कुल्लूः जिला कुल्लू के ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में देव महाकुम्भ के नाम से विश्व विख्यात अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में शिरकत करने के लिए सैकड़ों देवी-देवता अपने हरयानों के संग पहुंच रहे हैं. वैसे तो कुल्लू दशहरा में प्रत्येक देवी-देवता की अपनी अहम भूमिका रहती है, लेकिन कुछ ऐसे भी देवी-देवता हैं जिनके शिरकत के बिना कुल्लू दशहरा भी शुरू नहीं होता है.
इन्हीं में से एक हैं पर्यटन नगरी मनाली की आराध्य देवी मां हिडिम्बा. मां हिडिम्बा का कुल्लू दशहरे में विशेष योगदान है. भगवान रघुनाथ की पूजा-अर्चना करने के बाद मां हिडिम्बा कुल्लू दशहरा में शिरकत करने के लिए भगवान रघुनाथ की पालकी के साथ ढालपुर मैदान में शिरकत करती हैं.
एक सप्ताह अस्थायी शिविर में विराजेंगी मां हिडिम्बा
मां हिडिम्बा के बारे में अधिक जानकरी देते हुए माता के हरयान सुभाष ने बताया कि मां हिडिम्बा जब कुल्लू पहुंचती हैं तो यहां पर उन्हें लेने के लिए भगवान रघुनाथ की छड़ी आती है और फिर माता यहां से कुल्लू दशहरा के लिए रवाना होती हैं. सुभाष ने बताया कि मां हिडिम्बा अगले एक सप्ताह के लिए कुल्लू में अपने अस्थायी शिविर में विराजेंगी.
मां हिडिम्बा को मानते हैं राजघराने की दादी
वहीं, भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबदार महेश्वर सिंह ने मां हिडिम्बा की अंतरारष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में रहने वाली भूमिका के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कुल्लू में भगवान रघुनाथ का आगमन काफी देर बाद हुआ था और उससे पूर्व यहां पर शिव और शक्ति की पूजा होती थी.
उन्होंने बताया कि यहां पहले जो मेला लगता था वे व्यापार के लिए लगता था. उन्होंने कहा कि मां हिडिम्बा को राजघराने की दादी कहा जाता है और जब भी मां हिडिम्बा कुल्लू दशहरा में आती हैं तो उन्हें लेने के लिए भगवान रघुनाथ की छड़ी जाती है और फिर उसके बाद मां हिडिम्बा रामशिला से छड़ी के साथ रघुनाथ आती हैं.
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छड़ीबदार महेश्वर सिंह ने बताया कि जब मां हिडिम्बा राजमहल पहुंचती हैं तो पूरा राजपरिवार एक दरवाजे के पीछे छिप जाता है और फिर मां हिडिम्बा महल के अन्दर प्रवेश करती हैं और उसके बाद मां हिडिम्बा जब पुकारती हैं तो तब उनका परिवार बाहर आता है. इसके बाद कुछ समय विश्राम करने के बाद मां हिडिम्बा ढालपुर मैदान में होने वाली रथ यात्रा में शिरकत करने के लिए भगवान रघुनाथ की पालकी संग रघुनाथ मन्दिर से चल पड़ते हैं.
बता दें कि कुल्लू में आज से अगले सात दिनों तक चलने वाले इस देव महाकुम्भ में कई सास्कृतिक रंग देखने को मिलते हैं. एक तरफ जहां पूरे भारत में रावण कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुलते जलाये जाएंगे. वहीं, जिला कुल्लू में आज के सातवें दिन लंकादहन किया जाता है और इसकी खासियत एक यह भी है कि यहां पर दशहरे में रावण कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुलते नहीं जलाये जाते हैं बल्कि भगवान रघुनाथ की शोभा यात्रा से दशहरे का आगाज होता है.
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