हिमाचल प्रदेश

himachal pradesh

ETV Bharat / city

Sawan Month 2022: सावन का पहला सोमवार आज, जानें भोलेनाथ ने यहां क्यों खोला था त्रिनेत्र

सावन का महीना (Sawan Month 2022) गुरुवार, 14 जुलाई से शुरू हो चुका है. आज सावन माह का पहला सोमवार है. कहते हैं इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा और अराधना करने से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है. देवभूमि हिमाचल के शिवालयों में भी पहले सोमवार पर भोलेनाथ की पूजा करने के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है. वहीं, कुल्लू के मणिकर्ण घाटी में पार्वती नदी के एक ओर शिव मंदिर है, तो दूसरी ओर गुरु नानक देव का ऐतिहासिक गुरुद्वारा है. मान्यता है कि पर भगवान शिव क्रोधित हुए थे और क्रोधित होने पर उन्होंने अपना त्रिनेत्र भी खोल दिया था.

सावन में मणिकर्ण में भोलेनाथ की पूजा.
सावन में मणिकर्ण में भोलेनाथ की पूजा.

By

Published : Jul 18, 2022, 5:01 AM IST

Updated : Jul 18, 2022, 1:03 PM IST

कुल्लू: देश भर में भगवान भोलेनाथ का पावन मास श्रावण मास (Sawan Month 2022) धूमधाम से मनाया जा रहा है. भगवान शिव को सावन माह अत्यधिक प्रिय है. कहते हैं सावन में सोमवार के दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से वे अपने भक्तों पर बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं. ऐसे में जहां शिवालयों में रौनक है तो वहीं प्राचीन शिव मंदिरों में भी पूजा आराधना को श्रद्धालु जुटे हुए हैं.

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव को भोलेनाथ कहा गया है, क्योंकि वह काफी शांत स्वभाव के हैं और उन्हें हर किसी की भक्ति जल्द रास आ जाती है. लेकिन हिमाचल प्रदेश में एक ऐसी भी जगह है जहां पर भगवान शिव क्रोधित हुए थे और क्रोधित होने पर उन्होंने अपना त्रिनेत्र भी खोल दिया था. ऐसे में आज भी भगवान शिव के क्रोध से बचने के लिए पानी उबल रहा है और नदी में भी कई बेशकीमती मणि आज भी मिलती है. यह जगह है जिला कुल्लू के धार्मिक नगरी मणिकर्ण.

मणिकर्ण में शिव मंदिर.

मणिकर्ण की विशेषता यह भी है कि हिंदू और सिख धर्म के श्रद्धालु हर साल अपनी यात्रा करने के लिए पार्वती घाटी पहुंचते हैं. मणिकर्ण घाटी में पार्वती नाम की एक नदी बहती है, जिसके एक ओर शिव मंदिर है, तो दूसरी ओर गुरु नानक देव का ऐतिहासिक गुरुद्वारा है. नदी से जुड़े होने के कारण दोनों ही धार्मिक स्थलों का वातावरण बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ता है. कहा जाता है इस स्थान पर क्रोधित हुए भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला था.

मान्यता है कि माता पार्वती यहां नदी में स्नान कर रही थीं. नदी में क्रीड़ा करते हुए एक बार माता पार्वती के कान के आभूषण की मणि पानी में गिर गई और पाताल लोक में चली गई. ऐसा होने पर भगवान शिव ने अपने गणों को मणि ढूंढने को कहा. बहुत ढूंढने पर भी शिवगणों को मणि नहीं मिली. इस बात से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया. तीसरा नेत्र खुलते ही उनके नेत्रों से नैना देवी प्रकट हुईं. इसलिए यह जगह नैना देवी की जन्म भूमि मानी जाती है. नैना देवी ने पाताल में जाकर शेषनाग से मणि लौटाने को कहा, तो शेषनाग ने भगवान शिव को वह मणि भेंट कर दी. शेषनाग ने पाताल लोक से जोर की फुंकार भरी और जगह-जगह गर्म पानी के स्रोत के साथ ढेर सारी मणियां भी धरतीलोक पर आ गईं.

