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फिल्मी संसार और क्रिकेट के खुमार में सिकुड़ रहा साहित्य के लिए स्पेस: गीतांजलि श्री

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Published : Jun 19, 2022, 8:20 PM IST

शिमला में अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन में (International Literature Conference in Shimla) भाग लेने पहुंची गीतांजलि श्री ने शनिवार को एक सत्र में कहा कि बुकर प्राइज मिलने के बाद से उनका नाम इसी सम्मान के साथ जोड़कर देखा जा रहा है, जबकि इससे अधिक रुचि किताब को लेकर होनी चाहिए थी. उन्होंने कहा कि लिखे हुए शब्दों के प्रति आम जनता में खास गंभीरता नहीं है. यही नहीं, अमूमन लोगों के पास साहित्य और पठन-पाठन के लिए धैर्य की भी कमी है.

Booker Award Winner Writer Geetanjali Shree
बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका गीतांजलि श्री

शिमला: बुकर सम्मान के बाद चर्चा में आई लेखिका गीतांजलि श्री ने चिंता जताई कि फिल्मों और क्रिकेट के खुमार के बीच साहित्य के लिए स्पेस सिकुड़ रहा है. लिखे हुए शब्दों के प्रति आम जनता में खास गंभीरता नहीं है. यही नहीं, अमूमन लोगों के पास साहित्य और पठन-पाठन के लिए धैर्य की भी कमी है. शिमला में अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन में (International Literature Conference in Shimla) भाग लेने पहुंची गीतांजलि श्री शनिवार को एक सत्र में अपनी बात कह रही थी.

गीतांजलि श्री ने कहा (Gitanjali Shree at International Literature Conference) कि बुकर प्राइज मिलने के बाद से उनका नाम इसी सम्मान के साथ जोड़कर देखा जा रहा है, जबकि इससे अधिक रुचि किताब को लेकर होनी चाहिए थी. उन्होंने कहा कि उनकी अगली किताब की तो बात ही छोड़िए, लोग इस किताब को भी नहीं पढ़ेंगे. ऐसा प्रतीत होता है कि साहित्य और किताबों का मतलब साहित्यिक सर्कल तक ही सीमित हो रहा है. उन्होंने कहा कि वही साहित्यिक सर्कल बहुत अच्छे से समझता है कि पुरस्कार का मतलब क्या होता है? पुरस्कार एक पहचान देता है. उन्होंने कहा कि पुरस्कार एक अकेले व्यक्ति की मेहनत नहीं है.

गीतांजलि श्री ने कहा कि (Booker Award Winner Writer Geetanjali Shree) जो पुरस्कार मुझे मिला इसके पीछे कई कुछ जुड़ा है. किसी भी प्राइज के हासिल में जो शामिल होता है, वो आपका परिवेश, आपके अपने लोग और भी बहुत कुछ शामिल है. हर पुरस्कार एक रोशनी की तरफ इशारा करता है. उन्होंने कहा कि मुझे बुकर पुरस्कार जरूर मिला है लेकिन मेरे आसपास बहुत बेहतर कलाकृतियां हैं. गीतांजली श्री ने देश में अनुवादों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इसमें मुख्य रूप से दो ही खेमे हैं. पहला अंग्रेजी और दूसरा भारतीय स्थानीय भाषाओं का.

उन्होंने कहा कि अगर हमें कोई भी रचना पढ़नी है तो अंग्रेजी में पढ़नी होगी या फिर कुछ स्थानीय भाषाओं में. जब तक यह स्थिति नहीं बदलेगी तब तक देशवासी इस बात से अनभिज्ञ रहेंगे कि यहां कितना साहित्य मौजूद है. इसको लेकर सभी को सोचना पड़ेगा. फिर चाहे वह प्रकाशक, लेखक या फिर पाठक सभी की जिम्मेदारी बनती है. स्थिति ऐसी है कि जिनको अंग्रेजी नहीं आती वह दूसरी किसी भी भाषा की रचना नहीं पढ़ सकता. अधिकांश रचनाओं का अनुवाद केवल अंग्रेजी में ही होता है. यह स्थिति चिंताजनक है.

उन्होंने कहा कि साहित्य एक कला है. हर कला का हर कला में समावेश होता है. सब कलाएं (literature is an art) मिलकर कृति तैयार करती हैं. साहित्य का मुख्य माध्यम शब्द है और शब्द का हम रोज इस्तेमाल करते हैं. शब्द में सिर्फ वो ही शामिल नहीं जो कहा गया है. शब्द में उसकी ध्वनि भी शामिल है, जो उनका खुलापन है शब्द को एक मायने में नहीं समेटा जा सकता.

महिला लेखक के तौर पर पहचान या संबोधित करना उन महिला लेखकों के साथ अन्याय है जिन्होंने केवल महिलाओं के ऊपर ही नहीं अपितु अनेक विषयों पर लिखा है. उन्होंने कहा कि महिला लेखक, लेखक और ट्रांसजेंडर लेखक, केवल लेखक होता है. यह सभी विषय पर लिखते हैं. इसलिए इनकी पहचान उनकी लिखी गई रचनाओं पर होनी चाहिए ना की उनके लिंग के आधार पर. उन्होंने कहा कि कुछ महिला लेखक जो महिलाओं के ऊपर लिखी है और उसी विषय को उजागर करती हैं.

उनको महिला लेखक कहने में कोई आपत्ति नहीं है. उन्होंने कहा कि बहुत सी महिलाएं जो लेखक हैं वह यह सोचकर नहीं लिखती है कि उनको महिलाओं की किसी संवेदना को उजागर करना है. विषयों पर लिखती हैं जिन पर पुरुष लेखक लिखते हैं. गीतांजलि श्री को हाल ही में रेत समाधि के लिए बुकर प्राइज मिला है. वे मूल रूप से यूपी की रहने वाली हैं और उनके पिता प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं. वे अपनी रचनाओं में शिल्प और कथन को लेकर नए प्रयोग करने में विश्वास रखती हैं.

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