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बाढ़ की भविष्यवाणी को लेकर इसरो के शोध में विस्तार, हिमाचल के साथ ही अब इन राज्यों में होगी स्टडी

बाढ़ की सटीक भविष्यवाणी के लिए शोध (research on Prediction of floods ) जारी है. ऐसे में अगर विशेषज्ञों की मेहनत रंग लाई तो समय रहते बाढ़ की सटीक भविष्यवाणी हो सकती है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के उपक्रम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस) और एनआईटी हमीरपुर, आईआईआरएस देहरादून, आईआईटी रुड़की, एनआईएच रुड़की, आईयूएसटी कश्मीर और जम्मू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ मिलकर शोध (Prediction of floods) करेंगे.

research on Prediction of floods
बाढ़ की सटीक भविष्यवाणी पर रिसर्च.

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Published : Mar 31, 2022, 9:50 PM IST

Updated : Apr 1, 2022, 1:24 PM IST

हमीरपुर: देश में अब बाढ़ की भविष्यवाणी (Research on Flood Prediction) संभव होगी. इस खोज से देश में बरसात के दिनों में मचने वाले जलप्रलय से समय रहते बचाव संभव हो सकेगा. इस कड़ी में उत्तर पश्चिमी हिमालय में आने वाले जम्मू हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड की हिमनदित (Glacier) व गैर हिमनदित (Non Glacier in himachal ) नदियों और सहायक नदियों पर यह शोध 3 साल के भीतर पूरा होगा. इस शोध कार्य पर लगभग 3 करोड रुपए खर्च होंगे.

ब्यास, पार्वती, अलकनंदा, भागीरथी, झेलम और चुनाव नदियों तथा इनके सहायक नदियों पर यह शोध कार्य किया जाएगा. विशेषज्ञों की मेहनत रंग लाई तो बाढ़ की सटीक भविष्यवाणी होगी. बाढ़ से मचने वाले जलप्रलय से बचाव के लिए इस प्रोजेक्ट पर एनआईटी हमीरपुर और आईआईआरएस के विशेषज्ञ जुटे हैं. मुख्यत: जियोग्राफिकल सिस्टम (जीआईएस) तकनीक पर आधारित इस शोध कार्य में रेन गेज (बारिश मापने का यंत्र) और कंक्रीट वेयर को इस्तेमाल किया जाएगा.

आईआईआरएस और 3 राज्यों के राष्ट्रीय संस्थानों के एमओयू हुआ साइन:भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के उपक्रम इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस) और एनआईटी हमीरपुर, आईआईआरएस देहरादून, आईआईटी रुड़की, एनआईएच रुड़की, आईयूएसटी कश्मीर और जम्मू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ मिलकर शोध (research on Prediction of floods) करेंगे. इस सिलसिले में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) हमीरपुर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अंतरिक्ष विभाग देहरादून के बीच ऑनलाइन बैठक के दौरान एक एमओयू साइन किया गया.

इस समझौते पर एनआईटी हमीरपुर के निदेशक प्रो. एचएम सूर्यवंशी तथा आईआईआरएस-इसरो, आईआईआरएस देहरादून के निदेशक डॉ. प्रकाश चौहान ने हस्ताक्षर किए. इस बैठक में जहां एनआईटी हमीरपुर से प्रोफेसर मीनाक्षी जैन डीन अनुसंधान और परामर्श और डॉ विजय शंकर पीआई तथा आईआईआरएस से डॉ. एसके श्रीवास्तव डीन अकादमिक और डॉ. प्रवीण ठाकुर चीफ डब्ल्यूआरडी भी उपस्थित रहे.


अगले 30 वर्षों तक कारगर होंगे शोध में निकले परिणाम:हिमाचल जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड की नदियों तथा सहायक नदियों पर इस शोध को शुरू कर दिया गया है. इस शोध में इन नदियों पर चल रहे हाइड्रो प्रोजेक्ट प्रबंधन की मदद ली जाएगी और प्रोजेक्ट से स्थापना के वक्त किए गए सर्वे के आंकड़े भी जुटाए जाएंगे. इन आंकड़ों से वर्तमान शोध में निकले आंकड़ों की तुलनात्मक स्टडी संभव होगी. तीन वर्ष तक चलने वाले इस शोध कार्य पर इसरो तीन करोड़ रुपये खर्च कर रहा है. इस शोध में जुटे विशेषज्ञों की मानें तो यदि इस प्रोजेक्ट में उम्मीदों के मुताबिक सार्थक नतीजे निकल कर आते हैं तो बाढ़ की भविष्यवाणी का सिस्टम आगामी 30 वर्षों तक कारगर साबित होगा. एनआईटी हमीरपुर को इसके लिए 3000000 रूपए का फंड मिला है.

