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शिवरात्रि स्पेशल: इस पर्वत से भगवान शिव-मां पार्वती ने देखा था महाभारत का युद्ध!

शिव ही आदि हैं, शिव ही अनादि हैं, शिव ही सत्य हैं और शिव ही सुंदर हैं. वैसे तो भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं, लेकिन पूरे भारत में 12 ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं. इसके साथ ही भारत के कई शिवालय भोलेनाथ के चमत्कारों की गवाही देते हैं. इन शिवालयों में भक्तों की अटूट आस्था है. शिवरात्री के पावन अवसर (Shivratri Special 2022 ) पर ईटीवी भारत आज आपको एक ऐसे ही शिवालय के दर्शन करवाएगा, जोकि भोले के भक्तों की आस्था का अटूट केंद्र माना जाता है. इस शिव मंदिर को लोग भूरेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जानते हैं.

Shiv Temple of Bhureshwar Mahadev
क्वागधार पर्वत पर भूरेश्वर महादेव

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Published : Feb 28, 2022, 1:45 PM IST

नाहन:हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के तहत नाहन-शिमला हाईवे पर पच्छाद विधानसभा क्षेत्र के सराहां कस्बे से महज 12 किलोमीटर दूर प्राचीन भूरेश्वर महादेव का प्राचीन शिव मंदिर (Shiv Temple of Bhureshwar Mahadev) स्थित है. समुंदर तल से करीब 6800 फुट ऊंचाई पर क्वागधार पर्वत शिखर पर स्थित यह मंदिर काफी प्राचीन है. इसका इतिहास द्वापर युग से जुड़ा है.


यहां से भगवान शिव व मां पार्वती ने देखा था महाभारत का युद्ध-मंदिर के पुजारी, स्थानीय लोगों सहित मंदिर की दीवार पर लिखी गई कहानी के अनुसार द्वापर युग में क्वागधार पर्वत शिखर (Kwagdhar mountain peak) पर बैठकर भगवान शिव और मां पार्वती ने कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया महाभारत का युद्ध देखा था. तभी से यहां पर स्वयंभू शिवलिंग की उत्पत्ति मानी जाती है. बताते हैं कि मंदिर में स्थित शिवलिंग 35 से 50 फुट पर्वत के नीचे धरती तक समाया है. यह मंदिर पच्छाद क्षेत्र के लोगों का कुलदेवता भी है. स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां आने वाले भक्तों की सच्चे मन से मांगी गई फरियाद भगवान भोलेनाथ जरूर पूरी करते हैं. मंदिर में रखे गए नगाड़ा को बजाने के बाद ही भक्त भगवान भोले से प्रार्थना करते हैं.

भाई-बहन की कथा भी प्रचलित-एक अन्य किदवंती के मुताबिक पजेरली रैली गांव के एक भाई-बहन पशु चराने क्वागधार पर्वत श्रृंखला पर आते थे, जो अनजाने में स्वयंभू शिवलिंग के चारों तरफ घूमते थे. एक दिन भारी तूफान, वर्षा, ओलावृष्टि और बर्फबारी में पशु चराते समय उनका एक बछड़ा गुम हो गया. जब वह घर पहुंचे, तो सौतेली मां ने दोनों भाई- बहन से पूछा कि बछड़ा कहां पर है. दोनों भाई बहन ने बताया कि बछड़ा गुम हो गया है, तो सौतेली मां ने कड़ाके की ठंड में दोनों को बछड़े की खोज के लिए क्वागधार पर्वत शिखर पर भेज दिया.

पर्वत शिखर पर शिवलिंग के पास बछड़ा पाने पर भाई ने बहन को घर भेज दिया. दूसरे दिन प्रातः जब पिता और बेटी बछड़े और पुत्र की खोज में शिखर पर पहुंचे, तो शिवलिंग के पास बछड़े और लड़के को निश्चल पाया, जो देखते ही देखते दिव्य शक्ति में अंतर्ध्यान हो गया. वहीं, सौतेली मां ने लड़के की बहन का विवाह एक काने व्यक्ति के साथ कर दिया. काना व्यक्ति जब बारात लेकर वापस जा रहा था, तो बारात उसी रास्ते से गुजरी, जहां पर लड़की का भाई अदृश्य हुआ था.

बहन ने उस स्थान पर डोली रुकवाई और भाई को याद किया. भाई को छोड़कर बहन ससुराल जाने को तैयार नहीं थी. भाई के वियोग में बहन ने 1 किलोमीटर गांव कथाड़ की तरफ जाते हुए डोली से छलांग लगा दी और कुछ दूरी के बाद वह भी अंतर्ध्यान होकर नीचे भाभड़ के घास के साथ पवित्र जल धारा के रूप में प्रकट हुई. भाई-बहन द्वारा अनजाने में की गई परिक्रमा के आशीर्वाद से वह शिवलोक को प्राप्त हुए.


