शिमलाःहिमाचल में हीमोफीलिया की बीमारी बढ़ रही है. जहां पहले लोगों में यह बीमारी कम देखने को मिलती थी लेकिन अब हीमोफीलिया के मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है. हिमाचल में अभी तक 140 मरीज हीमोफीलिया की चपेट में आए हैं. राजधानी शिमला के आईजीएमसी की अगर बात की जाए तो यहां पर वर्तमान में 35 बच्चों का इलाज जारी है. चिंता का विषय तो यह है कि हीमोफीलिया की चपेट में खासकर बच्चे ही आ रहे हैं.
हिमाचल में आईजीएमसी और टांडा मेडिकल कॉलेज में हीमोफीलिया का उपचार होता है. चिकित्सक का तर्क है कि लोग समय रहते ही इसका उपचार करवाएं. हीमोफीलिया मरीजों की अगर बात की जाए तो एक मरीज को स्वस्थ होने के लिए 9 से 10 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन धैर्य की बात ये है कि इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों का सारा खर्चा सरकार उठा रही है. यहां मरीजों के फ्री उपचार की स्कीम प्रदेश सरकार ने लागू की है. सरकार की यह स्कीम प्रदेश के मरीजों के लिए वरदान साबित हो रही है.
आईजीएमसी अस्पताल प्रशासन का तर्क है कि अगर किसी भी मरीज को इस बीमारी से निजात पानी है तो वे अपना आधार कार्ड या फिर हिमाचली बोनोफाईड से इस योजना का लाभ ले सकता है. किसी मरीज का अगर हीमोफोलिक सोसायटी में नाम दर्ज है, तो वह मरीज भी अपना इलाज करवा सकते हैं.
क्या है हीमोफीलिया
पैतृक रक्तस्राव या हीमोफीलिया एक आनुवांशिक बीमारी है. इसमें शरीर के बाहर बहता हुआ रक्त जमता नहीं है. इसके कारण चोट या दुर्घटना में यह जानलेवा साबित होती है. इस बीमारी के कारण रक्त का बहना जल्द बंद नहीं होता. विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे क्लॉटिंग फैक्टर कहा जाता है.
जरा-सी चोट पर बहने लगता है खून