शिमला: आजादी के अमृत महोत्सव पर केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की तरफ से शिमला में आयोजित किए जा रहे साहित्यिक सम्मेलन में (INTERNATIONAL LITERATURE FESTIVAL IN SHIMLA) भाग लेने पहुंचे कवि-लेखक और पनुन कश्मीर आंदोलन के प्रमुख चेहरे अग्निशेखर ने ईटीवी (Author Agnishekhar in Shimla) से बातचीत की. कश्मीर में आर्टिकल-370 हटने के बाद की परिस्थितियों और कश्मीर समस्या के विभिन्न पहलुओं पर अग्निशेखर ने बेबाकी से बातें कहीं. उनकी बातों में निर्वासन की पीड़ा थी. अग्निशेखर ने कहा कि कश्मीरी पंडितों के लिए 19 जनवरी 1990 की रात अभी पूरी नहीं हुई है.
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में आजादी के बाद से (Author Agnishekhar on Kashmiri Pandits) अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि आर्टिकल-370 हटना है, लेकिन इससे आगे की बात अभी नहीं हुई है. वर्तमान सरकार ने ये असंभव से लगने वाले काम किए, जिसकी सराहना सभी ने खुलकर की. उन्होंने कहा कि जिस मकसद से अनुच्छेद-370 निरस्त किया गया, वो मकसद साफ-साफ जनता को नहीं बताए जाते. इस कदम को विकास के साथ, सड़कों के साथ व नौकरियों के साथ जोड़ा जाता है, जबकि ऐसा नहीं था. उन्होंने बड़ा आरोप लगाया कि आर्टिकल-370 की आड़ में एक मुस्लिम बहुल राज्य ही नहीं, एक इस्लामिक स्टेट का निर्माण किया था. इसे हिंदुस्तान की धरती पर एक पाकिस्तान के निर्माण के तौर पर देखा जा सकता है, इसलिए आर्टिकल-370 का हटना जरूरी था.
अग्निशेखर ने कहा कि इसके निरस्त होने के बाद जो कदम आगे और उठाए जाने चाहिए थे, वे नहीं उठे हैं. उदाहरण के लिए आर्टिकल-370 का हटना, जेएंडके का पुनर्गठन, धारा-35-ए का निरस्त होना अच्छा है, लेकिन उसके बाद विराम क्यों? आगे के कदम न उठाए जाने से ही ऐसी परिस्थितियां पैदा हुई जिन्हें आज देखा जा रहा है. अग्निशेखर ने स्पष्ट कहा कि केंद्र सरकार को अपनी कश्मीर नीति व कश्मीरी पंडितों की वापिसी की को लेकर पुनर्विचार करना चाहिए. कश्मीर में 4 अगस्त 2019 को जो मेरी यानी कश्मीरी पंडितों की स्थिति थी, वो 5 अगस्त 2019 को 370 हटने के बाद भी मेरी स्थिति वैसी ही है. ये बदलनी चाहिए थी, लेकिन नहीं बदली. मैं आज भी वहीं विस्थापित हूं, आज भी जम्मू में हूं और आज भी शरणार्थी हूं.
अग्निशेखर ने कहा कि उनके जैसे लाखों लोगों के लिए आज भी कुछ (Author Agnishekhar on Kashmir problems) बदला नहीं है. ये सही है कि 370 हटने से एक आशा की किरण नजर आई थी. कश्मीरी पंडितों को पहाड़ के उस पार अपनी मातृभूमि दिखने लगी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि केंद्र सरकार से चूक हुई है. कश्मीर में प्रशासन का जो संरचनात्मक ढांचा है, वो आज भी वैसा ही है. वही अफसर, वही टेबल और वही रूटीन का सिलसिला है. जब तक आमूल-चूल परिवर्तन नहीं होता और केंद्र सरकार अपनी नीति पर अडिग नहीं होती, तब तक कुछ परिणाम दिखना संभव नहीं लग रहा. पांच लाख से अधिक पंडित कश्मीर से बाहर हैं. पुनर्वास को नौकरियों के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए, ये दोनों अलग पहलू हैं.