शिमला:प्रदेश उच्च न्यायालय ने विद्युत बोर्ड के कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों की सिफारिश पर किए जा रहे तबादला आदेश को गैर कानूनी पाते हुए कड़ा संज्ञान लिया है. शनिवार को कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्तिगत कर्मचारी, अधिकारी या मान्यता प्राप्त अथवा गैर-मान्यता प्राप्त संघ का पदाधिकारी किसी भी जबरदस्ती या डराने-धमकाने या अनुशासनहीन कृत्यों या व्यवहार में लिप्त होता है, तो नियोक्ता उसके खिलाफ हमेशा कानूनी तौर पर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होता है.
न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि बोर्ड, निगम या कोई अन्य संस्थान, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 और 226 के तहत 'राज्य' की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं, किसी भी व्यक्ति विशेष अथवा संघ या संगठन द्वारा की गई सिफारिशों पर विचार करने और निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं है.
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आइन्दा कर्मचारी संघ या यूनियन की सिफारिश सम्बन्धी मामला कोर्ट के समक्ष आता है जिसमें कर्मचारी की सहमति न हो तो संघ या यूनियन को अन्य कार्यवाही के अलावा अयोग्य ठहरा दिया जाएगा. कोर्ट ने आदेश दिए कि कोर्ट की रजिस्ट्री इस आदेश की प्रति हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव सरकार के सभी विभागों, सभी बोर्डों, निगमों आदि को निर्देश जारी करने के लिए भेजे.
न्यायालय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सुशील कुमार के मामले में दिए गए निर्णय का कर्मचारी संघों या यूनियनों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है, क्योंकि वे खुले तौर पर गैर-सहमति तबादले के लिए सिफारिशें करना जारी रखे हुए हैं, जैसा कि उक्त मामले के तथ्यों से स्पष्ट है. न्यायालय ने हालांकि समय से पहले दायर उक्त याचिका को खारिज कर दिया.
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