शिमला:गर्मियों के मौसम में जंगलों में आग लगने से करोड़ों की वन संपदा नष्ट हो जाती है. एक अनुमान के अनुसार 35 हजार फुटबॉल मैदान के बराबर इलाके के जंगल में हर साल आग लगती है. हिमालयी सब ट्रॉपिकल एरिया में यह घटनाएं मार्च से जून तक होती हैं. जंगलों में आग लगने का मुख्य (Himachal forest fire) कारण चीड़ की पत्तियां होती हैं. हिमालय के सब ट्रॉपिकल इलाके (Sub tropical areas of Himalayas) में पहले चीड़ के पेड़ नहीं होते थे. अंग्रेजों के शासनकाल के समय रेलवे विस्तार का कार्य तेजी से जारी था, उस समय उनको लकड़ी की जरूरत पड़ी तो अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में चीड़ के पेड़ लगवाने शुरू किए. उसके बाद चीड़ ने इस क्षेत्र में (Pine Trees in Himachal) मानो कब्जा ही कर लिया हो.
हर साल चीड़ के जंगलों में आग लगने से पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही कई जंगली जीव भी जलकर राख हो जाते हैं. इसके अलावा स्थानीय लोग जो इन जंगलों से अपने पालतू पशुओं के लिए चारा इकट्ठा करते हैं और सूखी लकड़ी इकट्ठा कर चूल्हा जलाते हैं उनको भी भारी परेशानी झेलनी पड़ती है. चीड़ की सूखी पत्तियों का समाधान निकालने के लिए आईआईटी मंडी के शोधार्थियों ने पहल की है. उन्होंने जंगल से पत्तियां जमा कर बुरादे और लकड़ी के गुटकों के साथ मिलाया और मशीनों में डाला इसके बाद शानदार ब्रीकेट्स तैयार हो जाती हैं. इसके लिए मार्च के ड्राई सीजन से लेकर जुलाई में मानसून की आमद तक जंगलों से चीड़ की सूखी पत्तियां इकट्ठा की जाती हैं.
आईआईटी, मंडी की सहायक प्रवक्ता डॉ. आरती कश्यप ने ब्रीकेट्स पर हुए अनुसंधान (Research on Briquettes in IIT Mandi) के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि अनुसंधान के अनुसार चीड़ व लैंटाना की पत्तियों की उष्मीय ऊर्जा उद्योगों में ईंधन के लिए उपयुक्त पाई गई हैं. उन्होंने बताया कि इनका प्रयोग उद्योगों और उन इलाकों में अच्छा खासा हो सकता है, जहां ईंधन पहुंचना कठिन होता है. वहीं, वन विभाग के कार्यकारी हेड अजय श्रीवास्तव ने बताया कि चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट्स तैयार करने के लिए सरकार 50 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है. इसमें अधिकतम सब्सिडी 25 लाख तक मिलेगी. इस योजना के तहत अभी तक कुल 40 से अधिक आवेदन वन विभाग के पास आए हैं. इनमें से अधिकांश को सब्सिडी जारी हो गई है. इन यूनिट्स में चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट्स तैयार किए जा रहे हैं. उन्हें सीमेंट उद्योग को वैकल्पिक फ्यूल के तौर पर बेचा जा रहा है.
उन्होंने कहा कि इससे दोहरा फायदा होगा. पहला यह कि फॉरेस्ट फायर के लिए जिम्मेदार चीड़ की पत्तियां नुकसान नहीं कर पाएंगी. इसके अलावा ब्रिकेट्स की बिक्री से कुछ आय हो जाएगी. इस कार्य में जुटे लोगों के अनुसार एक छोटी यूनिट को स्थापित करने के लिए कम से कम दस लाख रुपए का खर्च आएगा. चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट्स तैयार होने से फॉरेस्ट फायर की घटनाओं में कमी आएगी. जो लोग इन यूनिट्स की स्थापना के इच्छुक होंगे, उन्हें पूंजी लागत पर पचास फीसदी सब्सिडी मिलेगी.