नाहन: सिरमौर जिले के शिक्षा खंड माजरा के तहत नौरंगाबाद राजकीय उच्च विद्यालय की 10वीं कक्षा की छात्रा वंदना पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक बार फिर शिमला में अपने जाइलम फिल्टर नाम से तैयार किए गए मॉडल को प्रदर्शनी के माध्यम से सबके सामने पेश करेगी. इससे पहले मार्च माह में राज्य स्तरीय बाल विज्ञान कांग्रेस में भी वंदना के इस मॉडल को सर्वश्रेष्ठ तीन में आंका गया था और शिक्षा मंत्री ने इस होनहार छात्रा को युवा वैज्ञानिक के पुरस्कार से सम्मानित किया था.
दरअसल क्षेत्र के गुज्जर समुदाय से ताल्लुक रखने वाली स्कूली छात्रा वंदना ने बेहद ही कम खर्च पर पानी को शुद्ध करने की तकनीक विकसित की है, जिसे जाइलम फिल्टर का नाम दिया गया है. वंदना ने इस फिल्टर को बनाने के लिए 2 छोटे मटकों की (Xylem Water Filter) तली में छेद किया. छेद में रबड़ की पाइप फंसाकर इसके आखिरी सिरों पर जाइलम युक्त तने के टुकड़े लगाए हुए हैं. पहले घड़े से पानी दूसरे घड़े में फिल्टर होता है फिर दूसरे घड़े से पानी फिल्टर होकर नीचे रखे तीसरे बर्तन में पहुंचता है. इस पानी की प्रयोगशाला में भी जांच करवाई गई है, जहां पर यह पानी पूरी तरह से शुद्ध पाया गया है. स्कूली छात्रा ने यह तकनीक स्कूल के मुख्याध्यापक संजीव अत्री के मार्गदर्शन में तैयार की है.
जाइलम फिल्टर मॉडल. (वीडियो) स्कूली छात्रा वंदना के जाइलम फिल्टर की जानकारी देते हुए नौरंगाबाद स्कूल के मुख्याध्यापक संजीव अत्री ने बताया कि एक नई तकनीक से पानी को शुद्ध व स्वच्छ बनाया जा सकता है, जिसका नाम जाइलम फिल्टर रखा गया है. यह तकनीक (vandana developed technology) पानी को शुद्ध करने के लिए सबसे सस्ता माध्यम है, जिसमें किसी भी केमिकल या मशीन का इस्तेमाल नहीं होता. बहुत ही साधारण चीजों का इसमें प्रयोग किया गया है. उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक आधार पर पौधे अपने जाइलम का जिस कार्य के लिए प्रयोग करते हैं, उसी जाइलम का इस्तेमाल हमने मानवीय कार्यों के लिए किया है.
संजीव अत्री ने बताया कि अमूमन पौधे जाइलम के माध्यम से धरती के अंदर से पानी को अपने ऊपर तक ले जाते हैं और जो मिनरल्स पौधों को चाहिए होते हैं, उन्हीं को वह प्रयोग में लाते हैं. इसी फॉर्मूले का प्रयोग उक्त मॉडल के लिए भी किया गया. इसके तहत दो मटके को पाइप से जोड़ा गया और पाइप के दोनों सिरों पर जाइलम को लगाया है. उन्होंने बताया कि जाइलम निकालने के लिए चीड़ के पेड़ की सूखी लकड़ी से छाल उतारकर बीच से 2 से 3 ईंच का जाइलम लिया गया और उसे पानी में उबाला जाता है, ताकि उसके अंदर से अशुद्धियां निकल जाए. इसके बाद उक्त जाइलम को पाइप में लगा दिया जाता है. इसके बाद दोनों मटकों में लगी जाइलम से पानी फिल्टर होकर तीसरे बर्तन में पहुंचता है.
उन्होंने यह भी बताया कि पहले नीम के हरे तने का प्रयोग किया, लेकिन बाद में जामुन व साल का जाइलम भी इस्तेमाल में लाया गया था, लेकिन चीड़ के जाइलम से पानी के निकालने की गति तेज पाई गई. संजीव अत्री ने बताया कि क्षेत्र में अधिकतर आबादी गुज्जर समुदाय से है, जोकि फ्रिज या फिर आम फिल्टरों का प्रयोग नहीं करते, इसलिए क्षेत्र के लोगों से भी इस तकनीक को अपनाने का आग्रह किया गया. कुछ यंत्र बनाकर भी दिए गए, ताकि वह शुद्ध पानी पी सकें. मुख्याध्यापक संजीव अत्री ने बताया कि इस तकनीक को मार्च माह में बाल विज्ञान कांग्रेस में मॉडल के तौर पर भी प्रस्तुत किया गया था, जहां पर इसे प्रदेश में सर्वश्रेष्ट तीन में आंका गया और इसी के आधार पर स्कूल की छात्रा वंदना को युवा वैज्ञानिक को पुरस्कार भी शिक्षा मंत्री के हाथों प्राप्त हुआ था. अब 5 जून को पर्यावरण दिवस पर प्रदर्शनी में स्कूली छात्रा को उक्त मॉडल के साथ आमंत्रित किया गया है.
कहां से मिला था आइडिया: दरअसल वंदना ने गुज्जर समुदाय के लोगों से पशुओं की दवाई तैयार करने की तुंबा कोड़ी विधि के बारे में सुना था, जिसमें सूखी हुई घिया के खोखले भाग में जड़ी बूटी पीसकर उसका घोल भरने के बाद इसके एक हिस्से में नीम का हरा तना फंसाकर उल्टा लटकाया जाता है. इसके बाद नीम के तने से यही घोल बूंद-बूंद कर टपकने लगा. बस इसी को वैज्ञानिक आधार बनाकर स्कूली छात्रा वंदना ने अपने मुख्याध्यापक संजीव अत्री के साथ पौधे के जाइलम का प्रयोग पानी छानने के लिए किया.
पहले नीम के हरे तने का प्रयोग किया गया, लेकिन बाद में जामुन व साल का जाइलम इस्तेमाल में लाया गया. इसके बाद चीड़ के जाइलम का प्रयोग किया गया, जिसमें पानी के निकालने की गति तेज पाई गई. बता दें कि पौधे का जाइलम प्राकृतिक रुप से जल का पारगमन कर सकता है. इसी आधार पर जाइलम फिल्टर का कार्य करता है. जाइलम में मौजूद कोषाएं जल को छानने का कार्य करने में सक्षम हैं. विशेष रुप से आयुषीय व जिम्नोस्पर्म पौधों का जाइलम अच्छे फिल्टर के तौर पर कार्य करता है.