शिमला: अडानी समूह को अपफ्रंट प्रीमियम की 280 करोड़ की रकम लौटाने के मामले में राज्य सरकार को हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली है. मुख्य न्यायाधीश एए सईद व न्यायधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. इस तरह हाई कोर्ट ने अडानी पावर लिमिटेड द्वारा जंगी-थोपन-पोवारी (jangi thopan powari power project) विद्युत परियोजना के लिए जमा की गई लगभग 280 करोड़ रुपए की अग्रिम प्रीमियम राशि को वापस करने के आदेशों पर फिलहाल रोक लगाने से इंकार कर दिया. हाई कोर्ट की एकल पीठ ने इसी साल 12 अप्रैल को सरकार को आदेश दिए थे कि 4 सितंबर, 2015 को कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार दो महीने की अवधि में यह राशि वापस करे. एकल पीठ ने यह आदेश अडानी समूह की याचिका पर पारित किये थे.
अदालत ने यह आदेश भी दिए थे कि यदि सरकार यह राशि दो माह के भीतर प्रार्थी कंपनी को वापस करने में विफल रहती है तो उसे 9 फीसदी सालाना ब्याज सहित यह राशि अदा करनी होगी. 12 अप्रैल को पारित इस फैसले को सरकार ने अपील के माध्यम से खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एए सईद व न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने सरकार की ओर से अपील दाखिल करने में की गई 22 दिनों की देरी को नजरंदाज करने के सरकार के आवेदन पर कंपनी को नोटिस जारी किया. वहीं, खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेशों पर रोक लगाने से फिलहाल इंकार कर दिया है.
अडानी कंपनी द्वारा विशेष सचिव (विद्युत) के (Adani Power Upfront Premium) 7 दिसंबर, 2017 को जारी पत्राचार को हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर कर चुनौती दी थी. 7 दिसंबर, 2017 के पत्राचार को रद्द करते हुए एकल पीठ ने स्पष्ट किया था कि जब कैबिनेट ने 4 सितंबर, 2015 को, प्रशासनिक विभाग द्वारा तैयार किए गए विस्तृत कैबिनेट नोट पर ध्यान देने के बाद, स्वयं ही यह राशि वापस करने का निर्णय लिया था तो अपने निर्णय की समीक्षा करने का निर्णय किस आधार पर लिया गया. अक्टूबर, 2005 में, राज्य सरकार ने 980 मेगावाट की दो हाइड्रो-इलेक्ट्रिक परियोजनाओं जंगी-थोपन-पोवारी पावर के संबंध में निविदा जारी की थी.