हमीरपुर: सात हजार के मतातंर से चुनाव हारने वाले पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के सीएम बन गए हैं. भाजपा हाईकमान के इस निर्णय से हिमाचल में सियासी चर्चाएं तेज हो गई. सियासी फिजाओं में चर्चा है कि आखिर हार के बावजूद धामी को हां तो धूमल को ना क्यों? क्या वजह रही कि पहाड़ की सियासत में भाजपा के कायदे अलग हो गए? हार का अंतर सीएम की कुर्सी से दूरी की वजह नहीं है यह भाजपा के इस निर्णय काफी हद तक स्पष्ट हो गया है.
धामी और धूमल की हार में महज पांच हजार का फासला है, ऐसे में लोकप्रियता और जनता का जनादेश तो बीजेपी के लिए कोई पैमाना नहीं है यह तो तय है. धूमल महज दो हजार के लगभग मतों से हारे थे, जबकि धामी की हार का अंतर सात हजार है. यक्ष प्रश्न यह है कि सत्ता तक पहुंचने के बाद एक जैसे सियासी हालातों में भाजपा के कर्ताधर्ताओं के निर्णय अलग क्यों?
हिमाचल की सियासी फिजाओं में यह सवाल अब सालों बाद फिर कौंधने लगा है कि पांच साल तक विपक्ष का चेहरा और चुनावों में सीएम फेस रहे प्रेम कुमार धूमल तमाम कसरतों के बावजूद तीसरी बार आखिर क्यों सत्ता से बाहर हैं. प्रदेश में भाजपा सरकार अब फिर चुनावी साल में है और पड़ोसी राज्य उत्तराखंड हिमाचल की शांत फिजाओं में सियासी गरमाहट का कारण बना है. चार साल पहले का सियासी घटनाक्रम एक फिर हिमाचल के लोगों के जहन में तरोताजा हो गया है.
शिमला में हुआ था शक्ति प्रदर्शन, लौट गए थे केंद्र से भेजे गए पर्यवेक्षक:दिसंबर 2017 में हिमाचल में जनता का जनादेश आने के बाद तीन दिन तक प्रदेश में भाजपा नेताओं मुख्यमंत्री पद के लिए गुटीय समीकरण बनते रहे. 22 दिसंबर 2017 को भाजपा हाईकमान की तरफ से निर्मला सीतारमण और नरेंद्र सिंह तोमर को बतौर पर्यवेक्षक शिमला भेजा गया. यहां पर भाजपा नेताओं की बैठक हुई और इसी दौरान धूमल और जयराम समर्थकों ने खूब शक्ति प्रदर्शन भी किया.
दिनभर चले इस सियासी जोर आजमाइश के बाद पर्यवेक्षक 23 दिसंबर को दिल्ली लौट गए. इसके बाद 25 दिसंबर को भाजपा विधायक दल की बैठक में पर्यवेक्षक पहुंचे. भाजपा हाईकमान के निर्णय के बाद सभी नेताओं की मौजूदगी में जयराम ठाकुर ने सरकार बनाने का दावा राज्यपाल के समक्ष रखा. यहां पर शक्ति प्रर्दशन का जिक्र इसलिए जरूरी हो जाता है, क्योंकि शक्ति प्रदर्शन का हाई वोल्टेज सियासी ड्रामा उत्तराखंड में देखने को नहीं मिला है. सीएम की कुर्सी तक पहुंच के लिए उत्तराखंड के भाजपाई दिग्गजों दिल्ली के चक्कर जरूर काटे, लेकिन सार्वजनिक शक्ति प्रदर्शन नजर नहीं आया, ऐसे में क्या अलग-अलग निर्णयों का यही आधार माना जाए.