पांवटा साहिब: रोशनी का पर्व दिवाली देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है. दिवाली में चारों तरफ जहां चमक दमक रहती है, वहीं हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में पर्यावरण मुक्त दिवाली का आयोजन किया जाता है. जिला सिरमौर के गिरीपार में दिवाली पहाड़ी पकवानों के लिए ज्यादा मशहूर है. यहां कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिनके शौकीन पहाड़ी क्षेत्र ही नहीं बल्कि पंजाब हरियाणा और उत्तराखंड के लोग भी हैं. यही वजह है कि इन राज्यों के लोग विशेष रूप से दिवाली में बनने वाले इन पकवानों का स्वाद चखने के लिए पहाड़ी इलाकों में दिवाली के दौरान पहुंचते हैं.
पर्यावरण मुक्त दिवाली बनाने के लिए युवा पटाखों का इस्तेमाल कम करते हैं और पहाड़ी संस्कृति को ताजा करते हैं, जिसमें पहाड़ी गाने रास्ते नाटी और कई रंगारंग प्रोग्राम किए जाते हैं. गिरीपार इलाके में आज भी पुरानी संस्कृति को ताजा करने के लिए युवा लगातार प्रयास कर रहे हैं. पहाड़ी संस्कृति और नाटी का आयोजन किया जाता है, ताकि अपने गांव के साथ-साथ अन्य पंचायतों व दूर-दराज के इलाकों के लोग भी इन आयोजन को देखने के लिए पहुंचे. आइए जानते हैं इन पकवानों के बारे में...
सबसे ज्यादा मशहूर मूडा होता है, जिसे बनाने के लिए एक महीने पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं. इसके साथ ही महिलाएं पटांडे, असकली, मूड़ा, खिलो, कचरी, चिऊलो जैसे स्वादिष्ट पकवान बनाती हैं और घर आए महमानों को परोसती हैं.
बिठौली कैसे बनती है: बिठौली दो प्रकार की होती है. नमकीन और मीठी. नमकीन कई तरह की बनती है, जैसे उड़द की, अरबी की, भांग, भगंजीरा, तिल और आलू की नमकीन बनती है.
मूड़ा कैसे बनाया जाता है: मूड़ा तीन प्रकार का बनाया जाता है. गेहूं, चावल और मक्की का मूड़ा बनाया जाता है. मूड़ा बनाने के लिए पहले गेहूं को उबाला जाता है. इसके बाद 1 हफ्ते तक सुखाया जाता हैं. उसके बाद गेहूं को भून कर बनाया जाता है. महिलाएं गेहूं को उबालकर एवं उसे भून कर मूड़ा, धान की चिवड़ा, मैदे एवं चावलों की शाकुली, भांग, भंगजीरा, अखरोट की गिरी के मिश्रण से मूड़ा तैयार करती हैं.
ये भी पढ़ें:दिवाली पर महंगाई का असर, हमीरपुर बाजार में भीड़ के बावजूद दुकानदार झेल रहे मंदी