नाहन: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की नारी शक्ति को दिशा मिली, तो वह अब अपनी आर्थिक दशा को बदल रही है. स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) से जुड़कर महिलाएं खुद के कमाए पैसे का सुख मान रही हैं. सरकार की सहायता से महिला शक्ति (Women Self Help Groups in Himachal) खुद अपने पैरों पर खड़ी ओकर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर हो रही हैं.
दरअसल स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत प्रशिक्षण देकर सरकार की तरफ से आर्थिक मदद दी जा रही है. इससे जिला सिरमौर में भी स्वयं सहायता समूहों को आमदनी बढ़ोतरी हो रही है और इससे महिलाओं की आर्थिकी स्थिति भी सुदृढ़ हो रही है. आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत हिमाचल प्रदेश में महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए करीब 30 हजार समूह बनाए गए हैं, जिनसे करीब 3 लाख महिलाएं जुड़ी हैं. बात अगर सिरमौर जिले की करें तो यहां 3 हजार के करीब स्वयं सहायता समूहों से लगभग 26 हजार महिलाएं जुड़कर स्वावलंबी बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर हैं.
महिलाएं विभिन्न उत्पादों से मजबूत कर रहीं आर्थिकी: सिरमौर में महिला स्वयं सहायता समूह (Women Self Help Groups in Sirmaur) की महिलाएं विभिन्न तरह के उत्पाद तैयार कर रही हैं. खासकर चीड़ के पत्तों से बने उत्पादों से भी अब महिलाएं अच्छी आमदनी कमा रही हैं. खास बात यह है कि सरकार और जिला प्रशासन भी महिलाओं को अपने उत्पाद बेचने के लिए उचित मंच प्रदान कर रहे हैं. फिर चाहे वह जनमंच कार्यक्रम हो या फिर अन्य कोई सरकारी कार्यक्रम. महिलाओं द्वारा जगह-जगह स्टॉल लगाकर उत्पादकों की बिक्री भी की जा रही है. जिले के बागपशोग में तैयार शी हाट महिला सशक्तिकरण का बड़ा उदाहरण बनकर उभरा है. अकेले यही पर 25 लाख रुपये का कारोबार (Himachal first She Haat turnover) 24 महिलाएं पिछले एक साल में कर चुकी हैं. चीड़ के उत्पादों से ही यहां एक साल में 3 लाख की आदमनी महिलाओं ने की है. वहीं, अन्य स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं भी सराहनीय कार्य कर रही हैं.
क्या कहती हैं स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं: महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी थाना कसोगा गांव की रंजीता शर्मा कहती हैं कि, सरकार की राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन इसलिए एक बेहतर योजना है, क्योंकि मिशन के तहत स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं. सरकार इसके लिए आर्थिक मदद भी कर रही है. लिहाजा महिलाओं की आर्थिक स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार आ रहा है. गांव में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं घरेलू उत्पाद जैसे आचार, चटनी, जैम, जुट बैग इत्यादि तैयार करती हैं.
रंजीता शर्मा का कहना है कि पत्तल बनाने के लिए भी जिला प्रशासन ने मशीन उपलब्ध करवाई है. इससे महिलाएं लाख-लाख रुपये की भी आमदनी कर रही हैं. यह मशीन भी यहां लॉ शक्ति के नाम से चलाई गई है. इससे 10 समूह जुड़े हुए हैं. पंचायत स्तर पर महिलाओं का वंदना नाम से एक ग्राम संगठन भी बना है. इस ग्राम संगठन में पंचायत के 18 समूह जुड़े हैं, जिसमें एक समूह में करीब 10 महिलाएं जुड़ी हैं. लिहाजा सरकार के प्रयासों से यहां महिलाओं का आर्थिक सुधार हो रहा है.
वहीं, स्वयं सहायता समूह से जुड़ी एक अन्य महिला लक्ष्मी देवी ने बताया कि वह लोग पत्तल बनाने का कार्य (Products made by women of Women Self Help Groups) करते हैं. इससे महिलाओं की करीब 3 से 4 लाख रुपये की आमदनी हुई है. समूह द्वारा तैयार की गई पत्तलें जनमंच कार्यक्रमों में भी भेजी जाती है. जूट बैग बनाने का प्रशिक्षण हासिल कर इसका कार्य भी शुरू किया गया है.
उधर रोशनी ग्राम संगठन की अध्यक्ष संगीता ने बताया कि उनके महिला समूह द्वारा तैयार किए जा रहे घरेलू उत्पादों से काफी लाभ महिलाओं को मिल रहा है. हालांकि इस साल मार्च माह में ही उनका संगठन बना है. सरकार की मदद से जिला प्रशासन के सहयोग से काफी सहायता आगे बढ़ने के लिए मिली है.