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यहां उगती है सबसे महंगी और पीएम मोदी की पसंदीदा सब्जी, इसे ढूंढने जंगलों का रुख करते हैं ग्रामीण

गुच्छी की मांग सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि बाहरी देशों में भी है. ऐसा माना जाता है कि गुच्छी की सब्जी औषधीय गुणों से भरपूर है और इसका नियमित सेवन करने से दिल की बीमारियां नहीं होती हैं. हार्ट पेशेंट को भी इसके उपयोग से लाभ मिलता है. देश की नामी कंपनियां स्थानीय लोगों से गुच्छी 10 से 15 हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीद लेती हैं. जबकि बाजार में इसकी कीमत 25 से 30 हजार रुपए प्रति किलो (Demand for GUCCHI of Himachal) रहती है. गुच्छी का वैज्ञानिक नाम मार्कुला एस्क्यूपलेंटा है और हिन्दी में इसे स्पंज मशरूम कहा जाता है.

Production of GUCCHI in Himachal
हिमाचल के जंगलों में गुच्छी.

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Published : Jan 3, 2022, 8:47 PM IST

Updated : Jan 5, 2022, 12:40 PM IST

शिमला:देश की सबसे महंगी सब्जियों में शुमार और अपने औषधीय गुणों के लिए मशहूर गुच्छी हिमालयी राज्यों में (Production of GUCCHI in Himachal) उगती है. गुच्छी प्राकृतिक रूप से जंगलों में उगती है और फरवरी से लेकर अप्रैल के बीच मिलती है. देश की नामी फूड चेन कंपनियों और होटल में इसकी बड़ी मांग रहती है. पीएम मोदी भी गुच्छी के शौकीन (PM Modi favorite vegetable) हैं. इस बार मंडी दौरे के दौरान भी पीएम मोदी के लिए विशेष गुच्छी का मदरा बनाया गया था.वह इसकी सब्जी खाते रहे हैं.

जब पीएम मोदी वर्ष 1998 से पहले हिमाचल के प्रभारी थे, उसी वक्त से वह इसे पसंद करते हैं. इसके अलावा गृह मंत्री अमित शाह के हिमाचल दौरे के दौरान भी गुच्छी का मदरा बनाया गया था. देश की नामी कंपनियां स्थानीय लोगों से गुच्छी 10 से 15 हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीद लेती हैं. जबकि बाजार में इसकी कीमत 25 से 30 हजार रुपए प्रति किलो रहती है. गुच्छी का वैज्ञानिक नाम मार्कुला एस्क्यूपलेंटा है और हिन्दी में इसे स्पंज मशरूम कहा जाता है. भारतीय गुच्छी गुणों के आधार पर विदेशी मार्केट में भी छाई रहती है. भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका, यूरोप, फ्रांस, इटली और स्विटजरलैंड जैसे देशों में भी गुच्छी की काफी डिमांड है.

हिमाचल के जंगलों में गुच्छी.

बाजार में लगातार बढ़ती मांग के कारण स्थानीय लोग गुच्छी ढूंढने के (Production of GUCCHI in Himachal) लिए कई दिनों तक जंगलों में डेरा डालकर रहते हैं. कोटखाई तहसील के रावला क्यार पंचायत के उप प्रधान आतिश चौहान ने बताया कि गुच्छी यहां के लोगों की आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन भी है. इसलिए स्थानीय लोग फरवरी का महीना शुरू होते ही जंगलों और ऊंचाई वाले क्षेत्रों का रुख करना शुरू कर देते हैं. आतिश का कहना है कि गुच्छी का सीजन जनवरी के मध्य से अप्रैल के बीच होता है. ऊंची कीमत और अधिक मांग के (GUCCHI in forest of Himachal) कारण ग्रामीणों को गुच्छी बेचने में कठिनाइयों का सामना भी नहीं करना पड़ता, लेकिन गुच्छी ढूंढने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है.

हिमाचल के जंगलों में गुच्छी.

इन दिनों हिमालयी राज्यों में अक्सर मौसम खराब रहता है बारिश और बर्फबारी के कारण ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जाना खतरे से भरा होता है फिर भी ग्रामीण बड़ी संख्या में गुच्छी ढूंढने जाते हैं. बारिशों के दौरान पैदा होने वाली गुच्छी अधिक समय तक नहीं चल पाती है. इसमें बहुत जल्दी ही फंगस आ जाती है. आतिश चौहान ने प्रदेश सरकार से इस क्षेत्र में रिसर्च की मांग की है. उनका कहना कि यहां की जलवायु गुच्छी के लिए उपयुक्त है. कई देशों में गुच्छी के ऊपर शोध हुए हैं और उन देशों में किसानों-बागवानों द्वारा गुच्छी उगाई जा रही है. उसी तर्ज पर प्रदेश में भी गुच्छी उगाए जाने की विधि विकसित की जानी चाहिए.

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गुच्छी का सेवन सब्जी के रूप में किया जाता है. इसमें बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन, विटामिन-डी और कई जरूरी एमीनो एसिड होते हैं. इसे खाने से दिल का दौरा पड़ने की संभावना कम हो जाती है. गुच्छी की मांग सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि बाहरी देशों में भी है. ऐसा माना जाता है कि गुच्छी की सब्जी औषधीय गुणों से भरपूर है और इसका नियमित सेवन करने से दिल की बीमारियां नहीं होती हैं. हार्ट पेशेंट को भी इसके उपयोग से लाभ मिलता है. गुच्छी में विटामिन बी', 'डी' के अलावा 'सी' और 'के' प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. गुच्छी की सब्जी बेहद लजीज पकवानों में गिनी जाती है. यही नहीं गुच्छी अपने निकोटिन फ्लेवर और ऑर्गेनिक गुणों के कारण भी महत्वपूर्ण हैं. शारीरिक अक्षम, पैरालिसिस के मरीजों के लिए इसके सूप को पीने के लिए कहा जाता है.

गुच्छी.

वहीं, केवल प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाई जाने वाली गुच्छी को अब खुम्ब अनुसंधान निदेशालय सोलन ने (Directorate of Mushroom Research Solan) कृत्रिम रूप से नियंत्रित परिस्थितियों में उगाने में सफलता हासिल की है. लेकिन अभी व्यापक स्तर पर इसे उगाने का कार्य शुरू नहीं हो पाया है. भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के निदेशालय की स्थापना 1983 में हुई थी. तब से ही गुच्छी के कृत्रिम उत्पादन को लेकर कोशिश की जा रही थी, लेकिन इतने सालों तक असफलता मिलने के बाद खुम्भ अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों को सफलता हासिल हुई है. इससे भारत भी उन देशों की सूची में शामिल हो गया है, जो कृत्रिम तौर पर गुच्छी को उगाने का दावा करते हैं. किसानों-बागवानों तक इस विधि के पहुंचने में अभी कुछ समय लग सकता है. इसके अलावा यह देखना भी दिलचस्प होगा कि कृत्रिम उत्पादन से तैयार गुच्छी की औषधीय गुणवत्ता बनी रहती है या फिर इन गुणों में कुछ फर्क पड़ता है.

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Last Updated : Jan 5, 2022, 12:40 PM IST

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