नाहन:मां-पुत्र के पावन मिलन का अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है, जो हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उतरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थल श्री रेणुका में मनाया जाता है. आज दोपहर करीब डेढ़ बजे मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर इस मेले का शुभारंभ करेंगे. इस दिन भगवान परशुराम जामूकोटी से वर्ष में एक बार अपनी मां रेणुका से मिलने आते है.
यह मेला श्री रेणुका मां के वात्सल्य एवं पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा संगम है, जोकि असंख्य लोगों की अटूट श्रद्धा एवं आस्था का प्रतीक है. इस वर्ष यह मेला श्री रेणुका जी तीर्थाटन पर 13 नवंबर से 19 नवंबर तक परम्परागत एवं बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. दरअसल मध्य हिमालय की पहाड़ियों के आंचल में सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र का पहला पड़ाव है श्री रेणुका जी. यह स्थान नाहन से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर भारत का प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है, जहां नारी देह के आकार की प्राकृतिक झील, जिसे मां रेणुका जी की प्रतिछाया भी माना जाता है, स्थित है.
इसी झील के किनारे मां श्री रेणुका जी व भगवान परशुराम जी के भव्य मंदिर स्थित हैं. कथानक अनुसार प्राचीन काल में आर्यवर्त में हैहयवंशी क्षत्रिय राज करते थे. भृगुवंशी ब्राहमण उनके राज पुरोहित थे. इसी भृगुवंश के महर्षि ऋचिक के घर महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ. इनका विवाह इक्ष्वाकु कुल के ऋषि रेणु की कन्या रेणुका से हुआ. महर्षि जमदग्नि सपरिवार इसी क्षेत्र में तपस्या मग्न रहने लगे. जिस स्थान पर उन्होंने तपस्या की वह 'तपे का टीला' कहलाता है. वैशारव शुक्ल पक्ष की तृतीया को मां रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम ने जन्म लिया. इन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है. अश्वत्थामा, ब्यास, बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य व मारकण्डेय के साथ अष्ठ चिरंजीवियों के साथ भगवान परशुराम भी चिरंजीवी हैं.
महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी, जिसे पाने के लिए सभी तत्कालीन राजा ऋषि लालायित थे. राजा अर्जुन ने वरदान में भगवान दतात्रेय से एक हजार भुजाएं पाई थी, जिसके कारण वह सहस्त्रार्जुन कहलाए जाने लगा. एक दिन वह महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु मांगने पहुंच गया. महर्षि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु एवं उसके सैनिकों का खूब सत्कार किया. साथ ही उसे समझाया कि कामधेनु गाय उसके पास कुबेर जी की अमानत थी, जिसे किसी को नहीं दिया जा सकता. यह सुनकर गुस्साए सहस्त्रबाहु ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी. यह सुनकर मां रेणुका शोकवश राम सरोवर मे कूद गई. राम सरोवर ने मां रेणुका की देह को ढ़कने का प्रयास किया, जिससे इसका आकार स्त्री देह समान हो गया.
उधर, भगवान परशुराम महेन्द्र पर्वत पर तपस्या में लीन थे, लेकिन योगशक्ति से उन्हें अपनी जननी एवं जनक के साथ हुए घटनाक्रम का अहसास हुआ और उनकी तपस्या टूट गई. परशुराम अति क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु को ढूंढने निकल पड़े और उसे आमने-सामने के युद्ध के लिए ललकारा. जिसमें भगवान परशुराम ने सेना सहित सहस्त्रबाहु का वध कर दिया. तत्पश्चात भगवान परशुराम ने अपनी योगशक्ति से पिता जमदग्नि व मां रेणुका को जीवित कर दिया. माता रेणुका ने वचन दिया कि वह प्रति वर्ष इस दिन कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी को अपने पुत्र भगवान परशुराम को मिलने आया करेगी.