शिमला: प्रदेश की अशा वर्करों का गुस्सा अब सरकार पर फूटा है. शिमला में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान हिमाचल प्रदेश आशा वर्कर संघ की अध्यक्ष सत्या रांटा ने कहा कि आशा वर्करों को मात्र एक दिन के 60 रुपए मिलते हैं. आशा वर्करों ने सरकार को चेताते हुए कहा कि उन्हें काम के बदलें सरकार दाम दें, वरना पूरे प्रदेश में काम बंद कर दिया जाएगा. सरकार द्वारा दिए जा रहे न्यूनतम वेतन से आशा वर्कर मानसिक तनाव में आ रही हैं.
संघ का कहना है कि सरकार द्वारा काम इतना ज्यादा दिया गया है कि आशा वर्कर एक दिन में पूरा भी नहीं कर सकती हैं. एक आशा वर्कर सुई से लेकर डॉक्टर तक का काम कर रही है. फिर भी 2 हजार रुपए में गुजारा करना पड़ रहा है. इसके अलावा उन्हें 1500 से 1600 के करीब सेंटर से इनसेंटिव मिलता है. इतने कम वेतन में आशा वर्करों का गुजारा नहीं हो पा रहा है.
6 मार्च को प्रदेश सरकार ने वेतन में 750 रुपए की वृद्धि की थी, लेकिन यह भी अभी तक नहीं मिला है. सत्या रांटा का कहना है कि सरकार द्वारा आशा वर्करों के काम की सरकार सराहना तो कर रही है, लेकिन उन्हें कितनी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं, इसका उन्हें पता नहीं है. प्रदेश भर में 7 हजार 964 आशा वर्कर काम कर रही हैं. अगर कोई आशा वर्कर घर से बाहर ड्यूटी के दौरान खाना भी खा लेती है तो भी 70 रुपए में मिलता है और सरकार द्वारा 60 रुपए दिए जाते हैं.
वहीं, 1 हजार की जनसंख्या में एक आशा वर्कर काम करती है, लेकिन सरकार द्वारा एक आशा वर्कर से 2 हजार जनसंख्या का काम करवाया जा रहा है. कुछ आशा वर्कर ऐसी है जो विधवा हैं और कुछ एकल नारी हैं. उन महिलाओं को सबसे ज्यादा दिक्कतें आ रही हैं. आशा वर्करों का रूटीन का काम कोविड का कार्य, वैक्सीनेशन सेंटर में ड्यूटी देना, गर्भवती महिलाओं का चेकअप करना, बच्चों की प्रतिरक्षा (Immunization) करना, कैंसर मरीज का सर्वे करना, आंखों में दिक्कत वाले लोगों का सर्वे करना आदि है.