कुल्लू: देश भर में भगवान भोलेनाथ का पावन मास श्रावण मास (Sawan Month 2022) धूमधाम से मनाया जा रहा है. भगवान शिव को सावन माह अत्यधिक प्रिय है. कहते हैं सावन में सोमवार के दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से वे अपने भक्तों पर बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं. ऐसे में जहां शिवालयों में रौनक है तो वहीं प्राचीन शिव मंदिरों में भी पूजा आराधना को श्रद्धालु जुटे हुए हैं.
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव को भोलेनाथ कहा गया है, क्योंकि वह काफी शांत स्वभाव के हैं और उन्हें हर किसी की भक्ति जल्द रास आ जाती है. लेकिन हिमाचल प्रदेश में एक ऐसी भी जगह है जहां पर भगवान शिव क्रोधित हुए थे और क्रोधित होने पर उन्होंने अपना त्रिनेत्र भी खोल दिया था. ऐसे में आज भी भगवान शिव के क्रोध से बचने के लिए पानी उबल रहा है और नदी में भी कई बेशकीमती मणि आज भी मिलती है. यह जगह है जिला कुल्लू के धार्मिक नगरी मणिकर्ण.
मणिकर्ण की विशेषता यह भी है कि हिंदू और सिख धर्म के श्रद्धालु हर साल अपनी यात्रा करने के लिए पार्वती घाटी पहुंचते हैं. मणिकर्ण घाटी में पार्वती नाम की एक नदी बहती है, जिसके एक ओर शिव मंदिर है, तो दूसरी ओर गुरु नानक देव का ऐतिहासिक गुरुद्वारा है. नदी से जुड़े होने के कारण दोनों ही धार्मिक स्थलों का वातावरण बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ता है. कहा जाता है इस स्थान पर क्रोधित हुए भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला था.
मान्यता है कि माता पार्वती यहां नदी में स्नान कर रही थीं. नदी में क्रीड़ा करते हुए एक बार माता पार्वती के कान के आभूषण की मणि पानी में गिर गई और पाताल लोक में चली गई. ऐसा होने पर भगवान शिव ने अपने गणों को मणि ढूंढने को कहा. बहुत ढूंढने पर भी शिवगणों को मणि नहीं मिली. इस बात से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया. तीसरा नेत्र खुलते ही उनके नेत्रों से नैना देवी प्रकट हुईं. इसलिए यह जगह नैना देवी की जन्म भूमि मानी जाती है. नैना देवी ने पाताल में जाकर शेषनाग से मणि लौटाने को कहा, तो शेषनाग ने भगवान शिव को वह मणि भेंट कर दी. शेषनाग ने पाताल लोक से जोर की फुंकार भरी और जगह-जगह गर्म पानी के स्रोत के साथ ढेर सारी मणियां भी धरतीलोक पर आ गईं.
नदी में आज भी मौजूद हैं कई मणियां: मान्यताओं के अनुसार, शेषनाग ने देवी पार्वती की मणि के अलावा भी कई मणियां भगवान शिव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से उन्हें भेंट की थीं. तब भगवान शिव ने देवी पार्वती को अपनी मणि पहचान कर उसे धारण करने को कहा था. बाकी सभी मणियों को पत्थर के रूप में बना कर यहां की नदी में डाल दिया था. कहा जाता है शेषनाग की भेजी गई मणियां आज भी पत्थर के रूप में यहां पार्वती नदी में मौजूद हैं.