शिमला: मुंबई में 26 नवंबर 2008 में हुए आंतकी हमले की आज 12वीं बरसी है. इस आतंकी हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. कई बेगुनाहों की जाने गई थीं और कई आतंकवादियों के हमले में घायल हुए थे. 26/11 में हुए आंतकी हमले को नाकाम करने वाले NSG के जांबाज कमांडो की टीम को लीड कर रहे थे हिमाचल के रि. ब्रिगेडियर गोविंद सिंह सिसोदिया. हमले की 12वीं बरसी पर ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की है.
सवाल: मुंबई में 26/11 को हुए आंतकी हमले को 12 साल हो गए हैं. चाहे होटल ताज की बात हो या नरिमन प्वॉइंट की, उस घटना के वक्त आप NSG को लीड कर रहे थे. उस दिन को आज आप कैसे याद करेंगे. ?
जवाब: 26/11 जैसी घटना ना पहले हुई थी ना इसके बाद में हुई. इसके लिए गहरी प्लानिंग की गई थी. इसमें एक-दो दिन नहीं बल्कि पूरा साल लगा था. आतंकियों ने टारगेट को आइडेंटीफाइ किया था, इसके लिए कठिन ट्रेनिंग ली थी और साजो-सामान इकट्ठा किया था. अब टेरेरिस्ट भी समय के साथ बदल रहे हैं. वो सिक्योरिटी फोर्सेज से हमेशा एक कदम आगे रहने की कोशिश करते हैं. लेकिन भारत पहले से ज्यादा तैयार है. हमारा इंटेलीजेंस सिस्टम देश के अंदर और बाहर दोनों जगह बहुत मजबूत हुआ है.
ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए स्टेट लेवल पर भी रिस्पॉन्स बेहतर हो गया है. पहले पुलिस, कानून व्यवस्था की कार्रवाई करती थी, लेकिन 26/11 के बाद हर स्टेट ने अपनी टास्क फोर्सेज और कमांडोज तैयार किए हैं. 26/11 हमले में अजमल कसाब के पकड़े जाने से पाकिस्तान की डिप्लोमेटिक लेवल पर बड़ी हार हुई है. आज की तारीख में अगर देखें तो पाकिस्तान का ध्यान कश्मीर और पंजाब में ज्यादा है, क्योंकि पाकिस्तान घबरा गया है कि कहीं किसी वारदात में उसका हाथ पकड़ा गया तो वो कहीं का नहीं रहेगा. अभी कुछ दिन पहले नगरोटा में चार आतंकी मारे गए थे. जिससे ऐसा लग रहा है कि 26/11 पर कुछ बड़ा करने वाले थे. हमें कश्मीर के साथ-साथ पूरे देश मे तैयार रहना है. पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आएगा.
सवाल: पाकिस्तान का जिक्र हो रहा है और 26/11 को 12 साल हो गए हैं. मुंबई में हुई आतंकी घटना के वक्त NIA नहीं था, उसके फौरन बाद NIA का गठन होता है. क्या पूरे एक दशक में एक देश के तौर पर हम परिपक्व हो पाएं हैं.?
जवाब: 12 साल में बहुत फर्क आया है. हमारा इंटेलीजेंस लेवल पहले से बहुत बेहतर हुआ है, चाहे बात अंदरूनी हो या बाहरी. दूसरा ये कि एक देश के तौर पर हमारे अंदर परिपक्वता आई है. एक और बदलाव ये आया है कि पहले NSG के कमांडो दिल्ली से मूव होते थे, लेकिन अब कई राज्यों में इनके स्टेशन बनाए गए हैं जहां से ये मूव करते हैं. लेकिन हमें इस गफलत में नहीं रहना है कि हमारी बहुत तैयारी है और फुल फोर्स सिक्योरिटी है. भारत को हमेशा अलर्ट रहना पड़ेगा. हमे आतंकी और आतंकियों को फंडिंग देने वाले देश से दो कदम आगे चलने की जरूरत है.
सवाल: 26/11 के बाद भी कई आतंकी हमले हुए हैं, 2008 और 2014 के बाद आपको क्या बदलाव नजर आते हैं ?
