किन्नौर: देश भर में इन दिनों सरकार की ओर से लोगों को जागरूक करने के लिए प्राकृतिक खेती करने के अलावा रासायनिक दवाओं के खाद्य प्रदार्थों में छिड़काव को रोकने के लिए कई कार्यक्रम व जागरूकता अभियान (natural farming in himachal) चलाया जा रहा है. ऐसे में देश के कई ग्रामीण क्षेत्रों मे कुछेक ग्रामीणों ने प्राकृतिक खेती व खेतों में रसायन वाले दवाओं के छिड़काव बंद तो कर दिए हैं, लेकिन अभी भी हर कोई इस प्रक्रिया को अपनाने में सक्षम नहीं है. देश के अंदर आज भी रासायनिक खाद और दवाओं के माध्यम से फसल उगाए जा रहे हैं, जिससे एक ओर खाद्य प्रदार्थों की गुणवत्ता समाप्त हो रही है वहीं दूसरी ओर लोग आए दिन सैकड़ों बीमारियों कि गिरफ्त में आ रहे हैं.
आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां समूचे गांव के अंदर रासायनिक दवाओं और खाद का प्रयोग करने पर पूर्ण प्रतिबंध है. इसके साथ ही नियम तोड़ने पर ग्रामीणों ने सख्त कानून भी बनाये हैं. किन्नौर जिले का चीन सीमांत गांव शलखर (China border region village of Kinnaur district) चीन के सीमाओं से सटा हुआ है जहां पर ग्रामीण लोगों की सेहत का भरपूर ध्यान रखते हैं और स्वयं भी गांव के अंदर रासायनिक खेती से दूर रहकर प्राकृतिक खेती और बागवानी से जुड़े हैं शलखर गांव हिमाचल प्रदेश व देश के बागवानों व किसानों के लिए संदेश देता हुआ एक ऐसी मिसाल पेश कर रहा है जिससे देश प्रदेश के बागवानो व किसानों को प्राकृतिक खेती के साथ बागवानी करने का मार्ग दिखाता है.
साल 2018 में शलखर गांव में प्राकृतिक खेती: शलखर गांव के अंदर प्राकृतिक खेती (Natural farming in Shalakhar village) और बागवानी वर्ष 2018 से शुरू हुआ है जब इसी गांव के प्रख्यात बौद्ध धर्म गुरु लोचा रिंबोछे गांव के दौरे पर आये थे तो इस दौरान उन्होंने ग्रामीणों को एकत्रित कर गांव के अंदर रासायनिक दवाओं, खाद इत्यादि को खेतों में डालने से रोकने के निर्देश दिए और ग्रामीणों ने गुरु के आदेश को तुरंत प्रभाव से लागू किया और वर्ष 2018 के बाद इस गांव के अंदर रासायनिक दवाओं, खाद इत्यादि को बेचना व खेती के साथ बागवानी क्षेत्र में प्रयोग करने पर पंचायत द्वारा पूर्ण प्रतिबंध किया गया.
करीब 3 वर्षों तक गांव के अंदर बागवानों और किसानों ने केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया. हालांकि शुरुआती दिनों में फसलें काफी खराब हुई, लेकिन ग्रामीणों ने रिंबोछे के आदेश पर शहन शक्ति का प्रमाण देते हुए करीब 3 वर्षों तक नुकसान भी सहा. ऐसे में चौथे वर्ष के बाद सेब के पेड़, खेतों की अन्य फसल धीरे-धीरे सुधार के साथ उगने लगी. इस तरह से ग्रामीणों ने रासायनिक खेती को अलविदा (Chemical Free farming in shalkhar village ) कहा दिया. इसके बाद से आज तक इस गांव में न तो रासायनिक दवाओं का प्रयोग होता है न ही खाद इत्यादि का प्रयोग किसान व बागवान कर सकते हैं.