शिमला: हिमाचल प्रदेश में हर साल वनों में आग लगने की डेढ़ हजार से अधिक घटनाएं पेश आती हैं. गर्मी बढ़ते ही प्रदेश में जंगलों में आग लगने के मामले भी बढ़ने लगे हैं. राजधानी शिमला के आसपास के जंगलों की बात करें तो यहां भी आग लगने के मामले सामने आ रहे हैं. आग से धधक रहे हैं. शिमला के तारा देवी में (Fire In Tara Devi Forest) जंगल और अनाडेल के जंगल में भी (Fire In Annadale Forest) आग लगने का मामला सामने आया है. आग पर काबू पाने के लिए दमकल विभाग की टीमें मुस्तैद हैं, लेकिन कई ऐसी भी जगह हैं जहां दमकल विभाग की गाड़ियां नहीं पहुंच पाती. जिस वजह से विभागीय टीम को आग पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है.
हालांकि दमकल विभाग के साथ-साथ स्थानीय लोग भी आग बुझाने का प्रयास (Fire in Shimla Taradevi forest) कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से जंगलों में आग लगी है. ये नाकाफी है. दरअसल गर्मियां बढ़ते हीहिमाचल प्रदेश के जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया है. प्रदेश में आए दिन जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं. वहीं, अग्निशमन विभाग द्वारा भी लोगों को जंगलों में आग लगने के कारणों के बारे में जागरूक किया जा रहा है, बावजूद इसके लोगों की लापरवाही के कारण जंगलों में आग लग रही है. ताजा मामले में राजधानी शिमला के समरहिल के जंगल में आग (Fire incident In shimla) लगी है.
हर साल फॉरेस्ट फायर सीजन में छुट्टियां होती हैं रद्द: हिमाचल प्रदेश में वन विभाग (Forest Department in Himachal Pradesh) अलग-अलग स्तरों पर कार्य करता है. वन विभाग, वन्य प्राणी विंग के अलावा वनों की देखभाल के लिए अगल-अलग सैक्शन काम करते हैं. हिमाचल प्रदेश में कुल 2095 वन बीट हैं. इनमें से 339 बीट अत्यंत संवेदनशील हैं. हर साल फॉरेस्ट फायर सीजन में डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर यानी डीएफओ से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तक की छुट्टियां 15 अप्रैल से 15 जून तक कैंसल की जाती हैं.
इस दौरान स्थान विशेष पर तैनात वन कर्मी किसी आपात स्थिति के अलावा अवकाश नहीं ले सकते. इस बार फॉरेस्ट फायर सीजन एक पखवाड़ा शुरू हो गया. जिसके कारण वन विभाग ने 4000 कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं. जिन कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द हुई हैं उनमें से अधिकांश कर्मी अति संवेदनशील बीटों पर तैनात हैं. विभाग ने छुट्टियों पर फैसला लेने से पूर्व इन बीटों की छंटनी कर दी है.
प्रदेश भर में लगभग 50 फीसदी बीटें ऐसी हैं, जहां वनों में आग लगने की घटनाएं करीब हर साल होती रहीं हैं. इन बीटों पर तैनात डीएफओ से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं. हिमाचल प्रदेश में वन विभाग के तहत विभिन्न स्तरों पर करीब 2095 फॉरेस्ट बीट हैं. इनमें से 182 बीट वाइल्ड लाइफ की हैं, जबकि 1913 बीटें वन विभाग के पास हैं. इन सभी बीटों को 585 ब्लॉक में बांटा गया है. इनमें 515 ब्लॉक वन विभाग के पास हैं, जबकि 70 ब्लॉक वाइल्ड लाइफ के पास हैं.
नई घास की लालच में स्थानीय लोग लगा देते हैं आग: आम तौर पर देखा गया है कि वनों में नेचुरल फॉरेस्ट फायर की घटनाएं कम होती हैं, लेकिन अधिकांश घटनाएं लोगों द्वारा अनजाने व जानबूझ कर आग लगा देते हैं. स्थानीय लोग नई घास के लालच में जंगलों में जानबूझ कर आग लगा देते हैं. इसके अलावा अवैध कटान के बाद सुबूत मिटाने के लिए पेड़ों के ठूंठ जलाने के लिए अपराधी वनों को आग के हवाले कर देते हैं. कुछ लोग गुच्छी का उत्पादन बढ़ाने के लिए खरपतवार व घास जलाने के लिए और कई बार वन्य प्राणियों को पकड़ने या शिकार के लिए भी वनों को आग के हवाले कर देते हैं.
हिमाचल में जगलों में आग लगने से हार साल लाखों का नुकसान: हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2015-16 में वनों में आग लगने की 672 घटनाएं सामने आई थी, जिसके कारण 1.34 करोड़ का नुकसान हुआ. हालांकि आग लगने के कारण वन्य प्राणी भी मौत का शिकार होते हैं. इसके अलावा जैव विविधता को भी नुकसान होता है. इस तरह नुकसान को मापने का कोई खास पैमाना तय नहीं किया जा सकता. फिर भी हर साल करोड़ों रुपए की वन संपदा नष्ट होना अच्छी बात नहीं है. इसी तरह वर्ष 2016-17 में वनों में आग लगने के 1832 मामले सामने आए, जिसके कारण 3.50 करोड़ की वन संपदा नष्ट हो गई.