शिमलाः हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है. हाईकोर्ट ने कहा कि अदालतों को कृत्रिम बुद्धिमता वाली मशीन की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए. प्रार्थी की परेशानी को समझते हुए उसका न्यायपूर्ण हल पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. हाईकोर्ट ने यह व्यवस्था हिमाचल प्रदेश सहकारी बैंकों के कर्मियों की सेवाओं से जुड़े मामलों को रिट याचिकाओं के माध्यम से चुनौती देने वाले मुद्दे पर दी.
हाईकोर्ट ने इस मसले पर अदालतों की स्थिति स्पष्ट की और कहा कि अदालतों को न्यायोन्मुखी नजरिया अपनाना चाहिए. न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने सहकारी बैंकों के कर्मियों की सेवाओं से जुड़े मामलों में रिट याचिकाओं को योग्य बताते हुए कानून की यह व्यवस्था स्पष्ट की.
न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा कि भले ही कोई संस्था राज्य या राज्य के अंगों की परिभाषा में न आती हो, तब भी तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए ऐसी संस्थाएं रिट याचिकाओं के माध्यम से हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार के तहत आती हैं.
अदालत ने हिमाचल प्रदेश स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक के कर्मियों की सीनियोरिटी और प्रमोशन से जुड़े विवाद का निपटारा करते हुए रजिस्ट्रार को-ऑपरेटिव सोसायटीज को आदेश जारी किए कि वो 31 दिसम्बर तक बैंक कर्मियों की सेवा शर्तों में न्यायोचित व उचित प्रक्रिया का प्रावधान करे. हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार को ग्रेड-चार के सभी प्रमोटी कर्मियों की सीनियोरिटी को फिर से तैयार करने का निर्देश भी दिया.
याचिकाओं का निपटारा करते हुए कोर्ट ने कहा कि अदालतों का गठन ही ठोस और सारभूत न्याय प्रदान करने के लिए किया गया है. न्याय प्रदान करने वाली संस्था होने के नाते अदालतों को उसके समक्ष आने वाले मामलों को कुछ ज्यादा ही तकनीकी होकर दोषपूर्ण या आधी अधूरी प्लीडिंग को आधार बनाकर खारिज नहीं कर देना चाहिए. जहां तक हो सके अदालतों को मामले की तह तक जाते हुए प्रार्थी की समस्या को समझते हुए उसका हल करने की कोशिश करनी चाहिए.
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