शिमला: सप्ताह के पहले दिन यानी सोमवार को इस समय देश करगिल युद्ध में भारतीय वीरों के पराक्रम को याद कर रहा है. विजय दिवस के अवसर पर भारत की सेना के अद्भुत शौर्य को हर देशवासी प्रणाम कर रहा है. करगिल युद्ध के इसी पराक्रम में छोटे से पहाड़ी प्रदेश हिमाचल के रणबांकुरों की कुर्बानी स्वर्ण अक्षरों में चमक रही है. महज सत्तर लाख की आबादी वाले पहाड़ी प्रदेश के बेमिसाल शौर्य ने विरली गाथा लिखी है. इसी गाथा में परमवीर विक्रम बत्रा का बलिदान अमर कहानी के रूप में दर्ज है.
परमवीर संजय कुमार करगिल की शौर्य गाथा कहने के लिए हमारे बीच उपस्थित हैं. करगिल युद्ध में हिमाचल के 52 वीरों ने अपने लहू से विजय गाथा लिखी है. गर्व की बात है कि देश के पहले परमवीर मेजर सोमनाथ शर्मा भी हिमाचल से ही थे. मेजर शर्मा की ये विरासत कैप्टन धन सिंह थापा, अमर बलिदानी कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन (अब सूबेदार मेजर) संजय कुमार तक विस्तार पाती है. भारतीय सेना ने युद्ध भूमि व शौर्य के अन्य मोर्चों पर दुनिया में अनूठी मिसाल पेश की है. भारतीय सेना के शौर्य के किस्सों में हिमाचल के वीरों की शान भी खूब है.
हिमाचल के सैन्य अफसरों व जांबाजों ने युद्ध के मैदान और अन्य बहादुरी की कहानियों को साकार रूप देते हुए 1159 शौर्य सम्मान हासिल किए हैं. इनमें भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान के तौर पर 4 परमवीर चक्र, दो अशोक चक्र, दस महावीर चक्र, 18 कीर्ति चक्र, 51 वीरचक्र, 89 शौर्य चक्र व 985 अन्य सेना मेडल शामिल हैं. आबादी के लिहाज से देखा जाए तो भारतीय सेना को मिले शौर्य सम्मानों में से हर 10वां मेडल हिमाचली वीर के सीने पर सजा है. करीब 70 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में 1.06 लाख से अधिक भूतपूर्व फौजी हैं. यानी एक लाख से अधिक फौजी देश की सेवा करने के बाद सेवानिवृत जीवन जी रहे हैं. यदि सेवारत सैनिकों व अफसरों की बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश के तीन लाख से अधिक जांबाज इस समय सेना में हैं. इस तरह करीब साढ़े चार लाख हिमाचली परिवार भारतीय सेना का गौरवमयी हिस्सा हैं.
इस विस्तृत शौर्य गाथा का अगला पहलू ईटीवी भारत की आज की कहानी का शीर्षक है. हिमाचल ने देश की सेना में शानदार योगदान दिया है. देवभूमि के वीरों के साथ ही आने वाली पीढ़ी इस विरासत को और आगे ले जाने में कोई कसर नहीं रखेगी. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश केंद्र सरकार से हिमालयन रेजीमेंट के गठन का आग्रह करता आ रहा है. हिमाचल की ये मांग पूरी नहीं हुई है. हिमाचल अथवा हिमालयी राज्यों की अलग से बटालियन हो, ये सपना सबसे पहले प्रेम कुमार धूमल ने देखा था. पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल ने इसके लिए काफी प्रयास किया. बाद में हिमाचल के हर सीएम ने इसके लिए प्रयास किए. स्व. वीरभद्र सिंह और फिर मौजूदा सीएम जयराम ठाकुर की सरकार ने भी बाकायदा विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा. इन संकल्प प्रस्तावों पर हिमाचल को केंद्र की तरफ से नजर-ए-इनायत का इंतजार है.