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देवभूमि की संस्कृति पर भी कोरोना का प्रभाव, ट्रांस गिरी क्षेत्र में बिशु मेले बंद

जिला सिरमौर में मनाए जाने वाले बिशु नाम से प्रसिद्ध मेला कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए टाल दिया गया. इस मेले में हजारों लोग शामिल होते हैं और एक दूसरे से मिलते हैं.

Bishu fair closed in Trans Giri Paonta sahib
ट्रांस गिरी क्षेत्र में बिशु मेले बन्द

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Published : Apr 28, 2020, 11:19 PM IST

Updated : Apr 29, 2020, 1:03 PM IST

पांवटा साहिब : कोरोना वायरस के चलते पूरे देश और प्रदेश में लगातार लॉकडाउन जारी है. कोरोना वायरस ने देव भूमि हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर की प्राचीन संस्कृतियों पर भी ग्रहण लगा दिया है. कोरोना के चलते जिला सिरमौर में मनाए जाने वाले बिशु नाम से प्रसिद्ध मेला आयोजन इसलिए टाल दिया गया. क्योंकि इसमें हजारों लोग शामिल होते हैं और एक दूसरे से मिलते हैं.

इस मेले को इस क्षेत्र का एक बड़ा कुंभ भी कहा जाता हैं, इस मेले में इंसानों का मिलन ही नहीं होता, बल्कि देवताओं का भी होता है. ऐसी मान्यता है कि सभी देवता खुद चलकर मेले में आते हैं.

क्या था पुराना इतिहास

गिरीखंड सहित उत्तराखंड प्रदेश के बाबर जौनसार क्षेत्र के सभी जातियां दो खुंदो (शाठी और पाशी) में विभाजित हैं, इसके विशिष्ट त्यौहार है, जो भारतीय विशिष्ट कैलेंडर के आधार पर आते हैं वैशाख की संस्कृति के पहले दिन स्थानीय देवताओं की अर्चना के साथ बिशु मेले का शुभारंभ होता है. यह मेले आंचलिक रहते हैं और निर्धारित जगह पर मनाए जाते हैं. देशभर में मशहूर नेनीधार, शरली, कफोटा, कांडो, जाखना, तिलोरधार, सतोन, उत्तराखंड के देलुडंड, मोकबाग, चोली, सहित अन्य जगहों पर महावर बिशु मेले का दौर रहा है.

गिरी खंड के चांदपुरधार मेले के साथ बिशु मेले का समापन होता है. बिशु मेले के दौरान स्थानीय लोग गाजे-बाजे के साथ जाकर मेले स्थान पर पहुंचते हैं. दिन भर स्थानीय लोक नाटी, रासा, हारूल नृत्य ,सहित ठोड़ा, प्रतियोगिता का आयोजन रहता है. ऐसा पहली बार हुआ है, जब लोग प्राचीन मेले का आनंद नहीं ले पा रहे हैं.

बता दें कि ट्रांस गिरी क्षेत्र को प्राचीन संस्कृति के लिए जाना जाता हैं. प्राचीन काल से ही जहां विश्व मेले का आयोजन किया जाता हैं वहां पर कोरोना वायरस के चलते विश्व भर में सभी गतिविधियों को रद्द किया गया है. वहीं विश्व मेले भी बन्द हो गये हैं.

क्या कहा ग्रामीणों ने

लोगों का कहना है कि बिशु मेले में देवता की पालकी छड़ी निशान लेकर पहाड़ों में जाते थे और वहां पर देवता का चिन्ह घुमा कर मेले का शुभारंभ किया जाता था. मान्यता यह भी थी कि गांव में जो भी बुरी शक्तियां पनपती है, देवता की छड़ी घुमाने से सारी बुरी शक्तियों का नाश हो जाता था या गायब हो जाती थी. इन्हीं मान्यताओं को दर पीढ़ी दर निभाया जाता है. पर कोरोना वायरस के चलते बिशु मेले रद्द किए गए पुजारी देवता की छड़ी लेकर पहाड़ की चोटी तक गया मंदिर में पूजा की और घर वापस आ गया. कोई भी व्यक्ति बिशु मेले में नहीं गया.

वहीं, क्षेत्रीय विकास समिति के अध्यक्ष कल्याण सिंह ने बताया कि विश्व मेले का आयोजन तो अगले साल भी मनाया जा सकता है. लेकिन पूरे क्षेत्र के लोग बीमारी से दूर रहे तो अगले वर्ष भी धूमधाम से विश्व मेले मनाया जा सकते हैं.

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जिला सिरमौर के ट्रांस गिरी क्षेत्र में एक महीने चलने वाले बिशु मेले का आयोजन अप्रैल महीने से शुरू होता है. गिरी क्षेत्र के कई दर्जनों गांव इस मेले को देखने पहुंचते थे.

बैसाखी आयोजन कहां और कैसे मनाते हैं

गिरीखंड के अतिरिक्त समूचे देश में अलग-अलग नामों से पर्व को मनाया जाता है. सनातन धर्म के अनुसार फसल कटने से पहले जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है. तो अन्नदेव पूजन करके प्राण प्रतिष्ठा डालने के बाद फसल कटाई की जाती है, वहीं, दक्षिण भारत के असम में भियु, बंगाल में नवा वर्षा, केरल में पुरम बिशु सहित पोगल पर्व नाम से मेले मनाए जाते हैं. इसी दिन सिख पंथ के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. इसीलिए पंजाब के लोग इन दिन को नववर्ष का शुभारंभ मानते हैं समूचे पंजाब में बैसाखी पर्व की धूम रहती है.

Last Updated : Apr 29, 2020, 1:03 PM IST

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