करसोग: जैव विविधता पर बुधवार को करसोग उपमंडल में राम मंदिर में उत्सव (Biodiversity festival organized in Karsog) आयोजित किया गया. जिसमें लोगों को विलुप्त होते पारंपरिक अनाजों से तैयार हलवा, खीर, चाय व रोटी आदि व्यंजन परोसे गए. इसके साथ ही विलुप्त होते अनाजों जैसे कोदा कौणी, बाथू, नगा जौ, लाल मक्की, ज्वार व काली गेहूं आदि के स्वास्थ्य पर होने वाले फायदों के बारे में भी जानकारी दी गई.
इस अवसर पर एसडीएम करसोग सन्नी शर्मा बतौर मुख्यातिथि शिरकत की. लोगों को बताया गया कि एक समय जब देश में अनाज की कमी हो गई थी तो उस वक्त सरकारों ने देशी बीजों को विकसित करने की बजाए विदेशी किस्म के हाइब्रिड बीजों को तवज्जो दी. जिससे देशभर में अन्न की की कमी तो दूर हो गई, लेकिन इन बीजों की वजह से खेती विदेशी कंपनियों के हाथों का खिलौना बन गई.
विदेशों से आयात किए गए बीजों से अच्छी पैदावार (Traditional cereal dishes of Himachal) लेने के लिए अत्यधिक रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल किया गया. जिसका दुष्प्रभाव ये हुआ कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो गई. यही नहीं रासायनिक खेती से लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा. इसलिए अब पारंपरिक फसलों की पैदावार लेने का समय आ गया है. जिसके लिए विलुप्त हो रहे बीजों को बचाया जाना जरुरी हो गया है. इसी कड़ी में प्रदेश भर में पर्वतीय टिकाऊ खेती अभियान चलाया जा रहा है.