मंजूरी के बाद अब विस्तृत हुई इसरो की योजना, कई नदियों और संस्थान शामिल: इसरो के उपक्रम इंडियन इंस्टीट्यूट रिमोट सेसिंग के वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण ठाकुर एवं एनआईटी हमीरपुर के प्रोफेसर विजय शंकर ने कुछ समय पहले इसरो को यह आइडिया शोध के लिए सबमिट किया था. तमाम विचार विमर्शों के बाद इसरो ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी प्रदान की.

दरअसल, इस स्टडी के तहत ब्यास नदी और सहायक नदियों पर हिमाचल के तीन जिलों कुल्लू, मंडी और हमीरपुर में जीआईएस तकनीक विभिन्न कैचमेंट की मॉडलिंग की जाएगी. इस तकनीक के तहत की सहायक नदियों पर बारिश मापने के यंत्र रेन गेज और नदियों के बहाव को मापने के कंक्रीट वेयर स्थापित किए गए हैं. अब योजना शुरू की तरफ से विस्तृत कर दी गई है और 3 राज्यों की विभिन्न नदियों पर यह शोध कार्य किया जाएगा. हिमनदित व गैर हिमनदित नदियों और सहायक नदियों पर यह रिसर्च वर्क होगा.

बरसात में देश के कई हिस्सों में बाढ़ का खतरा: भारत में लगभग हर राज्य में बरसात के दिनों में बाढ़ कहर बरपाती है, लेकिन बाढ़ से बचाव के लिए समय रहते कोई विशेष तैयारी साइंटिफिक तरीके से नहीं की जाती है. यह भी कहा जा सकता है कि इस बचाव के लिए देश में कोई व्यावहारिक सिस्टम विकसित नहीं हो सका है. क्लाइमेंट चेंज के इस दौर में नदियों में ग्लेशियर्स के पिघलने से पानी का बहाव एकाएक बढ़ रहा है. नदियों में बदलते बहाव का बारिश के समय में बदलाव भी इसका एक मुख्य कारण है. ऐसे में बाढ़ की भविष्यवाणी के लिए समय रहते सिस्टम विकसित करना समय की मांग है.

एनआईटी हमीरपुर के प्रोफेसर विजय शंकर कहते हैं कि बेसिक आइडिया बारिश की मात्रा और नदियों में बहाव में हो रहे बदलावों को माप कर एक ऐसा सिस्टम विकसित करने का है, जिससे कि समय रहते राहत और बचाव कार्य करने वाली एंजेसियों को अलर्ट किया जा सके. हिमालय क्षेत्रों में कई बार सामने आई बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं ने ही प्रोफेसर विजय शंकर को इस शोध (Prediction of floods ) के लिए प्रेरित किया है.

रेन गेज बारिश की मात्रा को मापने का तरीका है. इस रिसर्च में इस तकनीक को कंक्रीट वेयर के जरिए नदियों में कैचमेंट की मॉडलिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. 3 साल तक चलने वाली इस रिसर्च में नदियों में इन पानी के बढ़ते और बदलते बहाव और बारिश की मात्रा के आंकड़े सटीकता के साथ जुटाए जाएंगे. यह आंकड़े ही इस तमाम शोध में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे. प्रोफेसर विजय शंकर का कहना है कि नदियों के बहाव में एकाएक बदलाव नहीं होता है. इसमें 10 को दशक लगते हैं. इस रिसर्च में जो आंकड़े जुटाए जाएंगे वह कारगर भी होंगे तथा आगामी कई दशकों तक प्रभावी भी.

जल प्रलय से भी समय रहते हर बचाव पर शोध: छोटी-मोटी बाढ़ नहीं बल्कि बादल फटने जैसे बड़े जल प्रलय से भी समय रहते हर बचाव इस शोध कार्य से संभव होगा. बारिश की अधिक संभावना होने पर और बाढ़ आने पर पहले ही यह आइडिया लगाया जा सकेगा कि किस समय में बाढ़ का वेग कहां तक पहुंचेगा. कितने समय में बाढ़ का पानी एक जिले से दूसरे जिले तक पहुंचेगा. इसका अंदाजा भी इस स्टडी में लगाया जाना संभव होगा. यहां तक की बादल फटने के बाद इसका प्रभाव नदी के किस छोर तक कब और पानी की किस गति के साथ होगा. इसकी भविष्यवाणी करना भी इस शोध से संभव होगा. इससे समय रहते राहत और बचाव कार्य में जुटी एजेसियां अलर्ट हो सकेंगी.

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Last Updated : Apr 1, 2022, 1:24 PM IST

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