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पांवटा साहिब में पर्यावरण मुक्त दिवाली मनाते हैं लोग, पकवान बनाने के लिए 15 दिन पहले से जुट जाती हैं महिलाएं - environment free Diwali

दिवाली से पहले पटाखे, रंग-बिरंगी लाइट, मिठाई और अनेकों साज-सज्जा के सामान से बाजार पट जाते हैं. वहीं, हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के पांवटा साहिब में लोग आज भी पर्यावरण मुक्त दिवाली विशेष अंदाज में मनाते हैं. यहां दिवाली में पकवान बनाने के लिए करीब 15 दिन पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं. इन पकवानों की डिमांड का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पड़ोसी राज्यों से भी लोग दिवाली के अवसर में इन पकवानों का स्वाद चखने हिमाचल आते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि ये पकवान सेहत के लिए भी काफी फायदे मंद माना जाता है.

People celebrate environment free Diwali in Paonta Sahib
पांवटा साहिब में पर्यावरण मुक्त दिवाली.

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Published : Nov 3, 2021, 8:57 PM IST

पांवटा साहिब: रोशनी का पर्व दिवाली देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है. दिवाली में चारों तरफ जहां चमक दमक रहती है, वहीं हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में पर्यावरण मुक्त दिवाली का आयोजन किया जाता है. जिला सिरमौर के गिरीपार में दिवाली पहाड़ी पकवानों के लिए ज्यादा मशहूर है. यहां कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिनके शौकीन पहाड़ी क्षेत्र ही नहीं बल्कि पंजाब हरियाणा और उत्तराखंड के लोग भी हैं. यही वजह है कि इन राज्यों के लोग विशेष रूप से दिवाली में बनने वाले इन पकवानों का स्वाद चखने के लिए पहाड़ी इलाकों में दिवाली के दौरान पहुंचते हैं.

पर्यावरण मुक्त दिवाली बनाने के लिए युवा पटाखों का इस्तेमाल कम करते हैं और पहाड़ी संस्कृति को ताजा करते हैं, जिसमें पहाड़ी गाने रास्ते नाटी और कई रंगारंग प्रोग्राम किए जाते हैं. गिरीपार इलाके में आज भी पुरानी संस्कृति को ताजा करने के लिए युवा लगातार प्रयास कर रहे हैं. पहाड़ी संस्कृति और नाटी का आयोजन किया जाता है, ताकि अपने गांव के साथ-साथ अन्य पंचायतों व दूर-दराज के इलाकों के लोग भी इन आयोजन को देखने के लिए पहुंचे. आइए जानते हैं इन पकवानों के बारे में...

सबसे ज्यादा मशहूर मूडा होता है, जिसे बनाने के लिए एक महीने पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं. इसके साथ ही महिलाएं पटांडे, असकली, मूड़ा, खिलो, कचरी, चिऊलो जैसे स्वादिष्ट पकवान बनाती हैं और घर आए महमानों को परोसती हैं.

बिठौली कैसे बनती है: बिठौली दो प्रकार की होती है. नमकीन और मीठी. नमकीन कई तरह की बनती है, जैसे उड़द की, अरबी की, भांग, भगंजीरा, तिल और आलू की नमकीन बनती है.

मूड़ा कैसे बनाया जाता है: मूड़ा तीन प्रकार का बनाया जाता है. गेहूं, चावल और मक्की का मूड़ा बनाया जाता है. मूड़ा बनाने के लिए पहले गेहूं को उबाला जाता है. इसके बाद 1 हफ्ते तक सुखाया जाता हैं. उसके बाद गेहूं को भून कर बनाया जाता है. महिलाएं गेहूं को उबालकर एवं उसे भून कर मूड़ा, धान की चिवड़ा, मैदे एवं चावलों की शाकुली, भांग, भंगजीरा, अखरोट की गिरी के मिश्रण से मूड़ा तैयार करती हैं.

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पटांडे कैसे बनते हैं: पटांडे बनाने के लिए गेहूं के आटे और नमक को मिक्स कर बिल्कुल गिला किया जाता है, जब आटा जलेबी के आटे की तरह गुंद जाए उसके बाद पटांडे बनाए जाते हैं. इसे बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है.

पूड़े कैसे बनते हैं: आटे और गुड़ को काफी देर तक मिलाकर रखा जाता है और फिर इसे जलेबी की तरह गेहूं के आटे को गूंदा जाता है और उसके बाद करछी से तेल में डाला जाता है.

शाकुली कैसे बनती है: शाकुली को हिंदी में पापड़ भी कहा जाता है. मैदा को खूब पानी के साथ मिक्स किया जाता है और इसके बाद शाकुली बनाई जाती है. फर्क सिर्फ इतना होता है कि इसमें भंगजीरा और भांग इत्यादि के डाले जाते हैं और पापड़ में कोई ऐसी चीजें नहीं डाली जाती.

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वहीं, एक बुजुर्ग ने बताया कि यहां पर मुडा शाकुली, इत्यादि बनाए जाते हैं और मेहमानों को परोसे जाते हैं. ये सभी पकवान पौष्टिक होते हैं और अधिक गर्म भी होते हैं. ये पकवान सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है.

एक महिला ने बताया कि दिवाली के आयोजन को लेकर 1 महीने पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं. महिलाएं अपने अपने घरों में कई तरह के पकवान बनाने के लिए तैयारियां शुरू कर देती हैं. दिवाली से पहले घर को साफ-सुथरा किया जाता है. मक्की को घर में सुखाकर रख दिया जाता है. पकवान बनाने के लिए पहले ही घास काटकर घर में रख दिया जाता है कि दिवाली में पकवान बनाने में कोई परेशानी न हो.

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