शिमला:राजनीति में पिता की अंगुली पकड़कर पुत्र कई गुर सीख जाते हैं. हालांकि राजनीति में वंशवाद पर बहस होती रही है, लेकिन हिमाचल में दिग्गज राजनेताओं के (Father and son in Himachal politics) बेटे सियासत में भी सफल पारी खेल रहे हैं. इस समय देश की राजनीति में अनुराग सिंह ठाकुर एक बड़ा नाम हैं. उनके पिता प्रेम कुमार धूमल दो बार हिमाचल प्रदेश के सीएम रहे हैं. धूमल हमीरपुर से सांसद भी रहे हैं और उन्होंने ही हिमाचल के लिए अलग से हिमालयन रेजीमेंट की मांग उठाई थी. अब उनके बेटे अनुराग ठाकुर केंद्रीय मंत्री हैं. जिस हमीरपुर सीट से प्रेम कुमार धूमल सांसद रहे, उसी सीट से अनुराग ठाकुर अपनी सियासी पारी में चमक बिखेर रहे हैं.
वहीं, कांग्रेस के दिग्गज राजनेता और छह बार के सीएम स्व. वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह भी धीरे-धीरे राजनीति में पैठ बना रहे हैं. वे पहली बार विधायक बने हैं. विक्रमादित्य सिंह (MLA Vikramaditya Singh) सदन के भीतर और बाहर सरकार को जोरदार तरीके से घेरते हैं. वर्ष 2017 में जिस समय वीरभद्र सिंह प्रदेश के सीएम थे, उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र शिमला ग्रामीण की जनता को सरकारी निवास ओक ओवर में बुलाया. उस दौरान वीरभद्र सिंह ने अपने मतदाताओं से कहा कि वे विक्रमादित्य सिंह को चुनाव मैदान में उतारना चाहते हैं. उसके बाद विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण से चुनाव जीते और वीरभद्र सिंह ने अपना निर्वाचन क्षेत्र बदल लिया. वीरभद्र सिंह ने अर्की से चुनाव जीतकर रिकार्ड बनाया. इस तरह सदन में पिता-पुत्र की जोड़ी पहली बार देखी गई. विक्रमादित्य सिंह अपने पिता वीरभद्र सिंह को आदर्श मानते हैं और उन्हें ही अपना राजनीतिक गुरू मानते हैं.
हिमाचल की राजनीति में कांग्रेस से ही एक कद्दावर नेता पंडित संतराम रहे हैं. उनके बेटे सुधीर शर्मा वीरभद्र सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. सुधीर शर्मा ने भी अपने पिता से ही राजनीति का ककहरा सीखा है. इसी कड़ी में एक नाम आशीष बुटेल का है. आशीष के पिता बीबीएल बुटेल हिमाचल विधानसभा के अध्यक्ष रहे हैं. उनके ही कार्यकाल में विधानसभा पेपरलेस हुई थी. आशीष बुटेल का कहना है कि उन्होंने पिता से ही जनसेवा का संस्कार पाया है. कांग्रेस के ही एक अन्य नेता सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी पठानिया इस समय विधायक हैं. सुजान सिंह वीरभद्र सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. उनके निधन के बाद भवानी सिंह पठानिया चुनाव मैदान में उतरे और जीत हासिल की. भवानी सिंह अपने पिता के साथ राजनीति में सक्रिय रहे.