देती तब तक आंदलोन जारी रहेंगे.

वीडियो.

मंडी में सीटू व किसान सभा का प्रदर्शन

इसी क्रम में मंडी में किसान सभा और सीटू ने मिलकर विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार ने तीन बिलों को संसद से पास करवाकर किसानों के ऊपर एक बहुत बड़ा हमला बोला है. हिमाचल किसान सभा के जिला महासचिव जोगिंदर वालिया ने कहा कि सरकार मंडियों का संचालन नहीं करेगी, जिससे किसान उत्पाद को बेचना मुश्किल होगा. उन्होंने कहा कि सरकार के अनुसार बड़ी कंपनियां किसान का उत्पाद खरीदेगी. उन्होंने इसे किसान के साथ धोखा बताया है.

कुल्लू में रैली निकाल कर जताया रोष

वहीं, जिला कुल्लू में हिमाचल किसान सभा प्रदर्शन करते हुए रोष जताया. इस दौरान ढालपुर में सैकड़ों महिलाओं ने एक रैली भी निकाली. साथ ही डीसी कुल्लू के कार्यालय के बाहर धरना दिया गया. इसके बाद डीसी कुल्लू के माध्यम से अपनी मांग से जुड़ा ज्ञापन राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा गया.

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हिमाचल किसान सभा के राज्य सचिव होतम सोंखला ने कहा कि यह कानून किसानों की उपज की सीधी खरीद की पूरी छूट देता है, जिस का असली मकसद यह है कि बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों के लिए खरीददारी की खुली छूट होगी और इन कंपनियों पर किसी तरह का टैक्स नहीं लगाया जाएगा, इससे किसानों को नुकसान है.

छोटे किसानों पर पड़ेगा अधिक प्रभाव

वहीं, किसान भूप सिंह का कहना है कि कृषि उपज मंडियों के खत्म होने से इसका सबसे बुरा असर छोटे किसानों पर होगा और वह अपने उत्पाद को कहीं भी नहीं बच पाएगा, जिसके चलते वह बड़ी कंपनियों के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाएगा.

कृषि विधेयकों का विरोध जताते हुए प्रदर्शनकारी

कृषि विधेयकों को बताया किसान विरोधी

उपमंडल करसोग में तीन अध्यादेशों के खिलाफ किसान लामबंद हुए. हिमाचल किसान सभा के बैनर तले शुक्रवार को किसानों ने करसोग में एसडीएम कार्यालय के बाहर धरना प्रदर्शन किया और केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ नाराजगी जताते हुए जमकर नारेबाजी की. किसान नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार ने जिस तरीके से कोरोना महामारी के दौरान किसान विरोधी तीन अध्यादेश लाए हैं और संसद में इन बिलों को बिना विपक्ष की भागीदारी व गैर संसदीय प्रकिया से पास किया है. उन्होंने इन बिलों को किसान विरोधी बताया है.

वीडियो.

संसद में विपक्ष की आवाज को किया गया अनसुना

उपमंडल सरकाघाट में में कृषि बिलों के विरोध में धरना-प्रदर्शन किया गया. प्रदर्शन के बाद एसडीएम सरकाघाट के माध्यम से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ज्ञापन सौंपा गया. इस दौरान सीटू के जिला अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह ने कहा कि जब देश कोरोना महामारी से जूझ रहा था तो केंद्र सरकार ने 5 जून को ये तीन कृषि अध्यादेश जारी कर दिए थे और अब इन्हें संसद में संख्या बल के आधार पर जोर जबरदस्ती बिना बहस के पारित कर दिया और विपक्षी सांसदों की इस पर बहस करने और वोटिंग कराने की मांग को अनसुना कर दिया.

हिमाचल किसान प्रदर्शन के दौरान

न्यूनतम समर्थन मूल्य दिए जाने की मांग

उन्होंने कहा कि इन बिलों के लागू होने से विपणन समितियों का असस्तित्व खत्म हो जाएगा. इसलिये किसानों की मांग है कि उनके उत्पाद को सरकार द्वार नियंत्रित मंडियों व विपणन समितियों के माध्यम से ही खरीदा जाए और उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाए और ये सब डॉक्टर स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के आधार पर हो.

बता दें कि विधेयकों के प्रावधानों के खिलाफ विभिन्न किसान व अन्य संगठन सरकार से इस बिल को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. कई किसान संगठनों का कहना है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को किसानों का कानूनी अधिकार घोषित करे. इसके अलावा भी कई प्रावधानों को लेकर किसानों में असंतोष है.

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