कुल्लू: देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हालांकि पर्यटन नगरी मनाली के दौरे से अब वापस दिल्ली लौट गए हैं. लेकिन जब वह यहां पहुंचे थे तो स्थानीय प्रशासन के द्वारा उनका भव्य स्वागत किया गया. इस दौरान लाहौल घाटी पहली बार पहुंचे राष्ट्रपति को थंका पेंटिंग भी सौंपी गई, जिसे राष्ट्रपति अपने साथ ले गए हैं. इसके अलावा लाहौल के ग्रामीणों ने स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार ही राष्ट्रपति का स्वागत किया.
थंका पेंटिंग का इतिहास: बौद्ध दर्शन के महत्व को समझाते हुए थंका पेंटिंग का (History of Thangka Painting) भी अपना एक अलग इतिहास है. तिब्बती बौद्ध कला का बेहतरीन नमूना थंका पेंटिग कपड़े पर बनाई जाती है. इसमें प्राकृतिक रंगों और गोल्ड डस्ट का इस्तेमाल किया जाता है. ये चित्र कढ़ाई करके या सजाकर भी बनाए जाते थे. इन्हें मठों और घरों में भी देखा जाता है. इसका रिश्ता भारत, तिब्बत व नेपाल से भी जुड़ा है. थंका कला पूरी तरह से गौतम बुद्ध के जीवन और बौद्ध धर्म पर केंद्रित है. इस कला का विषय बुद्ध, बुद्ध के अवतार, बोधिसत्व और उनसे जुड़ी कहानियां, मान्यताएं आदि हैं.
बौद्ध मंदिरों में ही ये कला विकसित हुई और फली फूली. थंका पटचित्र कला भारत से ही तिब्बत पहुंची थी लेकिन बाद में ये जापान, चीन, कोरिया आदि देशों में पहुंची और वहां लोकप्रिय हुई. वहां बौद्ध मंदिरों से लेकर घरों तक में थंका पटचित्र देखे जा सकते हैं. थंका पटचित्रों में गौतम बुद्ध और उनके अवतार जैसे अवलोकितेश्वर, पद्मसंभव, अमितायु, रत्न संभव आदि के साथ मैत्रेय यानी भविष्य के बुद्ध को भी बनाया जाता है. चित्रों में बुद्ध के बचपन, विवाह, तपस्या, निर्वाण के साथ बौद्ध दर्शन नजर आता है. यह चित्र बनाते समय कई बौद्ध मान्यताओं को ध्यान रखा जाता है. जैसे अमितायु को हमेशा लाल रंग में बनाया जाता है क्योंकि बौद्ध मान्यता के अनुसार उन्हें सूर्य के समान माना जाता है. तपस्वी शाक्य मुनि यानी बुद्ध के एक हाथ में भिक्षा पात्र और दूसरा हाथ धरती को छूता हुआ होता है जिसे भूस्पर्श मुद्रा कहते हैं.