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Apple in Karsog: मौसम और विदेशी किस्म ने बदला कृषि का तरीका, पारंपरिक धान की जगह सेब बना 'प्रधान' - Farmers turned to apple cultivation in karsog

हिमाचल प्रदेश में बदलते मौसम और विदेशी किस्म के कारण कृषि का तरीका बदल गया है. मंडी जिले के कसरोग में अधिकांश किसानों ने परित्यक्त पारंपरिक फसलों की सिंचाई करना बंद कर दिया और सेब लगाना शुरू (Farmers turned to apple cultivation in karsog) कर दिया. 85 फीसदी से अधिक क्षेत्र में अकेला सेब उगाया जा रहा है. विदेशी किस्म के सेब की अच्छी मांग (Foreign varieties apples) और ऊंची कीमत पर बिक रहा है.

Apple farming.
सेब कि खेती.

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Published : Jul 13, 2022, 4:49 PM IST

करसोग:हिमाचल प्रदेश में मौसम के विदेशी किस्म के सेब ने कृषि करने का तरीका बदल दिया है. सिंचाई की सुविधा वाली जिस भूमि पर धान की फसल लहलहाती थी, वहां अब सेब प्रधान हो रहा है. बारिश के मौसम में धान की रोपाई का कार्य चल रहा है. हालांकि लंबे सूखे की वजह से इस बार रोपाई का कार्य देरी से शुरू हुआ है, लेकिन कुछ सालों से खड्डों में कम हो रहे जल स्तर और विदेशी किस्म के सेब की अच्छी मांग (Farmers turned to apple cultivation in karsog) से किसान अब धान की पारंपरिक फसल से मुंह फेरने लगे हैं.

सघन खेती की नई तकनीक (New technology of Intensive farming) आने से कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी किसानों का रुझान सेब की तरफ बढ़ रहा है. हॉर्टिकल्चर डेवलपमेंट ऑफिसर चमेली नेगी (Horticulture Development Officer in Karsog) का कहना है कि करसोग के कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सिंचाई की अच्छी सुविधा उपलब्ध है. यहां अब किसान सेब के पौधे लगा रहे हैं.कुछ ही सालों में 10 हेक्टेयर से अधिक सिंचाई वाले क्षेत्रों में किसानों ने पारंपरिक फसलों को छोड़कर सेब लगाए हैं.

बता दें कि करसोग में करीब 6500 हेक्टेयर भूमि बागवानी क्षेत्र (Horticulture area) के अंतर्गत है. इसमें सेब सहित प्लम, नाशपाती और अनार शामिल हैं. 85 फीसदी से अधिक क्षेत्र में अकेला सेब उगाया जा रहा है. बाजार में विदेशी किस्म के सेब की अच्छी मांग और ऊंची कीमत पर बिक रहा है.

ग्राम पंचायत भंडारणु के प्रधान एवम प्रगतिशील किसान दिलीप कुमार का कहना है कि, इन दिनों धान की रोपाई का कार्य चल रहा है. बहुत से किसान अब धान की खेती छोड़कर सेब को उगाने लगे हैं. उनका कहना है कि सेब लगाना बुरा नहीं है, लेकिन हमें पारंपरिक धान की खेती को भी नहीं छोड़ना चाहिए. ताकि बाजार में अनाज का संकट पैदा न हो.

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