शिमला: हिमाचली युवाओं के खून में नशे का जहर घुल रहा है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) के चिंता जताने और पुलिस के सक्रिय अभियान के बावजूद प्रदेश के युवा इस जहर के चंगुल में फंस रहे हैं. हालांकि हिमाचल सरकार ने इस सामाजिक बुराई के खिलाफ सख्ती बरतते हुए दो ग्राम भी चरस, गांजा या अफीम मिलने पर सीधे जेल जाने का प्रावधान किया है. फिर भी तमाम सख्तियां नाकाफी साबित हो रही हैं. प्रदेश में नशे की रोकथाम के लिए शुरू किए अभियान में पिछले कुछ वर्षों से तेजी जरूर आई है, लेकिन प्रदेश का युवा लगातार इसकी गिरफ्त में फंसता जा रहा है.
प्रदेश में वर्ष 2018 में स्वास्थ्य विभाग द्वारा करवाए गए सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए. सर्वे में पता चला कि दसवीं से 12वीं कक्षा के छात्रों में से 42 फीसद विद्यार्थी कोई न कोई नशा करते हैं. जिसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा और कोर्ट के कुछ अहम सुझाव भी दिए जिनको सरकार द्वारा अमलीजामा पहनाने की कोशिश सरकार द्वारा शुरू हो गई है और नशे के दृष्प्रभावों के बारे जानकारी प्राप्त करने के लिए निःशुल्क हेल्पलाइन 104 को और सुदृढ़ किया जा रहा है.
नशामुक्त हिमाचल के लिए हाईकोर्ट ने दिए हैं कई सुझाव:अदालत ने कहा कि स्कूली पाठ्यक्रम में जागरूकता अभियान के तहत नशे के दुष्परिणामों पर पाठ होने चाहिए. इसके अलावा पंचायत स्तर पर अमल में लाए जाने लायक सुझाव भी हाईकोर्ट ने दिए हैं. हाईकोर्ट ने नशीले पदार्थों की तस्करी पर गहरी चिंता जताई है. अदालत ने कहा कि यदि राज्य सरकार चाहे तो प्रदेश नशा मुक्त राज्य बन सकता है.
हाईकोर्ट ने दिए ये अहम सुझाव: हाईकोर्ट ने सुझाव दिए हैं कि स्कूली पाठ्यक्रम में नशे के दुष्परिणाम से अवगत करवाने वाले चैप्टर शामिल हों. नियमित रूप से लेक्चर होने चाहिए. कोर्ट ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के सरकारी व निजी स्कूलों सहित कॉलेजों व अन्य सभी शिक्षण संस्थानों में नशे का शिकार हो चुके छात्रों की पहचान की जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि नशे का शिकार हो चुके युवाओं की काउंसलिंग की जाए. उन्हें सद्भाव से समझाया जाए. ताकि वे फिर से नशे का शिकार न हो सकें.
कोर्ट ने अपने आदेशों में कहा कि मादक पदार्थों को औषधियों में प्रयोग करने के लिए रिसर्च एजेंसियों की सेवा ली जाए. इससे अवैध तरीके से मादक पदार्थों के व्यवसाय से जुड़े स्थानीय लोग भांग आदि के पौधों को औषधियां बनाने के लिए प्राथमिकता दें. पंचायत का जो भी पदाधिकारी नशीले पदार्थों के धंधे में शामिल हो, उसे अयोग्य करार दिया जाए. इसके लिए पंचायती राज अधिनियम में संशोधन किया जाए. मादक पदार्थों से मुक्त पंचायतों को उचित इनाम दिया जाए. मादक पदार्थों के बारे में जानकारी देने वाले व्यक्ति को भी सम्मानित किया जाना चाहिए. साथ ही पुलिस ऐसे व्यक्ति की सुरक्षा का इंतजाम करे. नशे का शिकार हो चुके लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करने के भी प्रबंध किए जाने चाहिए. स्कूलों, कॉलेजों व अन्य शिक्षण संस्थानों के आसपास नियमित रूप से गश्त की जाए, ताकि वहां कोई तस्कर नशे का सामान न बेच सके.
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान पुलिस विभाग की ओर से पेश शपथ पत्र का अध्ययन करने के बाद पाया गया कि वर्ष 2021 अप्रैल-मई व जून में भारी मात्रा में मादक पदार्थ पकड़े गए हैं. हाईकोर्ट ने कहा कि पहले तो तस्कर मुफ्त में ही ये पदार्थ बेचते हैं, फिर जब युवा इसके आदी हो जाते हैं तो उन्हें पैसे देकर नशा खरीदना पड़ता है. नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए गरीब घरों के बच्चों को प्रयोग किया जाता है. न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार तस्करों को पकड़ने के लिए साधनों की कमी का बहाना नहीं बना सकती है. इससे पहले हाईकोर्ट ने नशे के खिलाफ जॉइंट टास्क फोर्स का गठन किया था, जिसने बाद में कुल्लू के कसोल व मलाणा से भारी मात्रा में मादक पदार्थ व नकदी पकड़ी थी. हाईकोर्ट ने ये पाया है कि इन क्षेत्रों में नशा बेचने का धंधा वहां के स्थानीय लोगों के सहयोग से पनपा है.
अपने आदेश में हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (Himachal Pradesh State Legal Services Authority) की सेवाएं लेने के आदेश भी दिए हैं. अदालत ने कहा कि विशेष जांच दल गठित किए जाएं, जिसमें पुलिस के अलावा अन्य जिम्मेदार एजेंसियां भी शामिल हों. अभियोजन विभाग को यह यह निर्देश देने का सुझाव दिया है कि उनकी ओर से न्यायालय में पेश होने वाले अधिकारी इस तरह के मामलों में जमानत याचिका का विरोध करें, चाहे पकड़ा गया मादक पदार्थ थोड़ी मात्रा में ही क्यों न हो.
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Chief Minister Jairam Thakur) ने मंत्रिमंडल की बैठक में भी नशा रोकथाम के लिए अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि राज्य में मादक पदार्थों की तस्करी से जुडे़ लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने के साथ-साथ लोगों विशेषकर स्कूलों, कॉलेजों में पढ़ रहे विद्यार्थियों को नशे के दुष्प्रभाव के बारे जागरूक करने के लिए कदम उठाए जाएं. नशा निवारण के लिए आयोजित विशेष बैठकों में शिक्षा विभाग बच्चों को नशे की बुरी आदत के कारण पड़ने वाले दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करने के लिए विशेष अभियान चलाने पर सहमति बनी. जिसके तहत अध्यापकों को डाइट व एसइआरटी में प्रशिक्षण देकर नशाखोरी के प्रति संवेदनशील व जागरूक किया जाएगा ताकि वे स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को इस बुरी आदत से जागरूक कर सकें.