कुल्लूः प्रदेश मे लॉकडाउन के दौरान जहां लोगो का कारोबार पर प्रभावित हुआ है. वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में जंगली सब्जियों को बाजारों में बेच कर महिलाएं अपनी आर्थिकी को मजबूत कर रही हैं. जिला कुल्लू में भी इन दिनों जंगलों में महिलाएं लिंगड़ी की सब्जी को ढूंढ कर बाजारों में बेच रहीं हैं.
गर्मियों में हिमाचली रसोई की शान लिंगड़ी ने बाजार में दस्तक दे दी है. सब्जी, अचार और अन्य पकवानों में प्रयोग होने वाले इस सब्जी को ग्रामीण महिलाओं द्वारा बाजार में पहुंचाया जा रहा है.
लिंगड़ी का स्वाद गर्मियों में लोग सब्जी और सर्दियों में अचार के रूप में चखेंगे. कुल्लू सहित राज्य भर में लिंगड़ी कई ग्रामीणों के लिए आजीविका का भी साधन है और बाजार में इसे 50 से 80 रुपये प्रति किलो तक की दर से बेचा जाता है.
जिला कुल्लू के प्रवेशद्वार भुंतर, मणिकर्ण, बजौरा, सैंज, बंजार, मनाली सहित अन्य सभी बाजारों में इसकी बिक्री करते लोग नजर आते हैं. इस जंगली सब्जी में अनेक प्रकार के पोषक तत्त्वों की भी भरपूर मात्रा होती है. विशेषज्ञों की मानें तो इसमें 17 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं. अप्रैल और मई महीने में होने वाली इस सब्जी की शुतुरमुर्ग किस्म को खाने के लिए उपयोगी माना जाता रहा है, जबकि अन्य किस्में कुछ जहरीली पाई गई हैं.
जानकारों के मुताबिक इसमें विटामिन ए और सी भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. हालांकि इसमें एंजाइम की उपस्थिति के कारण बेरी-बेरी या विटामिन-बी की कमी भी इसका अधिक सेवन कई बार पैदा कर सकता है.
राज्य के ऊंचे और नदी-नालों के साथ लगते इलाकों में इन दिनों लिंगड़ी की भरमार दिख रही है. लिंगड़ी को पूर्वी भारत में निंग्रो के रूप में तो पूर्वी एशिया, जापान में इसे ‘वाराबी’ इंडोनेशिया में ‘गुलाई पाकू’, चीन, कोरिया, ताईवान में ‘ज्यूसाई’ और ऑट्रेलिया, अमेरिका, फ्रांस आदि अन्य देशों में ‘फीडलहैड’ के नाम से जाना जाता है.
लिंगड़ी में 87 फीसदी पानी के साथ, चार फीसदी प्रोटीन, और तीन फीसदी कार्बोहाईड्रट सहित वसा, फाईबर और ऐश पाया जाता है तो मैग्नीशियम, लोहा, पोटेशियम, फास्फोरस, नियासिन और जिंक, फाइबर, कैल्शियम जैसे खनिज होते हैं.
ग्रामीण महिला साजि देवी का कहना है कि हर साल वह जंगलों से इसे ढूंढ कर लाते हैं और बाजारों में और बाजारों में बेचते हैं. जिसके चलते उन्हें अपने परिवार की आय को बढ़ाने में भी मदद मिलती है. वहीं, मौहल में स्थित जीबी पंत संस्थान के प्रभारी डॉ. शेर सिंह सामंत के अनुसार अप्रैल महीने के बाद लिंगड़ी पनपनी आरंभ हो जाती है और यह गर्मियों में कुल्लू के ग्रामीण ईलाकों के लोग इसे बड़ी मात्रा में सब्जी और अचार के लिए इस्तेमाल करते हैं.