शिमला: इन दिनों राज्य के कर्मचारी और सरकार हिमाचल प्रदेश में नए वेतन आयोग की (new pay commission in hp) सिफारिशों को लागू करने के गुणा-भाग में जुटे हैं. कर्मचारी एक स्वर में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग भी जोर-शोर से उठा रहे हैं. निजी सेक्टर में काम करने वाले युवाओं का तर्क है कि सरकारी कर्मियों का वेतन अच्छा-खासा है. वहीं, सरकारी सेक्टर में काम करने वाले इस तर्क के जवाब में कहते हैं कि मेहनत से नौकरी पाई है. ऐसे में इस गुणा-भाग और तर्क-वितर्क के बीच माननीयों के वेतन और पेंशन को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश विधानसभा (Himachal Pradesh Vidhan Sabha) में 68 विधायक हैं. इनमें से 76 फीसदी करोड़पति हैं. ओल्ड पेंशन स्कीम के पक्षधर लोग ये कह रहे हैं कि माननीयों यानी नेताओं की पेंशन भी बंद की जाए. यहां ये जानना दिलचस्प रहेगा कि हिमाचल प्रदेश में माननीयों, मंत्रियों व विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को कितना वेतन मिलता है. उल्लेखनीय है कि पूर्व में हिमाचल प्रदेश में स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के समय में माननीयों के वेतन में बढ़ोतरी हुई थी. उसके बाद चार साल में जयराम सरकार ने केवल माननीयों का यात्रा भत्ता बढ़ाकर चार लाख रुपए सालाना किया है. यात्रा भत्ता बढ़ाने से सरकार के खजाने पर सालाना 1.99 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा है.
आइए, देखते हैं कि क्या है माननीयों के वेतन और भत्तों का गणित. ये भी जानेंगे कि (Salary of MLAs in Himachal) हिमाचल विधानसभा में करोड़पति नेता कौन-कौन से हैं. छह साल पहले की बात है, हिमाचल में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. उस समय हिमाचल प्रदेश पर पैंतीस हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज था. तब वीरभद्र सिंह सरकार ने माननीयों के वेतन में बढ़ोतरी का फैसला लिया. उस समय नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल थे, हालांकि सदन में गतिरोध चल रहा था और एक समय तो ऐसा लगा कि वेतन और भत्तों की बढ़ोतरी का प्रस्ताव कहीं अधर में न लटक जाए. लेकिन जब लक्ष्मी की बारी आई तो पक्ष और विपक्ष के नेता एक सुर में एकजुट हो गए.
अप्रैल 2016 में बजट सत्र के आखिरी दिन वेतन और भत्तों में (MLA Allowance in Himachal) बढ़ोतरी संबंधी प्रस्ताव आया था. विधेयक के पारित होते ही सत्ता और विपक्ष के सदस्यों ने जोर से मेज थपथपा कर उसका स्वागत किया. पूरे सेशन के दौरान एक-दूसरे को कोसने वाले सत्ता व विपक्ष के सदस्य वेतन व भत्तों की बढ़ोतरी पर एकमत थे. तत्कालीन वीरभद्र सिंह की सरकार के तीन साल के कार्यकाल में दूसरी बार माननीयों के वेतन व भत्ते बढ़े थे. बाद में मीडिया से बातचीत में तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह ने कहा कि विधायकों, मंत्रियों आदि के वेतन व भत्तों में बढ़ोतरी जरूरी थी.
ये है सीएम व मंत्रियों का वेतन-भत्ते का गणित-अप्रैल 2016 में वीरभद्र सिंह सरकार ने माननीयों का वेतन बढ़ाया था. तब सरकार ने मुख्यमंत्री का वेतन 65 से 95 हजार मासिक किया था. इसके साथ सत्कार भत्ते को 30 हजार से बढ़ाकर 95 हजार रुपए किया गया था. कैबिनेट मंत्री का वेतन 50 से 80 हजार रुपए किया और साथ ही अन्य भत्ते भी बढ़ाए गए थे. इससे सरकारी खजाने पर 16.22 करोड़ सालाना का बोझ पड़ा था. जब वीरभद्र सिंह सरकार के समय वेतन बढ़ा तो उससे पहले सीएम को मासिक वेतन के तौर पर 60 हजार रुपए, सत्कार भत्ते के तौर पर 30 हजार रुपए, मुफ्त यात्रा सुविधा के लिए साल में 2 लाख रुपए मिलते थे.
बढ़ोतरी के बाद सीएम का मासिक वेतन 95 हजार रुपए हुआ. सत्कार भत्ते को तीस हजार से बढ़ाकर 95 हजार किया गया है. मुफ्त यात्रा के लिए मिलने वाले भत्ते को ढाई लाख सालाना किया गया था. यात्रा अग्रिम राशि भी दस हजार से बढ़ाकर 25 हजार की गई है. इसी तरह से कैबिनेट मंत्रियों का मासिक वेतन 50 हजार से बढ़ाकर अस्सी हजार किया गया था. सत्कार भत्ता व अन्य सुविधाएं मुख्यमंत्री के बराबर ही है. इसी तरह मुख्य संसदीय सचिवों के वेतन को भी बढ़ाया गया था. सीपीएस यानी मुख्य संसदीय सचिव का वेतन 40 हजार से 65 हजार प्रति माह किया गया था.
संसदीय सचिव को 35 हजार मासिक के स्थान पर 60 हजार रुपए मासिक वेतन तय है. हालांकि जयराम सरकार में सीपीएस व पीएस नहीं हैं. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष का वेतन पचास हजार रुपए मासिक से बढ़ाकर अस्सी हजार रुपए मासिक किया गया था. वहीं, विधानसभा उपाध्यक्ष का वेतन भी 45 हजार से बढ़ाकर 75 हजार रुपए किया गया था. उनका सत्कार भत्ता भी 30 हजार से 95 हजार मासिक हुआ. यात्रा भत्ता ढाई लाख रुपए सालाना होगा. बाद में जयराम सरकार ने यात्रा भत्ता चार लाख रुपए सालाना किया है.
माननीयों की भी हुई थी मौज-माननीयों यानी विधायकों के वेतन में भी भारी बढ़ोतरी की गई है. उनका वेतन तीस हजार रुपए मासिक के स्थान पर 55 हजार रुपए किया गया था. निर्वाचन क्षेत्र के भत्ते को साठ हजार से बढ़ाकर नब्बे हजार किया गया. कार्यालय भत्ता दस हजार रुपए से बढ़ाकर तीस हजार रुपए किया गया था. इसके अलावा विधायकों के लिए डाटा एंट्री ऑपरेटर के लिए भी 12 हजार रुपए मासिक की बजाय 15 हजार रुपए किए गए थे. सरकार ने तब पूर्व विधायकों की पेंशन को भी बढ़ाया था. उनकी यानी पूर्व विधायकों की पेंशन मुख्य सचिव से अधिक है. ये 36 हजार मासिक है, लेकिन सैलरी और पेंशन में बेसिक के साथ 120 फीसदी महंगाई भत्ता जोड़ा गया.
पेंशन में एक कार्यकाल के बाद जितने भी साल विधायक रहे हों, हर साल के 1000 रुपए अतिरिक्त जोड़े जाएंगे. इस तरह सभी भत्ते जोड़कर अब एक विधायक को 2.10 लाख सैलरी और पूर्व विधायक को औसतन एक लाख रुपए मासिक पेंशन मिलती है. मुख्यमंत्री और मंत्रियों की सैलरी सभी कुछ मिलाकर करीब ढाई लाख रुपए मासिक है. विधायकों की सैलेरी 2.10 लाख रुपए मासिक है.