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मेरा वंशवाद-तेरा वंशवाद: चुनावी साल में परिवारवाद के इर्द-गिर्द घूमेगी हिमाचल की राजनीति

हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 (himachal assembly elections 2022) में अभी भले ही वक्त है, लेकिन प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियां अभी से चरम पर पहुंच गई हैं. ऐसा नहीं है कि वंशवाद की राजनीति ने अच्छे नेता नहीं दिए. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर उदाहरण हैं कि अपनी प्रतिभा के बल पर राजनीतिक परिवार से होने के बावजूद मुकाम बनाया जा सकता है. वैसे इस चुनाव में देखना रोचक होगा कि कितने बड़े नेताओं के वंश से चुनाव में टिकट दिए जाते हैं.

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हिमाचल की राजनीति

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Published : May 18, 2022, 8:03 PM IST

शिमला: पांच साल पहले वर्ष 2017 में यह अक्टूबर महीने की बात है. हिमाचल में चुनावी सरगर्मियां शुरू हो गई थी और कांग्रेस में कद्दावर नेताओं के परिवार से संबंधित लोगों को विधानसभा चुनाव का टिकट मिला तब युवा कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह ने बयान दिया था कि एक परिवार से एक ही सदस्य को टिकट मिलना चाहिए, लेकिन बाद में वीरभद्र सिंह ने अर्की से और विक्रमादित्य सिंह ने शिमला ग्रामीण से चुनाव लड़ा.

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर ने मंडी सदर से और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष बीबीएल बुटेल के बेटे आशीष बुटेल ने पालमपुर से चुनाव लड़ा इसके अलावा पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष रामनाथ शर्मा के विवेक शर्मा को कुटलैहड़ से टिकट मिला. इसी तरह पूर्व मंत्री कर्ण सिंह के बेटे आदित्य विक्रम सिंह को भी चुनाव में टिकट मिला था. वर्ष 2017 में पूर्व सांसद चंद्र कुमार के बेटे नीरज भारती चुनाव मैदान से हट गए थे. इस चुनाव में भी हिमाचल में वंशवाद विधानसभा चुनाव के दौरान मुद्दा बनेगा. मौजूदा समय में हिमाचल कांग्रेस में सत्ता का केंद्र बिंदु वीरभद्र सिंह परिवार है. सांसद प्रतिभा सिंह को कांग्रेस हाईकमान ने अध्यक्ष बनाया है. विक्रमादित्य सिंह विधायक हैं. वहीं, जुब्बल-कोटखाई में उप चुनाव के दौरान भाजपा ने स्व. नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा को टिकट नहीं दिया था.

हिमाचल में भी राजनीतिक तौर पर वंशवाद: हिमाचल में भी राजनीतिक तौर पर वंशवाद की जड़ें गहरी हैं. बड़े नामों पर गौर फरमाएं तो पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर राष्ट्रीय राजनीति में पहचान बना चुके हैं. वे पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में पावरफुल मंत्री हैं. हिमाचल कांग्रेस में वीरभद्र सिंह के नाम का छह दशक से डंका बजता आ रहा है. वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे. वर्तमान में विधानसभा में पिता-पुत्र के रूप में विधायक जोड़ी सदन में मौजूद थी.

विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र से बात करते हुए उनके बेट विक्रमादित्य सिंह. ( फाइल फोटो)

वीरभद्र सिंह के देहावसान के बाद कांग्रेस में बड़ा शून्य पैदा हुआ है. फिलहाल उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह मंडी से सांसद हैं और बेटे विक्रमादित्य सिंह विधायक हैं. भाजपा के दिग्गज नेता स्व. जगदेव चंद ठाकुर के बेटे नरेंद्र ठाकुर इस समय विधायक हैं. पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर राजनीति में सक्रिय हैं. वहीं, पूर्व वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी के बेटे अमित, पूर्व मंत्री स्व. जीएस बाली के बेटे रघुवीर सिंह बाली, पूर्व मंत्री प्रकाश चौधरी के बेटे रिंपल चौधरी, पूर्व मंत्री स्व. सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी सिंह पठानिया उपचुनाव में जीतकर विधायक बने हैं. स्व. सुजान सिंह के दामाद रवि राठौर भाजपा के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय लश्करी राम के भतीजे हैं और राजनीति में सक्रिय हैं.

हिमाचल में कद्दावर राजनीतिक परिवार: हिमाचल में एक और ताकतवर राजनीतिक परिवार स्व. पंडित सुखराम का है. पंडित सुखराम देश और प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम थे. अब उनके बेटे अनिल शर्मा विधायक हैं और पोते आश्रय ने भी राजनीति में स्थान बनाना शुरू कर दिया है. आश्रय ने 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा. अब भले ही पंडित सुखराम इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन इस साल विधानसभा चुनाव में उनके परिवार के ऊपर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी.

बेटे अनिल शर्मा और पोते आश्रय शर्मा के साथ पंडित सुखराम. ( फाइल फोटो)

वहीं, भाजपा की बात की जाए तो पार्टी के महारथी व पूर्व मंत्री गुलाब सिंह ठाकुर के बेटे सुमेंद्र ठाकुर, पूर्व सांसद रामस्वरूप के बेटे क्रांति व शांति स्वरूप भी अपने पिता का काम संभालते रहे हैं. राम स्वरूप के निधन के बाद बेटे ने टिकट की इच्छा जताई थी. वहीं धूमल परिवार से प्रेम कुमार धूमल के भाई पृथ्वीराज धूमल के बेटे अमित, ठाकुर महेंद्र सिंह के बेटे रजत और बेटी वंदना ने भी राजनीति में कदम रखा है.

पूर्व मंत्री रूपसिंह ठाकुर के बेटे अभिषेक भी राजनीति में रुचि रखते हैं. पूर्व शिक्षा मंत्री स्व. ईश्वरदास धीमान के डॉक्टर बेटे अनिल धीमान भी विधायक रहे लेकिन बाद में उन्हें टिकट नहीं मिला. भाजपा नेता महेश्वर सिंह अपने बेटे दानवेंद्र सिंह को राजनीति में मुकाम पर देखना चाहते हैं. भाजपा के सांसद रहे राजन सुशांत अपनी पत्नी सुधा सुशांत को चुनाव लड़वाने के लिए पार्टी छोड़ने की हद तक चले गए. वे अपने बेटे धैर्य सुशांत का राजनीतिक कैरियर बनाना चाहते हैं. इस समय दूसरी पीढ़ी के सफल नेताओं की बात की जाए तो कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री स्व. पंडित संतराम के बेटे सुधीर शर्मा कैबिनेट मंत्री रहे हैं.

वंशवाद की राजनीति: पूर्व विधायक मिलखीराम गोमा के वंश से यादवेंद्र गोमा कांग्रेस से विधायक रहे हैं. दिग्गज कांग्रेस नेता रहे स्व. ओपी रत्न के वारिस संजय रतन भी कांग्रेस से विधायक रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक डॉ. एमपीएस राणा का कहना है कि राजनीति से वंशवाद को अलग करना लगभग कठिन है. हालांकि भाजपा ने इस मामले में कुछ हद तक अंकुश लगाने की पहल की है. ऐसा नहीं है कि वंशवाद की राजनीति ने अच्छे नेता नहीं दिए. अनुराग ठाकुर उदाहरण हैं कि अपनी प्रतिभा के बल पर राजनीतिक परिवार से होने के बावजूद मुकाम बनाया जा सकता है. वैसे इस चुनाव में देखना रोचक होगा कि कितने बड़े नेताओं के वंश से चुनाव में टिकट दिए जाते हैं.

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