करसोग/मंडीःकिसानों को प्राकृतिक खेती की तकनीक से जोड़ने के लिए उपमंडल की मैहरन पंचायत में एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया. सामानता सशक्तिकरण और विकास के लिए विज्ञान संभाग, विज्ञान प्रौधौगिकी भारत सरकार के सौजन्य से आयोजित इस शिविर में किसानों को स्थानीय पौधों से निर्मित घोल की विधि से फसलों के रोग प्रबन्धन के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई.
किसानों को बताया गया कि कैसे स्थानीय स्तर पर उगने वाले औषधीय पौधों के उपयोग व गौ मूत्र से फसलों में लगने वाले रोग को खत्म किया जा सकता है. ये विधि रासायनिक छिड़काव की तुलना में सस्ती होने के साथ स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदेह नहीं है.
किसान घर पर ही आसानी से उपलब्ध होने वाले औषधीय पौधों जैसे तुलसी, दरेक, घृतकुमारी, लैमन घास, नीम, धतूरा, नागफनी, सफेदा व कड़ी पत्ता को गौ मूत्र मिलाकर घोल तैयार कर सकते हैं. जिसका फसलों में छिड़काव करने से रोगों को खत्म किया जा सकता है.
स्थानीय जैविक संसाधनों से तैयार इस घोल से टमाटर, शिमला मिर्च, फूल गोभी सहित अन्य सब्जियों की फसलों में लगने वाले रोगों पर काबू पाया जा सकता हैं. इसके लिए किसानों को पैसे देकर बाजार से भी कोई सामान खरीदने की भी जरूरत नहीं होगी.
किसानों को बताए मिश्रित खेती के लाभ-
शिविर के दौरान किसानों को मिश्रित खेती से होने वाले लाभों के बारे में जानकारी दी गई. डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय के बीज विज्ञान विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र कुमार भरत ने बताया कि मिश्रित खेती से रिस्क कम होने के साथ ये खेती फसलों में लगने पर रोगों पर काबू पाने के लिए भी फायदेमंद है.
उन्होंने किसानों को अच्छी उपज लेने के लिए बीजों को उपचारित करने की भी विधि बताई. इस विधि से बिजाई करने से फसलों में लगने वाले रोगों को भी कम किया जा सकता है. उन्होंने किसानों को खेत में बार-बार एक ही फसल न बीजने की भी सलाह दी.
डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय के पादप रोग विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. हरेंद्र राज गौतम ने बताया इस विधि को अपनाकर किसान अपनी आय को दुगनी कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है. इसके लिए प्रदेश भर में किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है. प्रचार के माध्यम से भी किसानों को जागरूक किया जा रहा है.
वहीं, प्रशिक्षण शिविर के दौरान किसानों को किताबें भी बांटी गई. उन्होंने कहा कि किसी भी तकनीक को अपनाने के लिए जागरूकता की जरूरत है. इसके लिए कृषि और उद्यान विभाग के फील्ड अधिकारियों को भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के जन आंदोलन के रुप में काम करने की जरूरत है.
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