शिव मंदिर के पास गर्म पानी का स्रोत.

नदी में आज भी मौजूद हैं कई मणियां: मान्यताओं के अनुसार, शेषनाग ने देवी पार्वती की मणि के अलावा भी कई मणियां भगवान शिव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से उन्हें भेंट की थीं. तब भगवान शिव ने देवी पार्वती को अपनी मणि पहचान कर उसे धारण करने को कहा था. बाकी सभी मणियों को पत्थर के रूप में बना कर यहां की नदी में डाल दिया था. कहा जाता है शेषनाग की भेजी गई मणियां आज भी पत्थर के रूप में यहां पार्वती नदी में मौजूद हैं.

गर्म पानी का स्रोत: यहां पर शिव मंदिर के पास ही एक गर्म पानी का स्रोत भी है. यह गर्म पानी शीतल जल वाली पार्वती नदी से कुछ दूरी पर ही है. इसमें गर्म जल कहां से आता है, यह बात आज तक रहस्य बनी हुई है. इस गर्म पानी के स्रोत में गुरुद्वारे का प्रसाद बनाने के लिए चावल पकाए जाते हैं. चावल को बर्तन में रख कर यहां पर रख दिया जाता है, तो कुछ ही मिनट में चावल पक जाते हैं. यहां का पानी इतना गर्म होता है कि कोई भी इसमें हाथ तक नहीं डाल सकता. इस स्रोत के जल को पार्वती नदी के पानी में मिला कर नहाने के लायक बनाया जाता है.

मणिकर्ण में मंदिर और गुरुद्वारा.

नदी के उस पार है गुरुद्वारा: पार्वती नदी के एक ओर शिव मंदिर (lord shiva temple in manikaran) है और दूसरी ओर गुरुद्वारा है. यहां का सुंदर दृश्य देखने लायक है. यहां पर आने वाले सभी भक्त चाहे वह हिंदू हों या सिख दोनों ही इस जगह से दर्शनों का लाभ लेते हैं.

यहां है श्रीराम का आराधना स्थल: मणिकर्ण भगवान राम की भी प्रिय जगहों में से एक थी. मान्यता है कि श्रीराम ने कई बार इस जगह पर भगवान शिव की आराधना और तपस्या की थी. आज भी भगवान श्रीराम की तपस्या स्थली मणिकर्ण में श्रीरघुनाथ का पुराना और भव्य मंदिर है.

शिव मंदिर के पास गर्म पानी का स्रोत.

ब्रह्म गंगा और पार्वती गंगा का संगम: गुरुद्वारे से सामने ऊंची पर्वत चोटियां हैं, जिसे हरेंद्र पर्वत कहते हैं. कहा जाता है इस जगह पर भगवान ब्रह्मा ने तप किया था. यहां से कुछ दूरी पर ब्रह्म गंगा और पार्वती गंगा का संगम होता है. मणिकर्ण एक धार्मिक स्थल (Manikarn Religious Place) होने के साथ-साथ प्राकृतिक सुदंरता से भरा हुआ है.

ऐसे करें सोमवार पर भगवान शिव की पूजा:सावन के पहले सोमवार में फूल, फल, मेवा, दक्षिणा, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईंख/गन्ना का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, शिव एवं मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि से भगवान शिव की पूजा की जाती है. शिव भक्त इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव की उपासना करते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाना चाहिए और अभिषेक करना चाहिए. ऐसा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

शिव मंदिर के पास गर्म पानी का स्रोत.

ये भी पढ़ें:जानिए कितने प्रकार की होती है कांवड़ और क्‍या हैं नियम, कैसे करते हैं यात्रा

Last Updated : Jul 18, 2022, 1:03 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details