जवाब: इसमें बड़ा बदलाव देखने को मिला है. सरकार पहले से ज्यादा प्रो एक्टिव हो गई है. सीमाएं पहले से ज्यादा सुरक्षित हुई हैं, इसके बावजूद भी आंतकी कहीं न कहीं से भारत में आने का रास्ता ढूंढ़ लेते हैं. पाकिस्तान को जानने वालों को पता है कि वहां का राजनैतिक नेतृत्व हमेशा से कमजोर रहा है. जिसने मजबूत बनने की कोशिश की उनका बुरा हश्र हुआ है. चाहे जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर भुट्टो या नवाज शरीफ. जिन्होंने लोकतंत्र की ओर जाने की कोशिश की उन्हें उनकी मिलिट्री फोर्सेज ने अलग-थलग किया. क्योंकि पाकिस्तान में मिलिट्री हमेशा मजबूत रहना चाहती है इसीलिए हिंदुस्तान के खिलाफ दहशतगर्दों को पनाह देती है. आज के दौर में पाकिस्तान में सारी खुफिया इंजेंसिया आईएसआई के नीचे डाल दी गई हैं.
सवाल: आप युद्ध रणनीतिकार भी हैं. पाकिस्तान का भारत को लेकर जो रवैया रहा है, क्या उसका कोई तोड़ नजर आता है?
जवाब: पहले हमारा एक विचार होता था कि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी देश है. हम हमेशा डिफेंस करने की कोशिश करते थे, लेकिन अब हमारी ये सोच हो गई है कि ऑफेंस इज द बेस्ट डिफेंस. भारत ने कुछ प्रो एक्टिव एक्शन और कुछ प्रो एक्टिव स्टेटमेंट दिए. इससे पाकिस्तान में भय बैठ गया कि भारत की शांतिप्रिय देश वाली फिलॉस्पी बदल गई है.
सवाल: लद्दाख फेस ऑफ को 5 से 6 महीने बीत जाने के बाद चाइना के फ्रंट को आप किस तरह देख रहे हैं, क्योंकि वर्ल्ड डायनमिक भी चेंज हुआ है, ट्रंप के हारने के बाद जो बाइडन आएं हैं?
जवाब: चाइना के फ्रंट पर अगर यूएसए के एंगल से देखे तो इसमें ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. क्योंकि अमेरिका के दोनों राष्ट्रपति भारत के लिए मित्रवत हैं. दोनों के बयान हमेशा प्रो इंडिया रहे हैं. मुझे लगता है कि वाइट हाउस में नए राष्ट्रपति के आने के बाद भी भारत-अमेरिका की दोस्ती में कोई बदलाव नहीं होगा. पूरे यूएसए में एक सोच आ गई है कि उनका पहला दुश्मन चाइना है. साथ ही, मालाबार युद्ध अभ्यास के जरिए चाइना को ये बताने की कोशिश हो रही है कि आप जो बनना चाहते हैं. वह आपको बनने नहीं दिया जाएगा. चाइना का इतिहास रहा है कि वो नॉर्थ ईस्ट में जो तनाव चल रहा है उसमें सपोर्ट करता आया है. अगर चाइना लद्दाख में हाई एल्टीट्यूड पर हमला करता है तो एक के बजाय उन्हें 15 गुना फोर्सेज की जरूरत पड़ेगी. भारतीय सिक्योरिटी फोर्सेज को एंटी इंसर्जन्ट ऑपरेशन और अरुणाचल बॉर्डर पर बहुत सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि चाइना का भरोसा नहीं किया जा सकता है. एक तरफ वो बातचीत का ढोंग करते हैं और दूसरी तरफ पीठ पर छूरा घोंपते हैं.
सवाल: कोरोना की वैक्सीन आ जाने के बाद पोस्ट कोविड दौर को आप कैसे देखते हैं, चीन या पाकिस्तान से युद्ध की कितनी संभावना है?
जवाब: मेरे विचार से युद्ध की संभावना अब बहुत कम है, सिर्फ कहीं छोटे लेवल पर दबाव बनाया जा सकता है. चाइना भी समझता है कि अगर वो कहीं नेशनल लेवल पर दबाव बनाता है तो उसे अपने खिलाफ वर्ल्ड ओपेनियन का सामना करना पड़ेगा. चीन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दो तीन फ्रंट पर अन्य देशों द्वारा घेरा जा सकता है. इसके बावजूद चीन लद्दाख में कब्जा किए गए स्थान से भारत को हटाने की कोशिश करेगा. साथ ही फेस सेविंग के लिए भी चाइना कुछ न कुछ कदम जरूर उठाएगा.