शिमला : हिमाचल कांग्रेस का कुनबा इन दिनों दिल्ली में चुनाव के उम्मीदवारों के मंथन में जुटा है. लेकिन नेताओं के साथ छोड़ने का सिलसिला लगातार जारी है. ऐसा लग रहा है मानो कांग्रेसियों में पार्टी छोड़ने की होड़ सी लगी है. सवाल है कि सत्ता पर काबिज होने का दावा कर रही कांग्रेस के अपने नेता ही बीजेपी का मिशन रिपीट का सपना पूरा कर देंगे. पिछले 2 महीने में कांग्रेस में मची भगदड़ तो इसी ओर इशारा कर रही है. बुधवार को हिमाचल कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष हर्ष महाजन बीजेपी में शामिल हो गए. लेकिन ये पहली बार नहीं है कि इतना बड़ा चेहरा पार्टी का हाथ छोड़ गया हो. लेकिन पिछले कुछ वक्त से पार्टी में मची भगदड़ को देखते हुए कांग्रेस चाहेगी कि ये आखिरी बार हो.(Himachal Congress Factionalism) (Harsh Mahajan Joins BJP)
क्यों नाराज हैं कांग्रेस नेता- पार्टी छोड़ने से लेकर किसी पद से इस्तीफा देने वाले हर कांग्रेसी की नाराजगी इस बात पर है कि पार्टी में उनकी सुनी नहीं जाती. पद देने के बावजूद उनकी पूछ नहीं है. फिर चाहे कार्यकारी अध्यक्ष और कांगड़ा से विधायक रहे पवन काजल हों, हिमाचल संचालन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले आनंद शर्मा हों या फिर बुधवार को बीजेपी में शामिल होने वाले हर्ष महाजन. पार्टी छोड़ने वाले कई नेता ऐसे हैं जो दशकों से पार्टी के साथ रहे हैं, बड़े पदों पर रहे हैं लेकिन चुनाव से ऐन पहले 'हाथ' छोड़कर जा रहे हैं. (Factionalism in Himachal Congress) (Himachal Congress Ticket)
बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष हर्ष महाजन बीजेपी में शामिल संगठन पर उठ रहे सवाल- आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है. जिसे देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने इसी साल अप्रैल में उनकी पत्नी और मंडी लोकसभा सीट से सांसद प्रतिभा सिंह को हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी थी. चार कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए गए थे, जिनमें से दो हर्ष महाजन और पवन काजल बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. दोनों ने पार्टी संगठन पर कई सवाल उठाए हैं. पार्टी छोड़ने वाले हर कांग्रेसी की शिकायत है कि पद देने के बावजूद पार्टी में तरजीह नहीं दी जाती, सम्मान नहीं होता. (Himachal congress leaders in BJP)
कांग्रेस आलाकमान भी सवालों में- हिमाचल कांग्रेस में फूट नई बात नहीं है, वीरभद्र सिंह के रहते हुए भी पार्टी में धड़े थे लेकिन वीरभद्र के कद के सामने हर धड़ा बौना साबित हो जाता था. आलाकमान ने वीरभद्र सिंह को चेहरा बनाकर प्रतिभा सिंह को अध्यक्ष तो बना दिया लेकिन धड़ेबंदी, कलह का दौर जारी है. चुनाव नजदीक आते-आते हिमाचल कांग्रेस में भगदड़ मची हुई है. टिकट वितरण के साथ-साथ नाराजगी, गुटबाजी और भी खुलकर सामने आ सकती है. बुधवार को बीजेपी में शामिल हुए हर्ष महाजन ने कहा कि जैसे कांग्रेस में मां-बेटे यानी सोनिया और राहुल की चलती है वैसा ही कुछ हिमाचल में भी है. हर्ष महाजन का इशारा प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह की ओर था.
विधायक लखविंदर राणा और पवन काजल पहले ही बीजेपी में हो चुके हैं शामिल
इससे पहले चुनाव से जुड़ी बैठकों में ना बुलाए जाने को लेकर समन्वय समिति के अध्यक्ष आनंद शर्मा नाराज होकर इस्तीफा दे चुके हैं. इसके लिए वो प्रभारी राजीव शुक्ला को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं. कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष रामलाल ठाकुर ने रोते हुए अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही थी और कांग्रेस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे. कुछ दिन पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में कांग्रेस आलाकमान पर सवाल उठाते हुए कहा था कि प्रियंका और राहुल पार्टी के सीनियर नेताओं को वक्त नहीं देते, उन्होंने गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे का उदाहरण दिया. सवाल है कि क्या चुनावी राज्य में पार्टी में मची भगदड़ का अंदाजा कांग्रेस आलाकमान को नहीं है ?
