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HIMACHAL: ओलों की आफत से कैसे निपटें बागवान, सरकारी सेक्टर में अभी तक सिर्फ एक एंटी हेलगन - हिमाचल में कुल सेब उत्पादन

हिमाचल प्रदेश में हर साल ओलावृष्टि से बागवानों को (Apple crops damaged due to hailstorm) भारी नुकसान झेलना पड़ता है. अमूमन अप्रैल और मई महीने में ओलावृष्टि होने से सेब उत्पादन प्रभावित होता है. सेब को ओलों से बचाने के लिए प्रदेश के अधिकतम बागवान एंटी हेलनेट पर निर्भर हैं. पढ़ें पूरी खबर...

Apple crops damaged due to hailstorm
ओलावृष्टि से बागवानों को भारी नुकसान

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Published : May 4, 2022, 9:31 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में हर साल ओलावृष्टि से बागवानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है. अमूमन अप्रैल और मई महीने में ओलावृष्टि होने से सेब उत्पादन प्रभावित होता है. सेब को ओलों से बचाने के लिए प्रदेश के अधिकतम बागवान एंटी हेलनेट पर (Apple crops damaged due to hailstorm) निर्भर हैं. परंतु भारी ओलावृष्टि में एंटी हेलनेट भी काम नहीं आते हैं. हिमाचल में डेढ़ दशक से भी अधिक समय से एंटी हेल गन स्थापित करने का शोर है लेकिन अभी तक सरकारी सेक्टर में सिर्फ एक ही हेल गन स्थापित (Himachal govt has one anti hail gun) की जा सकी है. विदेश में निर्मित हेल गन डेढ़ से तीन करोड़ रुपए में पड़ती है.

हिमाचल की जरूरतों को देखते हुए आईआईटी मुंबई और बागवानी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों ने स्वदेशी हेल गन निर्मित की है. यह कीमत में विदेश के मुकाबले काफी कम है. लेकिन अभी तक एक ही एंटी हेल गन ट्रायल के लिए तैयार हो सकी है. हाल ही में कंडाघाट में टेस्टिंग के बाद स्वदेशी एंटी हेल गन शिमला जिले में जुब्बल के मंढोल में स्थापित की गई थी. इसकी क्षमता का आकलन किया जा रहा है. हिमाचल में बागवान अपने स्तर पर एंटी हेल गन स्थापित कर चुके हैं. विदेशों से मंगवाकर निजी क्षेत्र में पांच हेल गन स्थापित की गई हैं. ये सभी शिमला जिले में हैं.

सरकार ने सेब को ओलों से बचाने के लिए स्वदेशी तकनीक पर हेल गन विकसित करने का प्रोजेक्ट शुरू किया है. प्रोजेक्ट से जुड़े आईआईटी मुंबई के डिपार्टमेंट ऑफ एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के वैज्ञानिक प्रो. सुदर्शन कुमार और डॉ. वाईएस परमार यूनिवर्सिटी नौणी के पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसके भारद्वाज ने बताया कि कंडाघाट में टेस्टिंग के बाद एंटी हेल गन को परीक्षण के लिए जुब्बल में स्थापित किया गया है. हिमाचल प्रदेश में 10 से 12 अन्य स्थानों पर भी एंटी हेल गन लगाने की योजना है. बागवानी विभाग को इसका प्रोजेक्ट भेजा है. अगर बजट मिलता है तो अन्य स्थानों पर भी इसे स्थापित किया जाएगा.

आईआईटी मुंबई की एंटी हेल गन करीब एक किलोमीटर क्षेत्र में प्रभाव पैदा करने में सक्षम है. हेल गन को लगाने समेत इस तकनीक का शुरुआती खर्च करीब 12 से 15 लाख रुपये है, एक बार स्थापित हो जाने के बाद एलपीजी का ही खर्च होता है. एलपीजी गैस का प्रयोग इस तकनीक को सस्ता रखने के लिए किया गया है. वैज्ञानिकों ने स्वदेशी एंटी हेल गन में मिसाइल और लड़ाकू विमान चलाने वाली तकनीक का प्रयोग किया है. हवाई जहाज के गैस टरबाइन इंजन और मिसाइल के रॉकेट इंजन की तर्ज पर इस तकनीक में प्लस डेटोनेशन इंजन का इस्तेमाल किया गया है. इसमें एलपीजी और हवा के मिश्रण को हल्के विस्फोट के साथ दागा जाता है. विस्फोट से शॉक वेव तैयार होकर वायुमंडल में जाती है और बादलों के अंदर का तापमान बढ़ने से ओला बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है.

हिमाचल में अभी शिमला जिले में पांच जगह पर (Apple crops damaged due to hailstorm) बागवानों ने अपने स्तर पर हेल गन लगाई है. ये एंटी हेल गन शिमला के दशोली, रतनाड़ी, बागी, कलबोग व महासू क्षेत्र में लगाई गई है. हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल की सरकार के समय एंटी हेल गन स्थापित करने की शुरुआत हुई थी. वर्ष 2012 में भाजपा सत्ता से बाहर हो गई और कांग्रेस सरकार ने एंटी हेल गन प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया. उस दौरान शिमला जिले के बागी और रतनाड़ी पंचायतों से जुड़े बागवान अपने स्तर पर न्यूजीलैंड से डेढ़ करोड़ रुपए लागत की एंटी हेल गन ले आए.

उल्लेखनीय है कि हिमाचल में कुल सेब उत्पादन का 80 फीसदी (apple production in Himachal) सेब शिमला जिले में होता है. ऐसे में शिमला जिले में सबसे अधिक एंटी हेल गन की जरूरत है. बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर का कहना है कि सरकार क्षेत्र में एंटी हेल गन स्थापित करने पर तेजी से काम कर रही है. एक हेल गन का परीक्षण हो चुका है. प्रदेश के कम से कम 12 स्थानों पर एंटी हेल गन लगाई जाएगी ताकि ओलावृष्टि से होने वाले नुकसान को रोका जा सके.

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