शिमला: जाइका इंडिया हिमाचल में क्षेत्रीय विशेष आजीविका गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है ताकि स्थानीय नागरिकों को लाभ पहुंचाया जा सके. इसके अतिरिक्त जाइका परियोजना द्वारा वन विभाग के साथ मिलकर किए जा रहे प्रयासों से जल भंडारण योजना के तहत टैंक, जल भंडारण संरचना, चेक डैम इत्यादि का निर्माण पर भी कार्य किया जा रहा है. प्रदेश के अतिरिक्त प्रधान मुख्य अरण्यपाल एवं मुख्य परियोजना निदेशक (जाइका) नागेश कुमार गुलेरिया ने कहा कि परियोजना क्षेत्र में कृषि आधारित आजीविका गतिविधियों में अधिकतम लाभ अर्जित करने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्रों व अनुसंधान संस्थानों से सहयोग एवं वनों से अत्याधिक दोहन तथा अन्य कई कारणों से जड़ी-बूटियों के अपघटन की रोकथाम की दिशा में हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन एवं आजीविका सुधार परियोजना के अंतर्गत पी.एम.यू. स्तर पर जड़ी-बूटी प्रकोष्ठ का गठन भी किया गया है.
नागेश गुलेरिया ने कहा कि जाइका इंडिया द्वारा राज्यों में जापान सरकार की मदद से चलाई जा रही वानिकी और एन.आर.एम. परियोजनाओं की समीक्षा के लिए 27 से 29 सितम्बर, 2021 तक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से 12वीं परियोजना निदेशक की बैठक आयोजित की गई. इस वीडियो कॉन्फ्रेंस का संचालन जाइका इंडिया कार्यालय के मुख्य विकास विशेषज्ञ विनीत सरीन ने किया. इस वर्चुअल बैठक में देश के विभिन्न राज्यों में जापान सरकार की मदद से चलाई जा रही परियोजनाओं के बारे में जानकारी ली गई.
मुख्य रूप से सतत आजीविका और अंतर क्षेत्रीय अभिसरण पर सभी राज्यों में किए गए कार्यक्रमों पर राज्य के परियोजना निदेशकों द्वारा प्रस्तुति दी गई. नागेश गुलेरिया ने कहा कि प्रदेश में जाइका परियोजना को प्राथमिकता के आधार पर लिया गया है. ताकि प्रदेश के वनों के सुधार के साथ-साथ वनों पर आश्रित समुदायों को आमदनी का एक अतिरिक्त साधन उपलब्ध हो सके. मुख्य परियोजना निदेशक (जाइका) ने परियोजना की गतिविधियों को सफल बनाने के लिए स्थानीय लोगों और अधिकारियों का आभार व्यक्त किया.
जापान इंटरनेशनल काॅपरेशन (जाइका) एजेंसी द्वारा वित्त पोषित इस परियोजना पर वन विभाग द्वारा 800 करोड़ रुपये व्यय किए जा रहे हैं. 10 वर्षीय इस परियोजना का मुख्य लक्ष्य प्रदेश में वन वृद्धि, जैव-विविधता संरक्षण, संस्थागत क्षमता के सुदृढ़ीकरण के साथ ग्रामीण लोगों की आर्थिकी में सुधार करना है. इस परियोजना के लिए वर्ष 2020-21 के लिए 41.78 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. प्रदेश के 12 हजार हेक्टेयर वन भूमि पर विभिन्न प्रजातियों के एक करोड़ से अधिक पौधे रोपित करने का लक्ष्य इस वित्त वर्ष में निर्धारित किया है, जिसे पूरा करने के लिए जाइका परियोजना के अंतर्गत एक करोड़ 35 लाख पौधे प्रदेश भर में विभिन्न नर्सरियों में तैयार किए गए हैं.
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परियोजना प्रदेश के 6 जिलों किन्नौर, शिमला, बिलासपुर, मंडी, कुल्लू और लाहौल स्पीति के 18 वन मंडलों के 16 वन परिक्षेत्रों में कार्यान्वित की जा रही है. परियोजना में स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 81 ग्रामीण वन समितियां गठित की गई है. इस परियोजना के अन्तर्गत जनजातीय क्षेत्र किन्नौर के चिलगोजा और स्पीति के सीबकथाॅर्न (छरमा) जैसे औषधीय पौधों को बढ़ावा दिया जाएगा. इन प्रजातियों के 35 हजार पौधे रोपित करने के लिए संबंधित वन मण्डल अधिकारियों को लगभग 10 लाख रुपये की राशि उपलब्ध करवाई जाएगी.
इस परियोजना के अन्तर्गत खराब वन क्षेत्रों को सघन वन बनाने के लिए पौधरोपण, चारागाह सुधार के कार्य, मिट्टी एवं जल संरक्षण के लिए कार्य, वनों का आग से बचाव, खरपतवार नष्ट करने के कार्य, जैव विविधता गलियारा पर प्रायोगिक परियोजना, जैव विविधता गणना के लिए बुनियादी अध्ययन, सामुदायिक आजीविका सुधार गतिविधियां, औषधीय पौधों पर आधारित आजीविका सुधार गतिविधियां शुरू की जाएगी, जिसके लिए राज्य स्तर पर हिम जड़ी-बूटी समिति का भी गठन किया जाएगा.
परियोजना में शामिल जिलों के प्रत्येक वार्ड के लिए एक सूक्ष्म योजना बनाई गई है और इस वर्ष 40 सूक्ष्म योजनाएं कार्यान्वित की जाएंगी. वर्ष 2020-21 के लिए 150 सूक्ष्म योजनाएं बनाने का लक्ष्य रखा गया है. इन योजनाओं के अन्तर्गत प्रत्येक वार्ड में 10 युवाओं को रोजगार प्रदान किया जाएगा. ग्रामीण वन समितियों द्वारा बनाई गई सूक्ष्म योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए इस परियोजना के अन्तर्गत 759 हेक्टेयर भूमि में पौधे रोपित किए जाएंगे. मानव वन्य प्राणी संघर्ष सम्बन्धी मामलों से निपटने के लिए 16 त्वरित कार्रवाई दल गठित किए गए हैं. प्रदेश की जैव विविधता की गणना के लिए सेटेलाइट और ड्रोन की मदद से सर्वेक्षण करवाए जा रहे हैं.
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