कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति में विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके चांदी के आभूषणों में फिर से चमक आ गई है. महिलाओं खासकर युवा पीढ़ी में भी अब इन परंपरागत आभूषणों का क्रेज बढ़ रहा है.
यहां मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों, विवाह, सांस्कृतिक और धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान महिलाएं पुरातन आभूषण पहन रही हैं. अभी तक स्वागत या सांस्कृतिक समारोहों में ही महिलाएं पुरातन आभूषण पहने दिखती थी. अब इन आभूषणों में महिलाएं खास कार्यक्रमों में भी दिख रही हैं. अब हर तीसरे, चौथे परिवार में लोग इन आभूषणों को बनाने पर भारी भरकम रकम खर्च कर रहे हैं.
फैशन के इस दौर में भी चांदी के आभूषणों में महिलाएं बाड़ी, मूलन, चंद्र हार को तरजीह दे रही हैं. इसमें पोशल और पेरग लगवाने के लिए लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं. लाहौल में चल रहे स्नो फेस्टिवल में महिलाओं का पुरातन आभूषणों का शृंगार हर किसी को आकर्षित कर रहा है.
पुराने समय में महिलाएं इन्हीं आभूषणों से सजती थीं
पारंपरिक लोकनृत्य में हिस्सा लेने वाली महिलाएं बाड़ी, मूलन, चंद्र हार से सज रही हैं. 86 वर्षीय बुजुर्ग महिला मान दासी ने कहा कि पुराने समय में महिलाएं इन्हीं आभूषणों से सजती थीं. बाद में सोने के आभूषण पहनने के शौक के चलते घाटी के 80 फीसदी से अधिक लोगों ने बहुत सस्ते में अपने ये आभूषण बेच दिए.
अब त्योहार, विवाह समारोह व अन्य धार्मिक कार्यक्रम में चांदी के इन आभूषणों का फिर से चलन बढ़ा है. इन आभूषणों में पोशल और पेरग भी जड़ित होने से खूबसूरती में और चमक आ जाती है. घाटी के युवा ज्वेलर संजू और विश्वास ने बताया कि अब उनके पास परंपरागत बाड़ी, मूलन बनाने की काफी मांग आ रही है. एक आभूषण की कीमत ही ढाई से तीन लाख रुपये तक पहुंच जाती है. हालांकि, यह चांदी के भार पर निर्भर करता है.
पुरातन गहने पहन रैंप में उतर रही युवतियां
लाहौल घाटी के परंपरागत गहनों को पहनकर अब युवतियां रैंप पर उतर रही हैं. इन गहनों की चमक और बनावट ऐसी होती है कि हर कोई इससे आकर्षित होता है. घाटी के आभूषणों के बनावट प्रदेश में सबसे अलग है.
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