शिमला: महत्वाकांक्षी रेणुका बांध परियोजना को राष्ट्रीय महत्व का प्रोजेक्ट घोषित किया गया है, लेकिन हिमाचल को दूसरा घर मानने वाले पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भी ये प्रोजेक्ट अटका हुआ है. वैसे तो इस परियोजना को लेकर 12 मई 1994 को सबसे पहला एमओयू साइन हुआ था. उसके बाद हालांकि काफी काम हुआ, लेकिन बहुत सी अड़चनें अभी भी बाकी हैं. प्रोजेक्ट निर्माण में देरी से इसकी लागत भी बढ़ती जा रही है. पहले ये परियोजना 1284 करोड़ रुपए की थी, लेकिन अब इस पर सात हजार करोड़ रुपए से भी अधिक की रकम खर्च होने का अनुमान है. इस तरह करीब पांच गुणा लागत बढ़ी है. इस वित्त वर्ष में भी इसके लिए केंद्रीय बजट में कोई प्रावधान नहीं है.
इस परियोजना से हिमाचल को बिजली मिलेगी तो दिल्ली और हरियाणा को पीने का पानी. नई परिस्थितियों के अनुसार तो ये भी तय हुआ है कि दिल्ली के साथ हिमाचल भी अपनी जरूरत के हिसाब से पानी ले सकेगा. खैर, ये बातें तो बाद की हैं, लेकिन पहले रेणुकां बांध परियोजना, उसके महत्व और मौजूदा स्थिति पर बात करना जरूरी है. अभी की स्थिति के अनुसार इस डैम के भूमि अधिग्रहण के लिए हिमाचल प्रदेश ऊर्जा निगम को 686 करोड़ रुपए मिले हैं. उसमें से 451 करोड़ बांट दिये गए हैं. कोर्ट के आदेश के बाद अब डैम में डूब रही जमीन का मुआवजा समान रेट पर मिलेगा. पहले ये अलग-अलग था. डैम बनने से पहले क्षेत्र के लिए वैकल्पिक रूट भी बनाए जाएंगे. इस डैम में 40 मेगावाट का बिजली प्रोजेक्ट भी बनेगा और वो हिमाचल के लिए होगा, लेकिन इसकी 90 फीसदी निर्माण लागत दिल्ली सरकार वहन करेगी, क्योंकि डैम से पानी दिल्ली को दिया जा रहा है. इस बारे में संबंधित छह राज्यों ने 11 जनवरी 2019 को दिल्ली में एमओयू भी साइन किया है.
रेणुका बांध परियोजना को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय महत्व की परियोजना करार दिया है. इस परियोजना से एनसीआर यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, उत्तर प्रदेश व हरियाणा को पानी मिलना है. बड़ी बात ये है कि रेणुका के साथ वाली गिरि नदी के पानी से दिल्ली में यमुना नदी भी रिवाइव होगी. रेणुका डैम को लेकर पहले पहल 1994 में एमओयू साइन हुआ था. उसके बाद इसे राष्ट्रीय महत्व का प्रोजेक्ट घोषित किया गया. प्रोजेक्ट की लागत करीब 1981. 35 करोड़ रुपए आंकी गई थी, जो देरी के कारण बढ़कर अब सात हजार करोड़ रुपए हो गई है. परियोजना के तहत 175 मीटर ऊंचा बांध बनेगा. वर्ष 2015 की परिस्थिति के अनुसार तब परियोजना लागत अदा करने को लेकर लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फैसला लेना था, परंतु उसमें देरी हो रही थी.
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