शिमला: मीरा वालिया को प्रदेश लोकसेवा आयोग का सदस्य बनाए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एल. नारायण स्वामी और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
प्रार्थी की ओर से दलील दी गई थी कि प्रतिवादी मीरा वालिया की नियुक्ति नियमों को ताक पर रख कर की गई है. ये नियुक्ति कानूनन गलत है. यह भी दलील दी गई कि मीरा वालिया के खिलाफ वर्ष 2008 में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13(1)(ई) और 13(2) के तहत स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन ब्यूरो शिमला में प्राथमिकी दर्ज की गई थी. इस मामले में विशेष जज (वन) की अदालत में चालान भी पेश कर दिया गया था.
केस में वर्ष 2013 में अनुपूरक रिपोर्ट विशेष जज (वन) की अदालत में स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन ब्यूरो ने पेश की, जिसके आधार पर मीरा वालिया को 9 सितंबर 2014 को डिस्चार्ज कर दिया गया था. लेकिन राज्य सरकार ने इन सभी तथ्यों को नजर अंदाज कर मीरा वालिया की नियुक्ति हिमाचल प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन में बतौर सदस्य की है. ये सरासर गलत है. प्रार्थी की ओर से गुहार लगाई गई कि मीरा वालिया की नियुक्ति रद्द की जाए और राज्य सरकार को लोक सेवा आयोग के सदस्य की तैनाती के लिए दिशा-निर्देश जारी करे.
प्रार्थी के अनुसार वर्ष 2008 में मीरा वालिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निजी सचिव रहे सुभाष आहलूवालिया पर पूर्व पुलिस अधिकारी बीएस थिंड के माध्यम से परवाणु के एक व्यापारी से आठ लाख रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगा था. इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई थी. वर्ष 2013 में प्रदेश में कांग्रेस सरकार के आने के बाद उस एफआईआर को रद्द किया गया था.