कुल्लू: दुनिया में अपनी अनूठी संस्कृति और बोली के लिए प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले का मलाणा गांव भी अब आधुनिकता (History of malana village ) की राह पर चल रहा है. जहां ये गांव अपनी काष्ठकुणी शैली (लकड़ी से बने) के मकानों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है, वहीं अब गांव में कंक्रीट के घर भी बनने लगे हैं. दो दशक पहले एक अग्निकांड में पूरा गांव जलकर खाक हो गया था, वहीं बीते साल आग लगने से 18 घर जलकर खाक हो गए. जिसके बाद लकड़ी के घरों में रहने वाले मलाणा के ग्रामीणों ने कंक्रीट के घरों का रुख किया. वक्त के साथ-साथ लकड़ी की उपलब्धता का कम होना भी इसकी एक वजह है.
चरस के लिए मलाणा बदनाम:मलाणा दुनियाभर में चरस उत्पादन के लिए बदनाम (Charas production in Malana) रहा है, मलाणा क्रीम के नाम से यहां की चरस को बड़े-बड़े शहरों में ऊंचे दामों पर बेचा जाता है. विशेषज्ञों ने भी मलाणा का दौरा कर वहां की मिट्टी का परीक्षण कर पाया कि लगातार चरस उत्पादन की वजह से यहां की मिट्टी की हालत ऐसी हो गई है, जिसमें अनाज या दालों का उत्पादन हो सके. ऐसे में विशेषज्ञों ने लंबे शोध के बाद तैयार किए अनाज व दालों सहित अन्य खाद्यान्नों के बीज उपलब्ध कराए, लेकिन उस तर्ज पर मलाणा में दालों व अनाज का उत्पादन नहीं हो पाया जिसकी विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई थी.
मलाणा में देश-विदेश से कई पर्यटक चरस की चाह लेकर ही पहुंचते हैं. यहां पर चरस का कारोबार (Charas business in Malana) काफी फला फूला, जिसके बाद हर साल मलाणा के साथ लगते पहाड़ी इलाकों में कुल्लू पुलिस की टीम भांग कटाई का अभियान भी चलाती है. माना जाता है कि मलाणा में पैदा होने वाली चरस हाई क्वालिटी की होती है. जिसकी देश विदेश में खासतौर पर डिमांड रहती है, यही वजह है कि कई बार कहीं और पैदा हुई चरस को अधिक कीमत पर मलाणा के नाम से बेचा जाता है.
मलाणा के देवता जमदग्नि ऋषि:मलाणा में देवता जमदग्नि ऋषि का मंदिर है, जिसे यहां देवता जमलू के नाम से भी जाना जाता है. जमदग्नि विष्णु के छठे अवतार परशुराम के पिता थे. मान्यता है कि ऋषि जमलू ध्यानमग्न होने के लिये किसी एकांत स्थान की खोज कर रहे थे. इसी कड़ी में वो मलाणा पहुंचे, जहां आज उन्हें जमलू ऋषि के नाम से पूजा जाता है. दिलचस्प बात ये है कि पूरे गांव में जमलू देवता का एक भी चित्र नहीं है, पत्थर और लकड़ी से बने मंदिर में ऋषि जमलू की छोटी सी स्वर्ण जड़ित प्रतिमा है. इस मंदिर में किसी भी चीज को छूने की मनाही है.
गांव में रुकने की मनाही-मलाणा गांव में पर्यटक भी आते रहे हैं, लेकिन कोई भी बाहरी गांव में रात को नहीं रुक सकता है. गांव के गेट पर बाहरियों से ग्रामीणों द्वारा पूछताछ होती है. गांव के प्रवेश गेट पर लगे कुछ नियम कायदे हिंदी और अंग्रेजी में लिखे हैं. ये दिशा निर्देश गांव में प्रवेश करने वाले बाहरी या पर्यटकों के लिए है. ये नियम कायदे खुद ग्रामीणों ने बनाए हैं, जिनमें साफ लिखा हुआ है कि गांव के देव स्थानों में किसी भी चीज को छूना मना है. ऐसा करने पर जुर्माने का प्रावधान है.
मलाणा में सबसे पुराना लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था: मलाणा की अपनी अलग लोकतांत्रिक व्यवस्था है, जिसमें संसद की तरह दो सदन होते हैं. पहली ज्येष्ठांग (ऊपरी सदन) और दूसरा कनिष्ठांग (निचला सदन). ज्येष्ठांग में कुल 11 सदस्य हैं, जिनमें तीन सदस्य कारदार, गुर व पुजारी स्थायी सदस्य (oldest democracy in the world in malana village) होते हैं. बाकी आठ सदस्यों को गांववासी मतदान द्वारा चुनते हैं. इसी तरह कनिष्ठांग सदन में गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य को प्रतिनिधित्व दिया जाता है. यह सदस्य घर के बड़े-बुजुर्ग होते हैं. इस संसद में फौजदारी से लेकर दीवानी जैसे मसलों का हल निकाला जाता है और दोषियों को सजा भी सुनाई जाती है. कुल मिलाकर गांव वाले अपने मसलों का हल खुद ही निकाल लेते हैं वो न तो पुलिस के पास जाते हैं और न ही स्थानीय प्रशासन के पास.
अगर किसी विवाद का हल ना निकले तो:अगर मलाणा की स्थानीय संसद किसी विवाद का हल खोजने में विफल होती है तो मामला स्थानीय देवता जमदग्नि के सुपुर्द कर दिया जाता है. जब कोई मामला जमलू देवता के पास आता है तो यहां अजीब तरीके से फैसला सुनाया जाता है. फैसले सुनाने के लिए दोनों पक्षों से एक-एक बकरा मंगाया जाता है. इसके बाद दोनों बकरों की टांग में निर्धारित मात्रा में जहर भरा जाता है. जिसका बकरा जहर के कारण पहले मर जाता है वो दोषी माना जाता है. ऐसे में कोई व्यक्ति फैसले का विरोध करता है तो उसे समाज से बाहर निकाल दिया जाता है.