कुल्लू:छोटे बच्चों को उचित पोषण देकर उनका बचपन सुरक्षित करने के लिए सरकार की ओर से जो महत्वकांक्षी मिड डे मील योजना चलाई गई है. कोरोना काल में यह योजना प्रदेश में बंद है. कोरोना संकट के बीच हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले साढ़े पांच लाख बच्चे ऐसे हैं. जिन्हें स्कूल बंद होने और सरकार की लेटलतीफी के कारण अप्रैल से लेकर अभी तक मिड डे मील योजना के तहत चावल व खाद्य सुरक्षा भत्ता (खाद्यान्न और खाना पकाने की राशि) नहीं मिल पाया है.
इसके पीछे सरकार और जिम्मेदार लोगों की ओर से यह तर्क दिया जा रहा है कि दूसरे चरण में वायरस जानलेवा है इसलिए शिक्षा विभाग ने बच्चों के हितों के चलते स्कूल बंद रखा है, जिस कारण मिड-डे मील भी बंद है. कुल्लू जिले में भी 32 हजार स्कूली बच्चें इस योजना का लाभ इन दिनों नही ले पा रहे हैं.
मिड डे मील के लिए बजट की कमी
शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारियों ने बताया कि मिड डे मील के लिए अधिकतर बजट केंद्र सरकार की ओर से मिलता है, लेकिन कोरोना संकट के कारण अप्रैल और मई महीने का बजट अभी तक शिक्षा विभाग को नहीं मिल पाया है. जिसकी वजह से बच्चों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
दो माह से बच्चों को नहीं मिल रहा मिड डे मील
गौरतलब है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से लेकर आठवीं तक इस समय करीब साढ़े पांच लाख विद्यार्थी पढ़ रहे हैं. इसमें से अधिकतर बच्चे मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं या आर्थिक रूप से कमजोर हैं. कोरोनाकाल में इन बच्चों के उचित पोषण हेतु मिड डे मील का लाभ भी बच्चों को न मिल पाने से अभिभावकों की परेशानी बढ़ गई है. हालांकि कोरोना के प्रथम चरण में प्रदेश शिक्षा विभाग की ओर से मिड डे मील या तो सरकारी डिपो में या फिर बच्चों के अभिभावकों को स्कूल में बुलाकर मुहैया करवाया गया और यह सिलसिला मार्च माह तक चलता रहा लेकिन उसके बाद अप्रैल व अब मई माह में बच्चे मिड डे मील से वंचित हैं.
मिड-डे-मील के क्या हैं प्रावधान
मिड-डे मील के तहत सरकारी प्राइमरी स्कूलों में प्रत्येक बच्चे को 100 ग्राम और अपर प्राइमरी में 150 ग्राम खाद्यान मुहैया कराने का प्रावधान है. इसके अलावा प्राइमरी के बच्चे को चार रुपये 97 पैसे जबकि मिडल के बच्चों को सात रुपये 45 पैसे हर दिन दाल, तेल सहित अन्य खाना बनाने की लागत के रूप में भी दिए जाते हैं.
क्या है मिड डे मील योजना ?
- मिड-डे मील कार्यक्रम को एक केंद्रीय प्रायोजित योजना के रूप में 15 अगस्त, 1995 को पूरे देश में शुरू किया गया था.
- इसके पश्चात सितंबर 2004 में कार्यक्रम में व्यापक परिवर्तन करते हुए मेनू आधारित पका हुआ गर्म भोजन देने की व्यवस्था प्रारंभ की गई.
- इस योजना के तहत न्यूनतम 200 दिनों हेतु निम्न प्राथमिक स्तर के लिये प्रतिदिन न्यूनतम 300 कैलोरी ऊर्जा एवं 8-12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक स्तर के लिये न्यूनतम 700 कैलोरी ऊर्जा एवं 20 ग्राम प्रोटीन देने का प्रावधान है.