शिमला: भारत के कई शहरों में आने वाले समय में अप्रत्याशित बिजली संकट खड़ा होने की आशंका जताई जा रही है. देश में 135 कोयला आधारित बिजली संयंत्र हैं. एक अनुमान के अनुसार यह कुल बिजली उत्पादन का 70 फीसदी है. इनमें से आधे से अधिक कोयले की तंगी से जूझ रहे हैं. ऐसे में ऊर्जा राज्य हिमाचल अहम भूमिका निभा सकता है. प्रदेश में जल विद्युत क्षेत्र में कुल 27,436 मेगावाट क्षमता का आंकलन किया है. अभी हिमाचल में 10,519 मेगावाट ऊर्जा का विभिन्न क्षेत्रों से दोहन किया जा रहा है. जबकि राज्य की प्रतिदिन विद्युत आवश्यकता डेढ़ हजार मेगावाट है. इसमें घरेलू उपभोक्ताओं और उद्योग दोनों की जरूरत पूरी हो जाती है.
कोयले की आपूर्ति में कमी चिंता का विषय है, क्योंकि इससे महामारी के बाद पटरी पर लौट रही अर्थव्यवस्था फिर से पटरी से उतर सकती है. इसके अलावा दुनियाभर में कोयले के दाम 40 फीसदी तक बढ़े हैं, जबकि भारत का कोयला आयात दो साल में सबसे निचले स्तर पर है, लेकिन हिमाचल में ऊर्जा की स्थिति को देखें तो प्रदेश में जल विद्युत क्षेत्र में कुल 27,436 मेगावाट क्षमता का आंकलन किया है. परन्तु इसमें से 24,000 मेगावाट को ही दोहन योग्य पाया है, शेष क्षमता को पर्यावरण बचाने, परिस्थितिक संतुलन एवं विभिन्न सामाजिक कारणों से दोहन योग्य नहीं पाई गई है.
राज्य जल विद्युत के विकास को सरकारी एवं निजी क्षेत्रों की सक्रिय भागीदारी से गति प्रदान हो रही है तथा जल विद्युत विकास को नदियों पर बनी विद्युत परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित रखा है. अभी तक प्रदेश में 10,519 मेगावाट ऊर्जा का विभिन्न क्षेत्रों से दोहन किया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड 487.55 मेगावाट विद्युत, एचपीपीसीएल-165 मेगावाट, केंद्र और राज्य सरकार संयुक्त उपक्रम 7,457.73 मेगावाट, हिमऊर्जा (हिमाचल सरकार) 2.37 मेवागाट, हिमऊर्जा निजी क्षेत्र 291.45 मेगावाट, निजी क्षेत्र की कंपनियां जो पांच मेगावाट से अधिक क्षमता वाली हैं 1,955.90 मेवागाट क्षमता की ऊर्जा उत्पन्न करती हैं. हिमाचल प्रदेश सरकार का भाग 159.17 मेगावाट को मिलाकर प्रदेश में वर्तमान समय में कुल 10 हजार 519 मेगावाट विद्युत का दोहन होता है.
हिमाचल में इस तरह के विद्युत संकट की आशंका दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है, क्योंकि हिमाचल प्रदेश की जल विद्युत पर निर्भरता है और प्रदेश पड़ोसी राज्यों को बैंकिंग माध्यम से विद्युत का आदान-प्रदान करता है. गर्मियों के मौसम में प्रदेश पूरी क्षमता के साथ विद्युत उत्पादन करता है और बैंकिंग प्रणाली में पड़ोसी राज्यों को उपलब्ध करवाता है. उसके बाद सर्दियों में विद्युत उत्पादन घटने की स्थिति में बैंकिंग में दी गई विद्युत वापस ली जाती है. राज्य की दैनिक विद्युत आवश्यकता डेढ़ हजार मेगावाट है, जिसके तहत घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं और उद्योग की जरूरत पूरी होती है. यही व्यवस्था पंजाब, हरियाणा और ग्रिड के साथ भी रहती है. इसके अलावा अगर किन्हीं कारणों से सरकार को भविष्य में विद्युत आपूर्ति की कोई आशंका लगती है तो जरूरत पड़ने पर स्थानीय स्तर पर जल विद्युत परियोजनाओं से विद्युत क्रय की जा सकती है.
वर्तमान समय में भी हिमाचल अन्य राज्यों को बिजली बेच रहा है. इस समय बिजली के एक यूनिट का औसतन दाम 12 रुपये तक मिल रहा है. एक से डेढ़ माह में हिमाचल को बिजली के मिलने वाले दाम में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. एक अनुमान के अनुसार हिमाचल अन्य राज्यों को 80 लाख यूनिट बिजली रोजाना बेच रहा है. हालांकि ठंड बढ़ने के कारण अब बिजली उत्पादन धीरे-धीरे कम होना शुरू हो गया है और घरेलू उपभोक्ता की खपत बढ़ने लगी है. इसी कारण अब बिजली बेचने की दर में कमी आई है. इससे पहले हिमाचल 300 लाख यूनिट रोजाना बिजली बेचता था.