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अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा: ढोल-नगाड़ों की थाप पर निकली नरसिंह भगवान की भव्य जलेब - अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा

कुल्लू शहर के रक्षक माने जाने वाले भगवान नरसिंह (Jaleb of Lord Narasimha in kullu) की अलौकिक एवं भव्य जलेब यात्रा वीरवार से शुरू हो गई है. अब कुल्लू दशहरा (International kullu dussehra 2022) खत्म होने तक रोजाना ये जलेब शहर में निकाली जाएगी. इस जलेब को राजा की जलेब भी कहा जाता है, क्योंकि परंपरा के अनुसार इस जलेब में कुल्लू के राजा पालकी में सज-धज कर यात्रा करते हैं.

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा
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Published : Oct 6, 2022, 6:29 PM IST

कुल्लू: कुल्लू शहर के रक्षक माने जाने वाले भगवान नरसिंह (Jaleb of Lord Narasimha in kullu) की अलौकिक एवं भव्य जलेब यात्रा वीरवार से शुरू हो गई है. अब कुल्लू दशहरा (International kullu dussehra 2022) खत्म होने तक रोजाना ये जलेब शहर में निकाली जाएगी. इस जलेब को राजा की जलेब भी कहा जाता है, क्योंकि परंपरा के अनुसार इस जलेब में कुल्लू के राजा पालकी में सज-धज कर यात्रा करते हैं. राजा महेश्वर सिंह ने भी आज विशेष प्रकार की पालकी में बैठकर पूरे शहर की परिक्रमा की.

वहीं, दशहरा पर्व में भाग लेने आए सैंकड़ों देवी-देवता भी बारी-बारी से इस जलेब में भाग लेते रहेंगे. इस जलेब के दौरान जहां आगे-आगे भगवान नरसिंह की घोड़ी सज-धज कर चलती है, वहीं पीछे-पीछे राजा की पालकी के साथ दोनों तरफ देवता के रथ भी चलते हैं. यह जलेब राजा की चानणी से शुरू होती है और पूरे ढालपुर की परिक्रमा करके चानणी के पास ही खत्म होती है. वहीं, दर्जनों देवी-देवता ढोल-नगाड़ों की थाप पर इस जलेब में पूरे शहर की परिक्रमा करते हैं और लोग नाचते-गाते हुए इस जलेब का आनंद लेते हैं.

नरसिंह भगवान की भव्य जलेब.

आज भी कुल्लू के राजा महेश्वर सिंह इस पालकी में बैठे और शहर की परिक्रमा की. दरअसल भगवान नरसिंह (Lord Narasimha in International kullu dussehra) का प्रतिनिधि होने के नाते नरसिंह राजा ही इस पालकी में विराजमान होते हैं. पुराने समय में यह जलेब कानून व्यवस्था बनाए रखने तथा बुरी आत्माओं की कुदृष्टि से बचने के लिए निकाली जाती थी. माना जाता है कि भगवान नरसिंह इस दौरान पूरे कुल्लू शहर की किलाबंदी कर देते हैं और अपनी शक्तियों से किसी भी बुरी आत्मा को देवनगरी में प्रवेश करने नहीं देते. ऐसे में यह परंपरा आज भी जीवित है.

बता दें कि राजा की जलेब की परंपरा सदियों से चली आ रही है. जब से दशहरा पर्व शुरू हुआ, तभी से यह परंपरा भी चली आ रही है. कहते हैं कि दशहरा पर्व में कुल्लू के राजाओं की अहम भूमिका थी. ऐसे में आज भी उनके वंशज उसी तरह से पुरातन रीति रिवाजों व परंपरागत ढंग से इस जलेब को निकालते हैं.

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