शिमला: हिमाचल में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में भाजपा की पराजय ने कई संकेत दिए हैं. चुनाव परिणाम आने के बाद आनन-फानन में मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से मीडिया को सूचना आई कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अपनी बात रखना चाहते हैं. मीडिया के साथ चर्चा के दौरान बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप (BJP State President Suresh Kashyap) भी मौजूद थे. जाहिर है पराजय का असर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और पार्टी मुखिया सुरेश कश्यप के चेहरे पर स्पष्ट दिख रहा था.
जैसा कि होता आया है, राजनीति के क्षेत्र में हार के कारण तलाशे जाते हैं और ठीकरा किसी ना किसी के सिर पर फोड़ा जाता है. मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष ने यह ठीकरा महंगाई, नोटा, भीतरघात पर फोड़ा है. मंडी सीट पर 13 हजार के करीब मत नोटा के पक्ष में गए हैं. इससे साबित होता है कि लोग भाजपा से तो नाराज हैं ही, कांग्रेस से भी कोई खास खुश नहीं है. वीरभद्र सिंह फैक्टर (Virbhadra Singh Factor) नहीं होता तो प्रतिभा सिंह को ऐसी जीत शायद न मिलती.
चुनाव प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर भी कई वीडियो ऐसे आए जिसमें लोग चाहे वो अल्पशिक्षित बुजुर्ग हों या फिर स्वरोजगार करने वाले युवा, सभी महंगाई के लिए भाजपा को कोस रहे थे. यह आवाज सत्ता के मद में चूर भाजपा नेताओं तक शायद नहीं पहुंची. फिर कुछ लोग सवर्ण समाज की अनदेखी पर भी नाराज थे. कई लोग इलाके के विकास की उपेक्षा से गुस्से में थे. इसका उदाहरण सोलन जिला के कुनिहार से देखने को मिला जहां सवर्ण समाज के लोगों ने हर क्षेत्र में अपनी अनदेखी का गुस्सा नोटा के रूप में निकाला.
इसी तरह किन्नौर में हाइड्रो प्रोजेक्ट के कारण पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर भी लोग नाराज थे. ये छोटे-छोटे फैक्टर मल्टीप्लाई होकर एटॉमिक रिएक्शन की तरह फूटे और भाजपा की नैया ले डूबे. भाजपा और संगठन को इस बात का मुगालता था कि उनके पास मजबूत कैडर है. लेकिन वे यह नहीं भांप पाए कि इसी कैडर में कुछ निष्ठावान कार्यकर्ता अनदेखी के कारण नाराज हैं. पार्टी के कई प्रभावशाली नेता भी अन्यमनस्क होकर चुनाव मैदान में उतरे. उदाहरण के लिए महेश्वर सिंह, अनिल शर्मा, गोविंद राम शर्मा, पूर्व पार्टी अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री खिमी राम शर्मा.
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मंडी में पूरा जोर लगाया. यहां तक की मंडी की अस्मिता के नाम का इमोशनल कार्ड भी खेला लेकिन बाजी नहीं पलट पाए. वहीं यह चुनाव महेंद्र सिंह की प्रबंधन क्षमता की भी कलई उतारने वाले साबित हुए. महेंद्र सिंह अब तक कोई भी चुनाव नहीं हारे थे यह पहला चुनाव है जिसका जिम्मा महेंद्र सिंह के पास था, लेकिन भाजपा हार गई. यह सही है कि भारतीय जनता पार्टी इस बात से खुद को संतुष्ट कर लेगी कि जीत का अंतर बहुत कम है, लेकिन चुनावी मैदान में जीत-जीत ही होती है. चाहे वो एक वोट से ही क्यों ना हो.
ये चुनाव भाजपा के लिए तो सबक लेकर आए ही हैं. कांग्रेस के लिए भी मंथन का विषय है. यह देखना होगा कि कांग्रेस अपने कैडर और जनता के बीच संपर्क के जरिए यह चुनाव जीती है या फिर सहानुभूति फैक्टर के कारण अर्की मंडी व फतेहपुर की जीत में इमोशन के रोल को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. रोहित ठाकुर पहले भी जुब्बल-कोटखाई में भी नरेंद्र बरागटा के लिए चुनौती रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस को अति आत्म विश्वास में नहीं आना होगा. इस चुनाव के बाद भाजपा और कांग्रेस में नए समीकरण बनेंगे.