किस आधार पर जीत का दावा कर रही कांग्रेस- वैसे कांग्रेस का कुनबा देश के हर राज्य में कुछ इसी तरह धड़ों में बंटा है. कांग्रेस की ये कलह गाथा पुरानी है. लेकिन हिमाचल चुनावी राज्य है, कुछ दिनों में चुनाव की तारीखों का ऐलान होने वाला है. लेकिन कांग्रेसी हैं कि मानते ही नहीं, एकजुट होने की बजाय धड़ों में बंटी कांग्रेस में भगदड़ मची है. सवाल है कि फिर कांग्रेस किस आधार पर जीत का दावा कर रही है. क्या सिर्फ हर 5 साल में राज्य में सरकार बदलने की रवायत के सहारे कांग्रेस खुद की सरकार बनने का ख्वाब संजोये बैठी है ? क्योंकि मौजूदा वक्त में कांग्रेस की तैयारी को उसके ही नेता धराशाई कर रहे हैं. कोई बयानबाजी के जरिये तो कोई दूसरी पार्टियों का दामन थामकर.
आनंद शर्मा और रामलाल ठाकुर दे चुके हैं पद से इस्तीफा कांग्रेस ने चुनाव को देखते हुए ओल्ड पेंशन स्कीम, बेरोजगार युवाओं को नौकरी, महिलाओं को भत्ता, कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने जैसे बड़े-बड़े वादे तो कर दिए हैं लेकिन इन वादों को अमलीजामा पहनाने के लिए कांग्रेस को पहले चुनाव जीतना होगा और चुनाव जीतने के लिए नेता चाहिए. जो धीरे-धीरे 'हाथ' छोड़ रहे हैं.
बड़े नेताओं के टिकट पर लटकी तलवार- इन दिनों कांग्रेस टिकट के दावेदारों पर मंथन कर रही है. मंगलवार को दिल्ली में हुई केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में 46 टिकट फाइनल होने की बात सामने आई है. इस बीच खबर है कि टिकट के दावेदारों में कई बड़े नेताओं की टिकटों पर तलवार लटकी हुई है. इसमें पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा से लेकर पूर्व मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर का भी नाम है. कुछ सीटों पर एक अनार सौ बीमार की स्थिति के अलावा गुटबाजी ही सबसे बड़ी समस्या है. जैसे सुधीर शर्मा का 2019 का उपचुनाव लड़ने से इनकार करना उनके टिकट फाइनल होने की राह में रोड़ा बताया जा रहा है. कुल मिलाकर कांग्रेस संगठन और आलाकमान दोनों ही प्रदेश में कमजोरियों और गुटबाजी से वाकिफ हैं. हालात ऐसे हैं कि टिकट बंटवारे को लेकर उठाया गया कोई भी कदम एक तरफ कुआं और एक तरफ खाई जैसा है. टिकट देने या ना देने की स्थिति में होने वाली नाराजगी और बगावत से नुकसान पार्टी को होना तय दिख रहा है.
मुश्किलें और भी हैं- कांग्रेस की मुश्किल इतनी भर नहीं है. पार्टी परिवारवाद और वंशवाद को लेकर विरोधियों के निशाने पर रहती है, लेकिन कांग्रेसी हैं कि जैसे मानते ही नहीं. पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर अपने साथ-साथ अपनी बेटी चंपा के लिए भी टिकट मांग रहे हैं. जो मंडी सदर सीट से 2017 का चुनाव हार चुकी हैं. इसी तरह पूर्व मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी की डिमांड है कि भरमौर विधानसभा क्षेत्र से टिकट मिले और अगर उन्हें टिकट नहीं मिलता तो उनके बेटे को टिकट दिया जाए.
आश्रय शर्मा भी कर रहे हैं कांग्रेस संगठन पर तीखी टिप्पणियां
इसी तरह मंडी में एक नए समीकरण का बनना लगभग तय है, जो कांग्रेस के खिलाफ जा सकता है. कांग्रेस के युवा नेता और 2019 लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी रहे आश्रय शर्मा भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. सोशल मीडिया पर कांग्रेस नेताओं को उनकी नसीहत और खरी-खरी पोस्ट इसी ओर इशारा कर रही है कि जल्द ही वो भी कांग्रेस का हाथ छोड़ देंगे. वैसे भी उनके पिता और बीजेपी विधायक अनिल शर्मा साफ कह चुके हैं कि वो और उनका परिवार बीजेपी में ही रहेगा.
बीजेपी का मिशन रिपीट करवाएंगे कांग्रेसी- कुल मिलाकर जिस तरह से कांग्रेस में भगदड़ मची है, गुटबाजी चरम पर है और अपनी ही पार्टी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए जा रहे हैं. उससे कांग्रेस तो नहीं लेकिन बीजेपी के मिशन रिपीट का सपना जरूर पूरा हो जाएगा. सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के कुछ और विधायक, नेता भी बीजेपी के संपर्क में हैं. 15 नवंबर से पहले हिमाचल में वोटिंग हो जाएगी, वक्त बहुत कम है. लेकिन कांग्रेस के लिए अंदरूनी गुटबाजी और नेताओं की भगदड़ को देखते हुए ये एक वक्त सदियों जैसा लग रहा है. पार्टी का सबसे बड़ा डर फिलहाल यही है कि चुनाव की दहलीज तक पहुंचते-पहुंचते कौन-कौन से नेता पार्टी की दहलीज लांघकर निकल जाएंगे.
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