देव ग्यास पर मध्य रात्रि में शिला पर मुख्य पुजारी लगाता है छलांग-वहीं, क्वागधार के भूरेश्वर महादेव मंदिर में दिवाली के बाद देव ग्यास को होने वाली भूरेश्वर महादेव की देव परंपरा भी एकदम निराली है. देव ग्यास के तहत यहां देवता पालकी में नहीं चलते. बल्कि सीधे देव शक्ति मुख्य पुजारी में प्रवेश करती है और वह अपने पारंपरिक श्रृंगार से सुसज्जित होकर साक्षात देवता रूप में पैदल मंदिर पहुंचते हैं. यह देव यात्रा ढाई किलोमीटर यानी एक कोस चढ़ाई का सफर कर मंदिर के मोड़ पर पूरी होती है. देवस्थली पुजारली (पजेली) गांव में देवता का श्रृंगार का अपना विशेष बाणा यानी पारंपरिक पोशाक धारण करते हैं. इस दौरान उन्हें वह पगड़ी पहनाई जाती है, जिसमें देवता का छत्र जड़ा होता है.

इस छत्र को मंदिर या मोड़ पर पहुंचकर पगड़ी से उतारने के साथ ही स्वयंभू शिवलिंग-पिंडी पर सजा दिया जाता है. ग्यास पर्व पर होने वाले इस विशेष देव उत्सव में शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. देवता वाद्य यंत्रों की धुनों के बीच एक कोस की चढ़ाई चढ़ते हुए 7 चिन्हित स्थानों पर दूध की धार चढ़ाते हैं और मोड़ में पहुंचते ही 8वीं धार मंदिर के साथ नीचे शिला पर चढ़ाते हैं. इसके बाद ही देवता मंदिर में प्रवेश करते हैं, जहां एक विशेष परंपरा के अनुसार 22 उपगोत्रों द्वारा आगे की रस्में शुरू होती हैं. मंदिर में देवता की पगड़ी के अंदर जड़े छत्र को शिवलिंग-पिंडी पर सजा दिया जाता है.

दिन भर लोग मंदिर के साथ स्थित शिला पर दूध, मक्खन, घी आदि चढ़ाते हैं. इसके बाद गोपनीय शाबरी मंत्र व पारंपरिक धूप-दीप से पूजा के चलते देवता रात्रि के अंधेरे व कंपकंपाती ठंड के बीच एक विचित्र चमत्कार करते हैं. देवता एक ऐसी शिला पर न केवल छलांग लगाते हैं, बल्कि करवटें भी बदलते हैं, जो पहाड़ में तिरछी लटकी हैं. यही नहीं, दिनभर अर्पित किए गए दूध, घी व मक्खन के चलते शिला फिसलन भरी होती है. यह स्थान इतना खतरनाक व विकट है कि यदि यहां से कोई वस्तु गिर जाती है, तो वह हजारों मीटर नीचे गहरी खाई में पहुंच जाएगी.

यह भी है खास-भूरेश्वर महादेव की यह पर्वत श्रृंखला देवदार, कायल, बान, चीड़, बुरास और काफल के पेड़ों से लबरेज है, जो यहां आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर अनायास ही आकर्षित करती है. इस पर्वत श्रृंखला से चंडीगढ़, पंचकूला, मोहाली, सोलन, कसौली, शिमला, चूड़धार, हरियाणा के मोरनी हिल्स का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. क्वागधार पर्वत श्रृंखला सहित आसपास की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर पर्यटक भी बार-बार यहां स्वयं ही खींचे चले आते हैं. क्वागधार स्टेट भूरेश्वर महादेव मंदिर में पूरे वर्ष श्रद्धालुओं व पर्यटकों का तांता लगा रहता है. मंदिर के प्रति लोगों की भरपूर आस्था है.

कैसे पहुंचें क्वागधार?-देश के विभिन्न हिस्सों से क्वागधार पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए सबसे नजदीक के रेलवे स्टेशन धर्मपुर, सोलन व कालका हैं. चंडीगढ़ से क्वागधार की दूरी 70 किलोमीटर है जबकि जिला मुख्यालय नाहन से यह मंदिर तकरीबन 52 किलोमीटर दूर है. नाहन-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित पानवा से मंदिर की दूरी मात्र 2 किलोमीटर है. पर्यटकों व श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए सराहां व नैनाटिक्कर में धर्मशालाएं, हिमाचल टूरिज्म के होटल, सरांय व अन्य निजी होटल सहित हिमाचल सरकार के विश्रामगृह भी उपलब्ध है.

कुल मिलाकर भोलेनाथ पर भक्तों की अटूट आस्था है. भूरेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती ने महाभारत का युद्ध देखा था या नहीं, यह भक्तों की आस्था का विषय है, क्योंकि आस्था से ही ईश्वर है और भक्तों की डोर आपस में जुड़ी है.

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