कुल्लू/लाहौल स्पीति: हिमाचल प्रदेश के जिला लाहौल-स्पीति जिसमें एक छोटा सा गांव है ठोलंग. ये गांव न सिर्फ हिमाचल प्रदेश को बल्कि पूरे देश को हैरान किए हुए है. देश के किसी गांव में अगर एक भी युवक आईएएस ऑफिसर बनता है तो पूरे गांव के लिए कितनी फक्र की बात होती है. इस गांव ने देश और प्रदेश को कई अधिकारी दिए हैं जिसके कारण इसे 'ऑफिसर्स विलेज' भी कहते हैं.
क्यों कहते हैं ऑफिसर्स विलेज: हिमाचल का ठोलंग गांव (Tholang village of Himachal) एक ऐसा गांव है जिसके हर घर में एक आईएएस या बड़ा अधिकारी पैदा होता है तो आप क्या कहेंगे. 415 की जनसंख्या वाले इस छोटे से गांव ने अब तक 100 से ज्यादा अधिकारी देश को दिए हैं. जिनमें आईएएस, आईपीएस से लेकर आईआरएस, डॉक्टर और इंजीनियर तक शामिल हैं.
हिमाचल सर्विसेज में भी कई अधिकारी इसी गांव से हैं. ठोलंग गांव ने देश को 3 आईएएस अधिकारी एएन विद्यार्थी, एसएस कपूर और शेखर विद्यार्थी दिए, इनमें से अमरनाथ विद्यार्थी हिमाचल सरकार में चीफ सेक्रेटरी के पद पर तो एसएस कपूर जम्मू-कश्मीर के चीफ सेक्रेटरी रहे. इसके अलावा राम सिंह तकी और नाजिन विद्यार्थी के रूप में दो आईपीएस अधिकारी भी इस गांव ने दिए. लाहौल स्पीति जिले का पहला आईएएस, पहला डॉक्टर, पहली महिला डॉक्टर, पहला इंजीनियर, पहला एयर फोर्स अधिकारी भी इसी गांव ने दिए हैं.
हर फील्ड में ठोलंग का सिक्का: ठोलग गांव से तीन आईएएस, दो आईपीएस के अलावा 7 आईआरएस, 14 एमबीबीएस, 16 इंजीनियर्स, 5 पीएचडी, 6 आर्मी ऑफिसर हैं. 37 शिक्षा विभाग में, एक फिल्म उद्योग में, 3 फैशन डिजाइनिंग (Government officers from Tholang village) के क्षेत्र में हैं. वहीं, 2 पायलट, 2 वेटरनरी डॉक्टर , 3 आयुर्वेदिक डॉक्टर, दो हिमाचल सिविल सर्विसेज के अधिकारी, एक उद्यान विभाग के डिप्टी डारेक्टर के पद पर तैनात हैं. लाहौल-स्पीति जिले के पहले एमबीबीएस डॉक्टर प्रेम चन्द भी ठोलंग गांव से सम्बन्ध रखते थे. जो बाद में कुल्लू के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पद से रिटायर हुए.
6 महीने दुनिया से कट जाता है ये गांव:ठोलंग गांव हिमाचल के लाहौल स्पीति जिले में आता है जिसे शीत मरुस्थल के नाम से भी जाना जाता है. बर्फबारी के बाद हर साल ये गांव लगभग 6 महीने के लिए देश और दुनिया से कट जाता है. इस दौरान लोगों का जीना दुश्वार हो जाता है. जिला लाहौल स्पीति के गांव आज भी दुर्गम इलाकों में स्थित हैं और यहां पर उच्च शिक्षा की भी कोई व्यवस्था नहीं है. आज भी युवाओं को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए बाहरी राज्यों का रुख करना पड़ता है.