किन्नौर:हिमाचल के जनजातीय जिले किन्नौर में आजतक कोई नहीं बता सका कि कब यहां बर्फबारी होगी, क्योंकि यहां की भौगोलिक स्थिति के (Climatic Conditions Of Kinnaur) अनुसार तो इतनी सटीकता दिखाना मुश्किल ही रहा है. जिले में कई बार जून महीने में भी बर्फबारी होती (Snowfall in Kinnaur) है. ऐसे में यहां की सर्दी कैसे रहेगी इसका अनुमान लगाना कठिन है, लेकिन प्रकृति व कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर माह में यहां पर कड़ाके की (Climatic Conditions Of Kinnaur) सर्दियां शुरू हो जाती हैं. यहां भारी बर्फबारी भी देखने को मिलती है जिसके बाद लोग अपने रहन सहन में बदलाव शुरू करते हैं. सर्दियों के मौसम में लोग अपने परिवार के साथ लकड़ी से निर्मित पुराने मकानों में रहना पसंद करते हैं.
हिमाचल का यह जनजातीय जिला अपने अनूठे रहन-सहन और पहनावे के लिए भी चर्चित है. इस समय किन्नौर में बर्फबारी हो रही है और यहां के निवासियों ने हाड़ कंपा देने वाली सर्दी से लड़ाई का सामान जुटा लिया है. हैरत की बात है कि किन्नौर में नमकीन चाय से सर्दी का मुकाबला किया जाता है. ये नमकीन चाय अपने अद्भुत स्वाद के लिए पहचान रखती है. इसे पीने से हिमपात के दौरान भी जिस्म गर्म रहता है. गाय के मक्खन, दूध और एक खास किस्म की सूखी पत्तियों से बनती है ये नमकीन चाय. रोचक बात है कि इस चाय को लकड़ी के बर्तन में हिला हिला कर तैयार किया जाता है. इसमें पीसे हुए सूखे मेवे भी डाले जाते हैं.
जिले में सर्दियों के मौसम में ऊन से बने वस्त्र पहने जाते हैं. जिसमें ऊन के कोट, पयजामा, मफलर, किन्नौरी टोपी है, लेकिन अब परिस्थितियों के बदलाव के साथ लोग मोटे जैकेट व रेडीमेट पायजामा व अन्य वस्त्रों का भी प्रयोग करते हैं, लेकिन जिले में अधिकतर क्षेत्रों में अब भी ऊनी वस्त्र पहनना लोग पसंद करते हैं, क्योंकि सर्दियों में ऊनी कपड़े गर्म होते हैं. जिससे किन्नौर में बर्फबारी (snowfall in kinnaur) की ठंड से बचा जा सकता है. यहां महिलाएं भी ऊनी दौड़ी (महिलाओं के पूरे बदन को ढक लेती है, जिसका वजन करीब 8 से 10 किलो के करीब होता है) पहनती हैं. वहीं, पुरुष ऊन से बना छुबा, टोपी का प्रयोग करते हैं और रात को सोते हुए भी ऊन से बनी विशेष रूप के फोग दौरी यानी ऊन का विशेष रूप का किन्नौरी कंबल ओढ़ कर सोते हैं. जिससे ब्लड प्रेशर भी सामान्य बना रहता है और यह ऊनी कंबल बहुत गर्म होता है.
यहां पर बर्फबारी के दौरान लोग अपने खाने पीने पर ध्यान देते है क्योंकि बर्फबारी में यहां करीब 4 से 5 महीने कड़कढ़ाती (Snowfall in Kinnaur) ठंड होती है. ऐसे में लोग मुख्य रूप से मांस, मदिरा के साथ यहां का पारम्परिक खाना (Special dishes of Kinnaur) जिसमें ओगला, फाफड़ा के चिलटे, ओगला फाफड़ा के सुखाई पत्तियों की सब्जी, जंगल से निकाली गई सूखी व पौष्टिक सब्जियां, सूखा मांस इत्यादि का प्रयोग करते हैं. जिले के दुर्गम क्षेत्र में तो बकरी, भेड़ के मांस को विशेष तरीके से घरों में सुखाया जाता है, और जब बर्फबारी होती है तो इस मांस को आलू के साथ एकत्रित कर पकाया जाता है. सूप व मांस को कुछ पुरुष मदिरा के साथ भी प्रयोग करते हैं और इसके अलावा सर्दियों में चावल, गुड़ से बने शुदूंग का प्रयोग भी किया जाता है जो एक तरीके का हल्का मदिरा माना जाता है. जिले में इसके अलावा सूखे मेवे, जिसमें चिलगोजा, अखरोट, बादाम, जौ, गेहूं, मक्की के दानों को आग पर भूनकर भी खाया जाता है.