हिमाचल प्रदेश

himachal pradesh

ETV Bharat / city

हिमाचल का भीमा काली मंदिर: बौद्ध और पहाड़ी शैली का अनूठा संगम, आजादी के पहले लगती थी अदालत

हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के रामपुर के सराहन (Bhimakali Temple Sarahan Rampur) में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ माता भीमाकाली के मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं. पहाड़ों की गोदी में बसे इस मंदिर में दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं. इस खबर में हम आपको इसी भीमाकाली मंदिर से जुड़ी कुछ बाते बताएंगे. जिनका जिक्र पौराणिक कथाओं में भी है. पढ़ें पूरी खबर...

Bhimakali Temple Himachal
Bhimakali Temple Himachal

By

Published : Sep 20, 2022, 1:34 PM IST

रामपुर: हिमाचल प्रदेश को देवी देवताओं की भूमि कहा जाता है. यहां के विभिन्न स्थानों पर देवी देवता निवास करते हैं. उन्हीं में सराहन में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ माता भीमाकाली का मंदिर भी शामिल (Bhimakali Temple Sarahan Rampur) है. यह मंदिर बेहद खुबसूरत व अनूठी बौद्ध और पहाड़ी शैली में निर्मित है. यह मंदिर रामपुर बुशहर से 37 किलोमीटर दूर भारत-तिब्बत सड़क पर ज्यूरी नमक स्थान से 17 किलोमीटर दाईं ओर समुद्र तल से लगभग 7 हजार एक सै फिट पर स्थित है. मां भीमाकाली, बुशहर राजवंश की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित (Bhimakali Temple Himachal) है.

बुशहर रियासत की प्राचीन राजधानी सराहन ही हुआ करती थी. कठिन भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए बाद में राजा राम सिंह ने रामपुर को बुशहर की राजधानी के रूप में विकसित किया और अंतिम राजा के रूप में वीरभद्र सिंह ने इसका प्रतिनिधित्व किया. वे हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भी (Former CM Himachal Virbhadra Singh) रहे और हिमाचल के लोग उन्हें आज भी राजा साहब कह कर बुलाना पसंद करते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार सराहन कभी शोणितपुर कहलाता था और यहां का सम्राट बाणासुर था. जो राजा बलि का पुत्र था. वह भगवान भोले शंकर का परम भक्त था.

भीमाकाली मंदिर सराहन.

त्रेता युग में रावण और बाणासुर के बीच में काफी संघर्ष होता रहा है. उस वक्त बाणासुर ही एक अकेला ऐसा योधा था, जिससे रावण कभी जीत नहीं सका. देवताओं की ओर से भगवान इंद्र ने पूरे सौ सालों तक इन राक्षसों से लोहा लिया, मगर उन्हें खदेड़ नहीं पाए. तभी सभी देवता ऋषि-मुनियों को लेकर भगवान शंकर की शरण में गए. लेकिन दैत्य के आराध्य होने की वजह से भगवान शंकर ने देवों की सहायता करने से इनकार किया. लेकिन साथ ही सलाह दी कि वे भगवान ब्रह्मा की शरण में जाएं. वह भी देवताओं का साथ नहीं दे सके.

पहाड़ों की गोद में बसा भीमाकाली मंदिर.

अंत में देवता भगवान विष्णु की शरण में गए. विष्णु उस समय शैया पर विराजमान थे. उन्होंने देवताओं की व्यथा सुनी तो दैत्यों की करनी पर विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने एक नजर पृथ्वी पर डालने में ही अपनी भलाई समझी. भगवान विष्णु ने जब पृथ्वी पर दैत्यों का अत्याचार अपनी आंखों से देखा तो वे क्रोधित हो उठे. उनकी आंखों से आग की लपटें निकलने लगीं. देवताओं की आंखों से भी तेज प्रकट होने लगा. जब दोनों आपस में मिले तो इससे एक देवी प्रकट हुई थी. विष्णु ने उन्हें चक्र, शंकर ने त्रिशूल, वरुण ने वस्त्र व जल, कुबेर ने मुकुट और अन्य देवी-देवताओं ने अपनी शक्ति के अनुसार अन्य चीजें भेंट की.

हिमाचल का भीमा काली मंदिर.

देवताओं ने देवी को अपनी शक्ति का अंश भी भेंट किया. तभी देवी ने राक्षसों का अंत कर इस क्षेत्र को उनके आतंक से मुक्ति दिलाई. पुराणों के अनुसार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपने दामाद भगवान शिव को अपने घर में होने वाले महायज्ञ में आमंत्रित नहीं किया तो नाराज सती ने क्रोध में आकर हवन कुंड में छलांग लगा दी. देवी के जले हुए अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे. शोणितपुर में उनका कान गिरा था, बाद में सती का विवाह पार्वती के रूप में भगवान शिव से हुआ. जानकारी देते हुए रामपुर के वरिष्ठ नागरिक आत्मा राम केदारटा ने बताया कि यह राजपरिवार की कुल देवी हैं. शरद नवरात्रों को यहां पर अधिक श्रधालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. यहां आने वाले सभी श्रदालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

भीमाकाली मंदिर सराहन.

नवरात्रों में राज परिवार करता है पूजा अर्चना: उन्होंने बताया कि प्रदुमन राजा के समय से ही माता यहां पर मौजूद हैं. यह माता राज परिवार की कुल माता है. उन्होंने बताया यहां से श्रीखंड के दर्शन भी होते हैं. शरद नवरात्रों (Shardiya Navratri 2022) का यहां पर विशेष महत्व है. अष्टमी के दिन यहां पर राज परिवार से कोई न कोई व्यक्ति पहुंचता है और माता की पूजा अर्चना की जाती है. नौ नवरात्रों के बाद यहां पर दशहरे का आयोजन किया जाता है. इसके बाद 4 दिन चलने वाला जिला स्तरीय मेला आयोजित किया जाता है. जिसमें क्षेत्र के अन्य देवी देवता भी पहुंचते हैं. वहीं वरिष्ठ नागरिक पूज्य देव शर्मा ने बताया कि माता खंडपीठ हैं.

भीमाकाली मंदिर सराहन.

आजादी के पहले लगती थी अदालत: इस माता की स्थापना उन विद्वानों द्वारा की गई है जो शावर विद्या जानते थे. वह उस समय आने जाने के लिए जहाज भी स्वयं बनाया करते थे और एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे. उन्होंने कहा कि माता ने राज परिवार को जनता का भला करने का वरदान दिया है. उन्होंने बताया कि यहां पर भीमा काली माता के मंदिर में लंकड़ा वीर का मंदिर भी स्थापित है. लंकड़ा वीर माता भीमा काली के सेनापति होते थे. जो आज भी यहां पर स्थापित हैं. उन्होंने बताया कि सराहन में 1947 से पहले राजा के समय यहां अदालत भी लगा करती थी. जिसमें लोगों की समस्याएं सुनकर उनका समाधान किया जाता था.

ये भी पढ़ें:शारदीय नवरात्रि 2022: जानिए मां को क्यों चढ़ाई जाती है केवल लाल रंग की चुनरी, इस नवरात्रि ऐसे करें माता को प्रसन्न

ABOUT THE AUTHOR

...view details